जिस खून से तुम पैदा हुए, उस खून के दुश्मन बनते हो बेहिस वजह आंखों पे रख नश्तर का चिलमन सिलते हो। वस्ल की राहत से उठकर सैराब ये लश्कर करते हो वीराने कांटों से हटकर इस खून से गुलशन बनते हो। मैं जिस वक्त आठवीं क्लास में थी। मुझे वह वक्त बहुत साफ-साफ याद है। हमारी 3 बहनें और एक बड़े भाई हैं, उस समय हमारे घर में दादी भी मौजूद थीं। थीं तो वह महिला मगर शायद लड़की होना उनकी नज़रों में गुनाह था, जो कुछ था भाई...
↧