माहवारी को इस आधुनिक युग में ‘शर्म’ और ‘गंदी बात’ का तमगा दिया जाता है। इस मामले में समाज की सोच आज भी तंग है। मेरे निजी अनुभव तो कुछ अजीब ही हैं। हम मुस्लिम हैं, हमको बचपन में पास के मदरसे में धार्मिक शिक्षा लेने के लिए घर से बाहर जाना पड़ता था। मेरी बहन और मैं रास्ते में उछल-कूद करते पढ़ने जाते थे। गर्मीयों की छुट्टियां भी थी तो इस वजह से आनंद अधिक आता था। हम शाम का इंतज़ार करते थे कि कब शाम हो और...
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