40 घर, तंग गलियां, पानी, संडास के लिए लगती लम्बी कतारें और लोगों की नफरतों को मिलाकर बनती थी हमारी बस्ती। बस्ती से जुड़े बहुत से पल हैं जिन्होंने मेरी ज़िन्दगी को बहुत प्रभावित किया हैं। मेरे व्यक्तित्व को बनाने में बस्ती की परवरिश की एक अहम भूमिका रही है। शाम के समय किसी घर से मोहब्बत भरे रफी साहब और लता मंगेश्कर के नगमों की आवाज़ें आती थीं, तो किसी दूसरे घर में भजन-आरती होने के दौर की सुबुगाहट।
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