विकास की तलाश में मौत के इतने पास आ जाएंगे, यह हमने कहां सोचा था। वास्तव में वह बेहतर ज़िन्दगी की तलाश ही थी, जब हम इंसानों ने औधोगिकीकरण, इंफ्रास्टक्चर, अनुसंधान और विकास की अंधाधुंध दौड़ में प्रकृति का इतना दोहन किया कि आज हम मौत के मुंह में प्रवेश कर चुके हैं। हमने प्रकृति को तबाह किया, प्रकृति अब हमें तबाह करने को व्यग्र है। पृथ्वी एक मात्र ग्रह है, जहां जीवन संभव है। इसकी वजह यहां की प्राकृतिक...
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