Translated from English to Hindi by Sidharth Bhat.
मेरा पूरा जीवन कानपुर में गुजरा, जहाँ मेरे पिता पी.डब्लू.डी. (पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट या लोक निर्माण विभाग) में एक मैकेनिक का काम करते थे और मेरी माँ सी.आर.पी.एफ. (सेंट्रल रिसर्व पुलिस फ़ोर्स) में उनके रिटायर होने तक 20 सालों तक एक कांस्टेबल के पद पर कार्यरत थी। मेरी पढाई वहीं के एक स्थानीय केंद्रीय विद्यालय में हुई। जब मैं ग्यारहवीं क्लास में था तो मेरी मुलाकात आई.आई.टी. के कुछ वालंटियर्स से हुई जो अवन्ति नाम की संस्था के साथ काम कर रहे थे, ये लोग कम आय वर्ग के बच्चों को कॉम्पटेटिव परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षण देने का काम करते थे। आम कोचिंग क्लासेज की तुलना में मुझे यहाँ काफी कुछ सीखने को मिला, इनका तरीका तुलनात्मक रूप से काफी अलग था और यह बच्चों को रट्टा मारने की जगह पढाई में रचनात्मक रूप से शामिल करने पर बल देते थे।
क्यूंकि मुझे हमेशा से ही फिजिक्स (भौतिक विज्ञान) में रूचि थी, तो मैंने इनकी स्कालरशिप का टेस्ट दिया और इनकी कोचिंग के लिए मेरा चयन हो गया, मुझे लगा कि इससे मुझे किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन लेने में सफलता मिलेगी। मेरी कोचिंग के दौरान अवन्ति से मुझे हाई स्कूल के विद्यार्थियों के लिए हर साल प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी के द्वारा चलाए जाने वाले समर प्रोग्राम येल यंग ग्लोबल स्कॉलर्स के बारे में पता चला। लेकिन इसमें केवल एक ही दिक्कत थी, मेरी अंग्रेजी बहुत अच्छी नहीं थी।
अंग्रेजी के लिए मेरा संघर्ष:
हालाँकि मेरी अंग्रेजी की समझ काफी अच्छी थी, पर मुझे अंग्रेजी बोलने का मौका पहले कभी मिल नहीं पाया था, क्यूंकि मेरे आस-पास कोई यह भाषा बोलता ही नहीं था। तो जब भी शाम को मैं टहलने के लिए निकलता था तो मैं खुद से ही अंग्रेजी में बातें करने लगता था। शुरुवात में यह मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन अवन्ति की मदद से येल यनिवर्सिटी के इस समर प्रोग्राम के लिए भारत से चुने गए चार विद्यार्थियों में से एक नाम मेरा भी था।
येल में बिताए समय ने मुझे पूरी तरह से बदल दिया। मेरे जीवन में पहली बार मुझे दुनिया के सबसे बेहतरीन विद्यार्थियों और अध्यापकों से मिलने और उनसे सीखने का मौका मिला। साथ ही साथ मेरी अंग्रेजी पर पकड़ भी काफी अच्छी हो गयी थी, तो मैंने उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका की यूनिवर्सिटीज में आवेदन करने का निर्णय लिया। मुझे पता चला कि मुख्य कोर्सेस के अलावा मुझे एसएटी(SAT) और टोेफल(TOEFL) जैसे अन्य टेस्ट भी पास करने होंगे, और मैंने इनके लिए तैयारी करना शुरू कर दिया। जहाँ एसएटी के मैथ्स सेक्शन में मुझे कोई परेशानी नहीं थी वहीं बेहद जरुरी रीडिंग सेक्शन में मुझे काफी सुधार करने की जरुरत थी।
