Quantcast
Channel: Campaign – Youth Ki Awaaz
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3094

“लड़कियां 12वीं के बाद पढ़ाई नहीं कर पाती क्योंकि कॉलेज गांव से बहुत दूर है”

$
0
0
Girl holding a notebook in rural IndiaGirl holding a notebook in rural India

किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए ज़रूरी है कि वहां न केवल बुनियादी ढांचा मज़बूत हो, बल्कि क्षेत्र की जनता को उसका पूरा लाभ भी मिल रहा हो। बुनियादी ढांचा से तात्पर्य स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सड़क, बिजली, पीने का साफ़ पानी, शौचालय की सुविधा, आवास और सभी स्तर पर संपर्क की सुविधा का होना आवश्यक है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या केवल बुनियादी ढांचा खड़ा कर देने से विकास का पैमाना पूरा हो जाता है या समाज के अंतिम पायदान पर खड़े गरीब, वंचित, महिला और दिव्यांग तबका को जब तक इसका लाभ नहीं मिलता है, इसे सफल नहीं माना जा सकता है?

केवल सरकारी भवन विकास का मापदंड नहीं

उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का रौलियाना गांव इसका एक उदाहरण है, जहां विकास का बुनियादी ढांचा तो खड़ा कर दिया गया है, लेकिन जनता को उसका कोई ख़ास लाभ नहीं मिल रहा है। यहां विकास भी कुछ इस तरह है कि यहां विकसित गांव में जो सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए, वह सभी सुविधाएं लोगों की नज़र में उन्हें प्राप्त हो गई हैं। गांव में अच्छे स्कूल, अस्पताल, पंचायत घर, खेलने का मैदान, अच्छी सड़क, शौचालय, सार्वजनिक कूड़ेदान की व्यवस्था, अच्छे रास्ते आदि सुविधाएं उपलब्ध हो तो वह गांव विकसित कहलाता है। लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है। केवल भवन और रास्ते बन जाने मात्र से कोई गांव विकसित नहीं हो जाता है।

संसाधनों की कमी

गांव विकसित तब माना जाता है, जब उपलब्ध साधनों का बढ़िया ढंग से उपयोग हो। इसकी कमी विकास को अधूरा बना देती है। जैसे गांव में अस्पताल की सुविधा तो है, लेकिन उसमें डॉक्टरों की कमी है। साधारण से लेकर गंभीर बीमारियों के इलाज का ज़िम्मा एक ही डॉक्टर के ज़िम्मे है। जिससे मरीज़ों का अच्छे से इलाज नहीं हो पाता है। हालांकि 39 वर्षीय रमा देवी कहती हैं कि गांव में अस्पताल तो है, पर सिर्फ देखने के लिए, क्योंकि इस अस्पताल में डॉक्टर नहीं है। जिस कारण गांव का विकास नहीं हो रहा है। लोगों को अपना इलाज करवाने के लिए दर दर भटकना पड़ रहा है। मामूली सर्दी, जुकाम के लिए भी उन्हें बहुत दूर दवा लेने जाना पड़ता है। वह कहती हैं कि यहां पर विकास के नाम पर सब कुछ आधा अधूरा है।

अच्छी शिक्षा की कमी

केवल स्वास्थ्य के क्षेत्र में ही नहीं, शिक्षा के क्षेत्र में भी यहां विकास अधूरा ही नज़र आता है। गांव में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साधनों का अभाव है। 12वीं में पढ़ने वाली ज्योति गोस्वामी कहती है, "हमारे गांव की लड़कियों को 12 के बाद आगे अपनी पढ़ाई को जारी रखने में काफी दिक्कत होती है, क्योंकि कॉलेज गांव से बहुत दूर है। जैसे-तैसे दाखिला हो भी जाए तो शाम को घर आने की समस्या रहती है, क्योंकि गांव आने वाली सवारी गाड़ियों की संख्या सीमित है। यदि क्लास ज़्यादा देर तक चली तो गाड़ी छूटने का भय बना रहता है। हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि कॉलेज के करीब हॉस्टल में रह कर पढ़ाई कर सकें। इसी कारण गांव की लड़कियां ज़्यादा पढ़ नहीं पाती हैं और विकास नहीं हो पाता है। यदि गांव में भी कॉलेज आने जाने की सुविधा हो जाए, गाड़ी पूरे दिन चले तो हम लोग बिना किसी समस्या के समय से कॉलेज आना जाना कर सकेंगे। इस सुविधा से जहां महिला शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा वहीं गांव का भी विकास संभव होगा।"

