मैं बस्ती की तंग गलियों में खेल-कूदकर बड़ा हुआ हूं, जहां सभी लोग एक ही जाति और समान आर्थिक हालात के थे। सभी का एक-दूसरे के घर आना-जाना लगा रहता था और सब एक-दूसरे की खुशी तथा गम में शामिल होते थे। शायद इसलिए सब एक जैसे लगते थे। मैंने जब स्कूल जाना शुरू किया, उस वक्त पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मैं कुछ अलग हूं इसलिए कुछ बच्चे मुझसे अलग रहना चाहते थे। मुझे आज भी याद है कि जब मैंने साथ पढ़ने वाले एक लड़के...
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