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“दादा के मौत के बाद, प्रथा मुताबिक सातवीं में पढ़ने वाली मधू की शादी करा दी गई”

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उतरी पश्चिमी राजस्थान में मरुस्थल क्षेत्र में जहां लोगों की शैक्षिक स्थिति अच्छी नहीं। यह ऐसा इलाका है जहां अंधविश्वास व पुराने रीति रिवाजों का बोलबाला अधिक है। यहां एक प्रथा है कि घर में किसी बुजुर्ग की मृत्यु हो जाने के बाद, मौसर (मृत्युभोज) के दौरान जब लगभग सभी रिश्तेदार इकट्ठे होते हैं तब इस उपलक्ष में कन्याओं का सामूहिक विवाह किया जाता है। इसमें यह माना जाता है कि इस समय जितनी ज्यादा कन्याओं की शादी की जाएगी उतनी ही ज्यादा प्रतिष्टा व मान-सम्मान समाज में बढ़ेगा तथा पुण्य की प्राप्ति होगी। इसमें शादी के लिए लड़कियों की संख्या ज्यादा करने के लिए बड़ी लड़कियों के साथ-साथ छोटी लड़कियों की भी शादी कर दी जाती है। एक तरह से देखें तो सामूहिक विवाह एक अच्छी प्रथा है लेकिन इसमें होने वाले बाल विवाह हो, तो बहुत से बच्चों के स्वर्णिम भविष्य को अंधेरों में धकेल दिया जाता है। समाज में लोगों का मानना है कि इस दौरान की गई छोटी लड़कियों की शादी गुनाह नहीं बल्कि बहुत ही पुण्य का काम है।

कुप्रथा में सातवीं कक्षा की लड़की की शादी

 राजस्थान के बीकानेर जिले के ऐसे ही एक गांव के विद्यालय में नो बेगडे के दौरान सामाजिक संस्था द्वारा रचनात्मक गतिविधियों का आयोजन करवाया गया। इसमें बच्चे अपनी अपनी रुचि अनुसार वर्ली आर्ट, रंगोली, चित्रकारी व दृश्य कला चित्रण आदि गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे। इन सब के अलावा कक्षा 7 में पढ़ने वाली एक बालिका मधू (बदला हुआ नाम) सब गतिविधियों से अलग चुपचाप बैठी हुई थी। इससे गतिविधियों में जुड़ने के लिए कहा गया तो उसने बिना कुछ कहे सर हिला कर मना कर दिया। इस संबंध में जब अन्य बच्चों से बात की तो उन्होंने कहा कि पता नहीं यह विद्यालय की अन्य गतिविधियों में भी भाग नहीं लेती है। विद्यालय स्टाफ से बात की गई तो उन्होंने बताया कि यह पूर्व में ऐसी नहीं थी लेकिन कुछ समय पहले इसके बड़े दादा की मृत्यु के बाद की गई जिनमें 5 लड़कियों की शादी में इसकी भी शादी कर दी गई थी।

विवाह के बाद हुआ मधू के मानसिक स्वास्थ्य पर हुआ असर

इसके लगातार विद्यालय नहीं आने के कारण जब घर पर पता किया, तो इस घटना के बारे में हमें पता चला। परिवार वालों को समझाने में इससे बात करने पर इसने शुरुआत में तो विद्यालय आने से मना किया लेकिन ज्यादा समझाने के बाद यह विद्यालय आने लगी। शादी के बाद इसके माथे में सिंदूर लगा होने के कारण विद्यालय में बच्चे इसको चिढ़ाने लगे। इस तरह यह अन्य बच्चों से कटती चली गई और अनजाने में अपराध बोध महसूस करने लगी। तब लगातार चर्चा करने के बाद दूसरे बच्चों ने चिढ़ाना तो बंद कर दिया है लेकिन फिर भी यह ना तो मन से पढ़ाई करती है और ना ही किसी गतिविधियां में भाग लेती है। सामाजिक कार्यकर्ता ने मामले को गंभीरता से लेते हुए मधु की मनोस्थिति जानने के बाद बच्चों के साथ अलग से चर्चा की। उन्हें कहा गया कि जो अपराध उसने किया ही नहीं है उससे उसे निकालने में आप सब मददगार बने तो मधु पहले जैसी स्थिति में आ सकती है।

बाद में विद्यालय स्टाफ के साथ अलग से मीटिंग कर एक काउंसलर की व्यवस्था करने पर सहमति बनी। काउंसलर द्वारा लगातार बालिका व अन्य बच्चों के साथ काउंसलिंग की गई तथा मधु के परिवार वालों से भी बातचीत की गई। उन्हें बताया गया जो घटनाक्रम हुआ है उसने मधु के मानसिक स्वास्थ्य पर किस प्रकार नकारात्मक प्रभाव डाला है अगर आप इसमें सहयोग करें, तो मधु पहले की तरह हो सकती है। उन्हें यह भी कहा गया कि जब मधु विद्यालय में जाए तो उसे कहे कि वह माथे पर सिंदूर आदि लगाकर न जाए, वह अन्य बच्चों की तरह ही विद्यालय में जाएगी तो अलग महसूस नहीं करेगी। लगातार की गई काउंसलिंग के बाद विद्यालय में दोबारा जाना हुआ। अब पाया गया कि मधु धीरे-धीरे विद्यालय की गतिविधियों में भाग लेने लगी है एवं पढ़ाई में भी ध्यान देने लगी है।

बचपन बचाने में समाज को आना होगा आगे

यह एक मधु की कहानी नहीं है ऐसी सैकड़ों बालिकाओं की कहानी है जो सामाजिक रीति-रिवाजों एवं कुप्रथाओं के चलते अपने आगे बढ़ने के अवसरों को खोती जा रही है। हम सब की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों के विकास, उनके अधिकार पर ध्यान दें। गलत रीति रिवाजों का समर्थन ना कर इससे होने वाले दुष्प्रभावों पर समाज को जागरूक करें तथा सभी बच्चों को समानता के साथ आगे बढ़ने का समान अवसर प्रदान करें।


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