प्रतिदिन की तरह सब स्कूल पहुंच चुके थे। मैं भी रोज़ की तरह अपनी डेस्क पर बैठकर उसका इंतज़ार करने लगा। उस दिन दृष्टि (बदला हुआ नाम) अन्य दिनों की अपेक्षा देर से स्कूल में आई थी। उसकी आंखे डबडबाई हुई थी। हम दोनों एक-दूसरे को आंखों ही आंखों में देखते रहते थे। शायद हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे फिर भी हम दोनों के बीच बात कम ही या यूं कहें होती ही नहीं थी। कुछ साल बाद आगे की पढ़ाई के लिए हम दोनों के...
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