यह काफी मुश्किल था लेकिन समय और तैयारी के साथ मैं 2400 में से 2170 का स्कोर करने में सफल हुआ। मैथ्स में जहाँ मैंने पूरे 800 अंक हासिल किये वहीं रीडिंग सेक्शन में मुझे 740 अंक मिले जिसके लिए मैंने कड़ी मेहनत की थी। मेरे सबसे खराब अंक राइटिंग सेक्शन में आये जिसमे मुझे 800 में से 610 नंबर मिले। लेकिन आवेदन का सबसे मुश्किल हिस्सा तो अभी बाकी था।
आवेदन की प्रक्रिया के लिए मुझे एक निबंध लिखना जरुरी था, जो हमारे स्कूलों में सिखाए गए तरीकों से बिलकुल अलग था। इन निबन्धों के लिए जरुरी है आप अपने बारे में सोचें, आप अभी तक क्या कर रहे थे और आप जो भी अपने क्षेत्र में कर रहे थे वो क्यों कर रहे थे और अभी तक आपने आपके जीवन में क्या किया है।
हालांकि मैंने येल से वापस आने के तुरंत बाद ही निबंध की तैयारियां शुरू कर दी थी, लेकिन मुझे इसमें काफी समय लगा और मैं मेरे निबन्धों में लगातार बदलाव कर के उन्हें बेहतर बनाने के तब तक प्रयास करता रहा जब तक कि मैंने उन्हें जमा नहीं कर दिया। मैं इस बात को ज़ोर देकर कहना चाहूंगा कि निबंध अमेरिकी संस्थानों में आवेदन की प्रक्रिया का एक बेहद जरुरी हिस्सा हैं। आपकी आकादमिक क्षमताओं और पूर्व में किये गए प्रोजेक्ट्स का आंकलन हो जाने के बाद ये निबंध ही हैं जिनके आधार पर चयन का अंतिम फैसला लिया जाता है।
भारतीय शिक्षा के ऊपर मेरे विचार:
मैं भारतीय शिक्षा पद्धति का बचपन से ही हिस्सा रहा हूँ, लेकिन येल में बिताया समय मेरे लिए आँखें खोलने वाला अनुभव था और इससे मुझे एहसास हुआ कि हमारी शिक्षा की यह पद्धति बच्चों के लिए अच्छी नहीं है। यहाँ सुधार की काफी गुंजाइशें हैं। हमारे यहाँ रट्टा मारने और परीक्षा में आने वाले अंकों पर सबसे ज्यादा ज़ोर दिया जाता है। बहुत से विद्यार्थी विज्ञान को ना तो असल में समझ पाते हैं और ना ही उसका आनंद उठा पाते हैं। और शहरों के बाहर बच्चे, स्कूल के बाद अपने कैरियर को लेकर जागरूक भी नहीं हैं।
अगर तुलना की जाए तो अमेरिकी शिक्षा प्रणाली में सहभागिता, रिसर्च और कुछ हट कर सोचने पर ज़ोर दिया जाता है। शिक्षा के उस तरीके और वातावरण ने मुझे काफी प्रभावित किया। मेरे येल से आने के बाद चीजों को लेकर मेरी समझ पहले के मुकाबले काफी स्पष्ट हो चुकी थी, और दुनिया को देखने का मेरा दायरा काफी बढ़ चुका था। इसके बाद ही मैंने मेरी उच्च शिक्षा के लिए सबसे बेहतर यूनिवर्सिटी में जाने का फैसला लिया। और इतने प्रयासों और संघर्ष के बाद आज मैं पूरी तरह से स्कॉलरशिप पे एम.आई.टी. (मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी) में हूँ, जो दुनिया का सबसे बेहतरीन इंजीनियरिंग कॉलेज है।
और अंत में, जो विद्यार्थी विदेश में जाकर शिक्षा लेना चाहते हैं उनके लिए मेरा कहना है- अमेरिका के कॉलेज उन विद्यार्थियों को प्राथमिकता देते हैं, जो उनके चुने गए शिक्षा के क्षेत्र को लेकर पूरी तरह से समर्पित हों और उनके लिए मौजूद सभी संसाधनों का पूरी तरह से उपयोग कर सकें। इसलिए यह बेहद जरुरी है कि आवेदन प्रक्रिया के दौरान आप आपके जूनून, आपके समर्पण को आपकी उपलब्धियों के साथ मजबूती से सामने रखें।
The post कैसे एक मैकेनिक का बेटा सभी कठिनाइयों को पीछे छोड़ कर एम.आई.टी. में ले रहा है शिक्षा appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.