Translated from English to Hindi by Sidharth Bhatt.
पुनीता आज कई चीजें कर रही हैं। वो मधुमक्खी पालन करती हैं, वो आर्गेनिक तरीकों से एडिबल आयल (खाद्य तेल) बनाती हैं, और स्थानीय स्तर पर आर्गेनिक फार्मिंग (जैविक कृषि) के तरीकों और उनके फायदों पर सलाह भी देती हैं। उनमे आया यह बदलाव काफी महत्वपूर्ण है, केवल इसलिए नहीं क्यूंकि पुनीता अपना खुद का व्यवसाय चला रही हैं, बल्कि इसलिए क्यूंकि वो एक विकलांग महिला हैं जो उनके आस-पास और काफी सारे लोगों को प्रेरित कर रही हैं।
जब वो बड़ी हो रही थी तो एक विकलांग लड़की होने के कारण उन्हें हमेशा पड़ोसियों के ताने सुनने पड़ते थे, कि कैसे वो हमेशा एक बोझ ही रहेंगी और एक ऐसे गाँव जहाँ खेती ही आमदनी का एकमात्र साधन है, में किसी काम नहीं आ सकेंगी। जब वो पांच वर्ष की थी तो पोलियो वायरस से प्रभावित होने के कारण उनके शरीर के निचले हिस्से को लकवा मार गया। अब वो अपने पैरों का इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं और एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल करती हैं।
पुनीता उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के दुरावा गाँव में रहती हैं। उत्तर प्रदेश ना केवल जनसँख्या के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य है, बल्कि यहाँ पोलियो के शिकार लोगों की संख्या भी काफी ज्यादा है। इसी कारण यहाँ शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की तादात काफी ज्यादा है।
नौवीं कक्षा की सबसे उम्रदराज छात्रा:

घास-फूस से बने एक टूटे हुए शेड जिसकी छत अभी हाल ही में आये एक तूफ़ान से टूट गयी, के नीचे ज़मीन पर बैठी पुनीता की आँखों में सूरज की तरह चमक मौजूद है।
पुनीता बताती हैं, “मैं इस उम्र (25 वर्ष ) में स्कूल जा रही हूँ, और मुझे इसमें किसी भी तरह की शर्म महसूस नहीं होती कि मैं नौंवी कक्षा की सबसे उम्रदराज विद्यार्थी हूँ।” पुनीता जब 13 वर्ष की थी तो उन्हें स्कूल जाना छोड़ना पड़ा था।
सीबीएम के द्वारा शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चलाए जा रहे, जैविक कृषि (आर्गेनिक फार्मिंग) प्रोजेक्ट्स में भाग लेने से, उनके अन्दर इस नए आत्मविश्वास का संचार हुआ है। इसके बाद से पुनीता ने अपने जीवन में कई बदलाव महसूस किए हैं, जिसमें (मधुमक्खी पालन और खाद्य तेल निकालने की मशीन से होने वाली) अच्छी आमदनी से लेकर आर्गेनिक फार्मिंग पर उनकी अच्छी जानकारी की वजह से समाज में मिलने प्रतिष्ठा तक आते हैं।
पुनीता की मधुमक्खियाँ:

चार बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे छाया में सात सफ़ेद लकड़ी के बक्सों के अंदर काफी कुछ होता रहता है। और पुनीता इसके बारे में बताने को लेकर काफी उत्सुक हैं कि ये आखिर है क्या। वो बड़े विश्वास के साथ बताती हैं, “ये शहद की मक्खी के बक्से हैं जो इतनी गर्मी के बाद भी पूरी तरह से भरे हैं। ये इसी तरह रहते हैं क्यूंकि मैं इन्हें चीनी, गुड़ और पानी का मिश्रण देना कभी नहीं भूलती।”
पुनीता के लिए बनायी गयी एक ख़ास तरह की व्हीलचेयर जो एक ट्राई-साइकिल की तरह है, पर इन बक्सों के आस-पास घूमते हुए पुनीता बताती हैं, कि वो गाँव के उन चुनिन्दा लोगों में से एक हैं जो शहद निकलती हैं और अच्छे दामों पर बेचती भी हैं। हालांकि जहाँ ये बक्से रखे हैं वहां की ज़मीन काफी उबड़-खाबड़ है, लेकिन इस बक्सों को इस तरह से बनाया गया है कि पुनीता इन तक पहुँच सकें। इन बक्सों से एक साल में करीब 84 लीटर शहद निकलता है। यह शहद 400/- रूपए प्रति लीटर के हिसाब से बेचा जाता है, इस प्रकार शहद से होने वाली आय सालना करीब 33600/- रूपए होती है। पुनीता को केवल इन बक्सों के रख-रखाव और शहद निकालने की ही ट्रेनिंग नहीं मिली बल्कि उन्हें यह भी बताया गया कि खेती के लिए भी मधुमक्खियाँ कितनी फायदेमंद हो सकती हैं, खासतौर पर सब्जियों की खेती के लिए।

