Translated from English to Hindi by Sidharth Bhatt.

REUTERS/Danish Siddiqui
बी.बी.सी. में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, उत्तर प्रदेश में एक चाय विक्रेता के.ऍम. यादव ने, कई सौ ग्रामीणों को महत्वपूर्ण सरकारी जानकारी उपलब्ध करा के अपने आप में एक छोटी सी उपलब्धि हासिल की है। इन जानकारियों के फलस्वरूप ग्रामीण, अपने अधिकारों और हितों को लेकर जागरूक हुए हैं। के. ऍम. यादव ने यह सफलता आर.टी.आई. ( राइट टू इन्फॉर्मेशन यानि कि जानकारी का अधिकार) एक्ट के द्वारा हासिल की, जिसे “अशक्त के अस्त्र” रूप में भी देखा जाता है।
आर.टी.आई. एक्ट को एक सफलता के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन इसकी अपनी सीमायें हैं जो इसके प्रयोग को पढ़-लिख सकने में सक्षम लोगों तक ही सीमित करती हैं। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में निरक्षर लोगों की संख्या अट्ठाइस करोड़ सत्तर लाख है। यह संपूर्ण विश्व की आबादी का ३७ प्रतिशत है, और विश्व के किसी भी देश में निरक्षर लोगों की सबसे बड़ी संख्या है। इस प्रकार बिना किसी उपयुक्त हेल्पलाइन या सहायता केंद्रों के भारत जैसे विशाल जनसांख्यिक परिवेश में जनहित के लिए आर.टी.आई. एक्ट के प्रयोग की उम्मीदें बेहद क्षीण हैं।
हमारे देश के संविधान के अनुसार हम सभी को बराबरी का दर्जा हासिल हैं, लेकिन असल में जनता को मिलने वाली सेवाएं और सुविधाएं युवा, सक्षम और एक विशेष वर्ग से ताल्लुक रखने वाले पुरुषों के लिए अनुकूलित हैं। यदि आपकी अंग्रेजी भाषा पर पकड़ अच्छी है तो इन सुविधाओं और सेवाओं को पाने की आपकी सम्भावनाएं और अधिक हो जाती हैं।लेकिन शेष जनता का क्या? आंकड़े इसे साफ़ तौर पर दिखाते हैं।
भारत में वरिष्ठ नागरिकों कि संख्या १० करोड़ से भी ज्यादा हैं, इनमे से अधिकांश चुनावों के दौरान उपयुक्त परिवहन के आभाव में पोलिंग बूथ तक पहुँच भी नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में उनसे मताधिकार के उपयोग की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?
यदि एक किशोरी उसके चलने में अक्षमता के कारण स्कूल नहीं जा पा रही है, तो हम उसके शिक्षित होने की कैसे उम्मीद कर सकते हैं? २०११ में हुई जनगणना के अनुसार १५ से ५९ वर्ष के लोगों में विकलांगों की संख्या १.३४ करोड़ थी, इनमे से ९९ लाख लोग या तो काम नहीं कर रहे हैं या फिर उनकी कार्य क्षमता सीमित है, ऐसा इन लोगों के हमारे शिक्षा तंत्र से बाहर होने के कारण हो रहा है।
एक और ख़ास बात, कई मौकों पर किसी नवजात की माँ से बच्चे को स्तनपान के लिए शौचालय में ले जाने की उम्मीद की जाती है, ऐसे में कैसे हम उससे सार्वजनिक स्थानों पर जाने की अपेक्षा कर सकते हैं? मुझे संदेह है, कि आप कभी भी शौचायल में जाकर आपका आहार लेना पसंद करेंगे!
हम एक विविधताओं से भरी दुनिया में रह रहे हैं, फिर भी हमारी जनसँख्या का सबसे बड़ा हिस्सा परिवहन, शिक्षा, सुारक्षित कार्य स्थल, शौचालय आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं के लिए संघर्ष कर रहा है। हमें स्वीकार करना होगा कि अप्राप्यता की अलग-अलग रूपों में हमारी प्रणाली और हमारी सोच में गहरी पैठ है, और यदि हम बदलाव लाना चाहते तो, बुनियादी सुविधाओं की पहुँच को किसी एहसान की तरह नहीं बल्कि एक मानव अधिकार के रूप में देखना होगा, हमें सुविधाओं और सेवाओं से वंचित इस विशाल वर्ग को साथ में लेकर आना होगा।
इन्ही कारणों से यूथ की आवाज़, सीबीएम इंडिया, जो कि एक अक्षमता और विकास पर काम करने वाली प्रमुख संस्था है, के साथ मिलकर बुनियादी सेवाओं और सुविधाओं की उपलब्धता के विभिन्न पहलुओं पर संवाद बनाने का प्रयास कर रहा है। आने वाले २ महीनों में हम कानून और अनुपलब्धता के वित्तीय पहलुओं पर भी बात करेंगे। और सबसे अधिक प्रमुखता से इस बारे में बात की जाएगी कि, विश्व में उपलब्धता को कैसे बढ़ाया जाए, जो हमें हमारे लक्ष्य #Access4All के और करीब ले जाता है। आखिर बिना सेवाओं और सुविधाओं की आम पहुँच के समानता की बात नहीं की जा सकती।
Read the English article here.
The post क्या यह दुनिया केवल सक्षम और विशेषाधिकार प्राप्त युवा पुरुषों के लिए है? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.