

बिहार सरकार जिन क्षेत्रों में सबसे अधिक सुधार की ज़रूरत पर बल दे रही है, उनमें शिक्षा और स्वास्थ्य प्रमुख है ताकि पढ़ाई और इलाज के लिए बच्चों और मरीज़ों को दूसरे राज्यों में भटकना न पड़े। लेकिन हैरत की बात यह है कि इतने प्रयासों के बाद भी, इन्हीं दोनों सेक्टर में सबसे अधिक कमियां और पलायन देखने को मिलते हैं। राज्य के लोग बेहतर इलाज के लिए लोग दिल्ली और चंडीगढ़ जाने को मजबूर हैं। जो गरीब और बेबस रह गए हैं, वह सरकारी अस्पताल की बदइंतज़ामी और भ्रष्टाचार की वजह से सस्ता और सुविधाजनक इलाज के नाम पर अपनी जान गंवा रहे हैं। आए दिन अखबार के पन्ने ऐसी खबरों से भरे रहते हैं। यह स्थिति ज्यादातर पिछड़े राज्यों की है। आयुष्मान कार्ड होते हुए भी ज़्यादातर निजी अस्पतालों में मजदूर तबका का इलाज नहीं करते। जानकारी के अभाव में वह प्राइवेट अस्पताल के एजेंट के फेर में फंस जाते हैं। एक बार इस मंडी में कोई गरीब पहुंच जाए, तो उसे अपनी जमीन, गहने, मवेशी बेचकर निजी अस्पताल का बिल भुगतान करने की मजबूरी हो जाती है। उसके बाद भी मरीज की जिंदगी भगवान भरोसे होती है।
उत्तर भारत के ज़्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा का हाल किसी से छुपा नहीं है। जहां पीएचसी है तो डॉक्टर नहीं, डॉक्टर है तो दवा उपलब्ध नहीं होती है। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की बदहाली का फायदा उठा कर ग्रामीण क्षेत्रों में कुकरमुते की भांति अवैध रूप से निजी क्लीनिक और नर्सिंग होम खुल गए हैं। इनका न तो सरकारी रजिस्ट्रेशन है और न ही उसमें डिग्रीधारी डॉक्टर बैठते हैं। हालांकि ज्यादातर ऐसे अस्पतालों के बाहर बड़े-बड़े डॉक्टर के नाम का साइन बोर्ड जरूर लगा होता है। एमबीबीएस, सर्जन, एमडी आदि की डिग्रियां बोर्ड पर चमकती रहती हैं। मगर गांव के भोले-भाले लोग इस गोरखधंधा से बिलकुल अनभिज्ञ रहते हैं जो आसानी से इनके चंगुल में फंस जाते हैं। निजी अस्पताल के एजेंट कमीशन के चक्कर में रोगियों को सस्ते में ऑपरेशन के नाम पर उन्हें मौत के मुंह में धकेल देते हैं।
जब इलाज के नाम पर निकल दी गई किडनियाँ
हाल ही में, बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सकरा थाना अंतर्गत बरियारपुर में चल रहे अवैध प्राइवेट क्लीनिक में रूह कंपा देने वाली घटना हुई थी। यहाँ पिछले वर्ष 3 सितंबर को सुनीता नाम की एक महिला पेट दर्द की शिकायत लेकर इलाज के लिए पहुंची थी। उसे दर्द से निजात दिलाने के लिए गर्भाशय का ऑपरेशन ज़रूरी बताया गया। मगर क्लिनिक में मौजूद झोलाछाप डॉक्टर ने आनन-फानन में उसका ऑपरेशन कर दोनों किडनी निकाल ली। इस घटना का खुलासा पटना स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएमएस) की रिपोर्ट में हुआ, जिसके बाद पूरे बिहार में हड़कंप मच गया। मामला सामने आने के बाद से क्लीनिक संचालक और फर्ज़ी डॉक्टर दोनों फरार हो गए थे। इन्हें बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।
रिपोर्ट के संबंध में आईजीआईएमएस के डॉ मनीष मंडल ने बताया कि सुनीता की दोनों किडनी जिस प्रकार निकाली गई है वह कोई प्रशिक्षित डॉक्टर नहीं कर सकता है। निकाली गई किडनी किसी दूसरे मरीज के शरीर में भी काम नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि डायलिसिस के जरिए मरीज़ को जिंदा रखा जा सकता है जो कि अधिक दिनों तक संभव नहीं है। उसका तत्काल किडनी ट्रांसप्लांट करना आवश्यक है। उक्त घटना का संज्ञान लेते हुए बिहार सरकार ने सुनीता का संपूर्ण इलाज सरकारी खर्चे पर करने का आदेश दिया। यह अच्छी बात है कि मानवता की मिसाल पेश करते हुए कुछ लोग सामने आए, जिन्होंने सुनीता को अपनी एक किडनी देने का प्रस्ताव दिया है। इस संबंध में शहर के एक समाजसेवी राधेश्याम सिंह कहते हैं कि सुनीता के साथ हुई घटना सरकारी अस्पताल और प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोल रही है। सरकार को इससे सबक लेकर प्राइवेट क्लीनिकों और नर्सिंग होम की सख्ती से जांच करानी चाहिए।