इसके साथ-साथ उन्हें एक खाद्य तेल निकालने की मशीन भी उपलब्ध करवाई गयी है, जिससे स्थानीय रूप से उगाए जाने वाली सरसों और सूरजमुखी के बीज से तेल निकाला जाता है। इस मशीन को पैसे लेकर वह स्थानीय किसानों को उपलब्ध कराती हैं। वो खुद भी बीज खरीदती हैं और उनका तेल निकालकर स्थानीय बाज़ार में इसे एक जैविक उत्पाद (आर्गेनिक प्रोडक्ट) के रूप में बेचती हैं। इससे भी उनकी आमदनी में अच्छा इजाफा होता है।

मुझे दिखाने के लिए पुनीता की मशीन से करीब एक लीटर तेल निकाला गया, जो उन्होंने एक समझदार कारोबारी की तरह जो अपने साधनों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करता है, मुझे बेचने की पेशकश की।
मेरी एक पहचान है:
पुनीता हालाँकि शादीशुदा हैं, लेकिन उनकी अपने पति के साथ बातचीत काफी सीमित है, और वो इस बारे में ज्यादा बात करना पसंद भी नहीं करती। उन्होंने तुरंत कहा, “मैं आजाद हूँ और मेरा खुद का बैंक अकाउंट है। आर्गेनिक एग्रीकल्चर पर मेरे ज्ञान जो मुझे इस ट्रेनिंग से मिला है, की वजह से मुझे इज्जत मिलती है।”

पुनीता ने ना केवल इस प्रोजेक्ट से नयी संभावनाएं तलाशी हैं, बल्कि वो अपने परिवार में एक मजबूत आवाज बनकर भी उभरी हैं। वो मजबूती के साथ कहती हैं, “अब मेरी खुद की एक पहचान है। पहले ऐसा नहीं था, जब मुझे एक बोझ की तरह देखा जाता था। अक्षम लोगों को हमेशा नज़रंदाज़ कर दिया जाता है, क्यूंकि परिवार के लोग उन्हें आर्थिक रूप से एक बोझ समझते हैं। आज घर के पास और गाँव में ही अपनी आजीविका खुद से कमाने के कारण मैं अपने जीवन में बदलाव ला पायी हूँ।”
आजीविका के साधनों की उपलब्धता:
शारीरिक रूप से अक्षम लोग दुनिया में सबसे गरीब लोगों में से हैं, और भारत में गरीबी में रह रहे अक्षम लोगों की एक बड़ी संख्या है। आजीविका के साधनों और आजाद जीवन तक पहुँच ना हो पाना, अक्षम लोगों के लिये सम्मानजनक जीवन जीने के राह में सबसे बड़ी रूकावट है। ऐसे माहौल में, पुनीता की कहानी, विकलांग लोगों को पदोन्नति दिए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा प्रयोग की गयी कहावत, ‘अपने भाग्य के निर्माता’ को सही साबित करती है। अधिकतर लोग जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं अपनी आजीविका ग्रामीण इलाकों में रह कर अनियोजित तरीकों से कमाते हैं, आज जरूरत है कि अन्य क्षेत्रों में उनकी सहभागिता को लेकर बने इस अंतर को कम किया जाए।
सीबीएम और इसकी सहायक संस्थाओं नें कृषि के क्षेत्र में विकलांग लोगों को शामिल करने के लिए एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जिसमें अक्षम और सक्षम लोग साथ मिल कर जैविक उत्पाद (आर्गेनिक प्रोडक्ट) उगा और बेच सकें, यह एक नियंत्रित प्रक्रिया है जिसमे पहले से मौजूद संसाधनों से ही इसे विकसित किया जाता है। पांच राज्यों के 11000 किसान और पुनीता जैसे 5000 लोग इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। आर्थिक मदद और जरुरी प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) उपलब्ध कराए जाने पर कृषि का क्षेत्र अक्षम लोगों के सशक्तिकरण का मजबूत ज़रिया बन सकता है।
The post 5 साल की उम्र से उसे बोझ समझा जाता था, मिलिए पुनीता से जिन्होंने सभी को गलत साबित किया appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.