आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है। आवश्यकता ना हो तो इस धरा का अर्थ ही नहीं है। शरीर की भी कुछ अपनी आवश्यकता या कहें ज़रूरतें हैं, जैसे सांस लेने की, भोजन करने की, वस्त्र की ,आवास की इत्यादि और ठीक उसी प्रकार मनुष्य की भावनाओं, संवेदनाओं, कामुकता का भी अपनी ज़रूरतें होती हैं। भारत में “सेक्स” के बारे में मिथक और टैबू बने हुए हैं, जबकि सेक्स से वास्ता समय की शुरुआत से ही सबका रहा होगा और अगर हम भारतीय...
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