तेजी से बढ़ रहे हैं निजी अस्पताल और नर्सिंग होम
सुनीता के साथ हुआ यह अनोखा मामला नहीं है। ऐसी घटना देखनी हो तो बिहार के गांवों का रुख कीजिए। चमकती साइन बोर्ड कड़वी सच्चाई से अवगत करा देगी। गांव के चौक-चौराहे से लेकर प्रखंड तक अवैध रूप से संचालित क्लीनिक और नर्सिंग होम खुले मिल जाएंगे। कहीं आरएमपी, तो कहीं एमबीबीएस, एमडी, सर्जन आदि पदनाम वाले चिकित्सकों के बोर्ड के साथ-साथ सभी प्रकार की सर्जरी का प्रचार मिल जाएगा। इस संबंध में समाजसेवी विनोद जयसवाल कहते हैं कि यह सब सरकारी अधिकारियों के नाक के नीचे आम लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ है। क्या जिले के आला अधिकारियों को यह सब पता नहीं कि सुनीता जैसी सीधी-सादी गांव की महिलाएं असमय ऐसे नर्सिंग होम के चक्कर में यूट्रस का ऑपरेशन करा रही हैं, जहां न योग्य चिकित्सक की व्यवस्था है, न ही संसाधन है।
सरकारी अस्पतालों से गायब रहते हैं डॉक्टर
मुजफ्फरपुर के पारू ब्लॉक स्थित डुमरी गांव के मो. कादिर कहते हैं कि लापरवाही और कुव्यवस्था के लिए अधिकारी के साथ-साथ सरकार भी जिम्मेदार है। यही कारण है कि लोगों की जान सस्ती हो गई है। वह कहते हैं कि सरकार बदलती रहती है मगर व्यवस्था ज्यों-का-त्यों है। आज भी गरीबों का इलाज झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे है। हाल ही में मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन उमेश चंद्र शर्मा ने सरकारी चिकित्सकों (पीएचसी) से जवाब तलब किया था, जिसमें कहा गया कि चिकित्सकों की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं हो रहा है। मुसहरी, पारू, साहेबगंज ब्लॉकों के औचक निरीक्षण के दौरान सिविल सर्जन ने पाया कि कई चिकित्सक पीएचसी में ड्यूटी के दौरान मौजूद नहीं थे, जिसने तत्काल जवाब तलब करते हुए उनका वेतन बंद करने का आदेश दिया गया।
बहरहाल, सुनीता के साथ हुआ हादसा केवल एक गांव या ब्लॉक का नहीं है, बल्कि अनगिनत गांवों में ऐसे गोरखधंधे चल रहे हैं। यहाँ रोज गरीब, बेबस और अभावग्रस्त लोग लूटे जाते हैं। अवैध रूप से संचालित निजी क्लीनिक और नर्सिंग होम वाले इलाज के नाम पर गरीबों की गाढ़ी कमाई को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा। इनके एजेंट गांव-गांव, गली-गली में मौजूद हैं, जो अशिक्षित और गरीब लोगों के भोलेपन का पूरा फायदा उठाते हैं। उन्हें अच्छे इलाज के नाम पर पीएचसी की जगह झोलाछाप डॉक्टरों के पास पहुंचा देते हैं। यदि इलाज के दौरान किसी की मौत हो जाए, तब जाकर कहीं ऐसे मामलों का खुलासा होता है। वास्तव में, यदि गांव के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में सुदृढ़ और समुचित व्यवस्था के साथ-साथ डॉक्टरों की नियमित तैनाती हो, तो गरीब-बेबस लोगों को जान नहीं गंवानी पड़ेगी।
यह आलेख मुजफ्फरपुर, बिहार से सामाजिक कार्यकर्ता अमृतांज इंदीवर ने चरखा फीचर के लिए लिखा है. श्री इंदीवर विगत 10 वर्षों से विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर बेबाक लिखते रहे हैं. वर्तमान में वह लेखक के साथ साथ एक शिक्षक की भूमिका भी निभा रहे हैं.