टेक्नोलॉजी में भी पिछड़ रहा गाँव

केवल कॉलेज की शिक्षा ही नहीं, बल्कि आधुनिक टेक्नोलॉजी के अभाव ने भी गांव के विकास को प्रभावित किया है। कंप्यूटर जैसी शिक्षा से अभी भी गांव की किशोरियां वंचित हैं। कक्षा 9वीं में पढ़ने वाली हिमानी का कहना है कि हमारे गांव में कम्प्यूटर सेंटर नहीं है। लड़के तो घर से बाहर जाकर सीख लेते हैं लेकिन हम लड़कियों को यह मौका नहीं मिल पाता है। स्कूल में अगर कंप्यूटर है तो बस दिखाने के लिए, वहां कुछ सिखाया नहीं जाता है। शहरों में बच्चों को बचपन से ही स्कूलों में कंप्यूटर की शिक्षा दी जाती है, परंतु गांव में हम लड़कियों को यह सुविधा नहीं मिल पाती है। जिससे विकास की प्रक्रिया रुक गई है।

बुनियादी जरूरतों की कमी

गांव की 44 वर्षीय रजनी देवी कहती हैं, वैसे तो हमारे गांव में काम चलाने लायक सभी चीजें हैं, पर प्राप्त कुछ भी नहीं है। अस्पताल है, मगर डॉक्टर नहीं, स्कूल है, परंतु अच्छी शिक्षा नहीं, जिस कारण गांव का पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है। इन्हीं बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण लोग गांव का प्राकृतिक वातावरण छोड़कर शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। 60 वर्षीय बुजुर्ग दुर्गा गिरी कहती हैं कि गांव को विकसित करने के लिए सरकार तो हर प्रकार से मदद कर रही है, लेकिन लोगों को विकास से कोई मतलब नहीं है। वह गांव से शहर की ओर पलायन करते हैं और फिर वहीं बस जाते हैं। जिससे गांव में विकास की गति प्रभावित होती है। चालीस वर्षीय चंदन का कहना है कि सरकार गांव में नई नई योजनाएं लाकर गांव को विकसित तो दिखा देती है, लेकिन वास्तव में गांव को विकसित बनाने के लिए अच्छे व योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं करती है। जिससे गांव के विकास की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है।

सरकार और गाँववालों के बीच दूरी

ग्राम प्रधान शोभा देवी कहती हैं कि गांव के विकास के लिए हर साल नई नई योजनाएं आती हैं। इससे गांव के लोगों को भी रोजगार मिल सकता है। लेकिन सरकार की इन योजनाओं को पूरा करने के लिए हमें गांव के लोगों की मदद और इच्छाशक्ति की जरूरत होती है जो हमें अपेक्षाकृत नहीं मिल पाती है। जैसे गांव में इंटरनेट का टावर लगवाना है, लेकिन गांव के लोग किसी भी हालत में टावर के लिए जमीन देने को तैयार नहीं होते हैं। गांव में अच्छी सिंचाई के लिए चौड़ी नहर बनाने की जरूरत है, लेकिन गांव के लोग उसमें भी जमीन को छोटा सा हिस्सा भी देने को तैयार नहीं हैं। हालांकि सरकार इसके बदले उन्हें मुआवज़ा देती है, लेकिन फिर भी लोग तैयार नहीं होते हैं।

बहरहाल, किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए केवल बुनियादी ढांचा का खड़ा होना काफी नहीं है बल्कि उसमें सुविधाओं का पूरा होना आवश्यक शर्त है। लेकिन यह उसी वक़्त मुमकिन है जब सरकार के साथ साथ जनता भी इसके लिए प्रतिबद्ध हो। समाज के सभी वर्गों तक सुविधाओं के समान वितरण की ज़िम्मेदारी सरकार, स्थानीय प्रशासन, जनप्रतिनिधि और पंचायत के साथ साथ आम जनता की भी है। इसके लिए जागरूकता सबसे ज़रूरी है। जिससे विकास के चक्र को पूरा किया जा सकता है।

यह आलेख उत्तराखंड के रौलियाना गांव से पूजा गोस्वामी से चरखा फीचर के लिए लिखा है। पूजा 11वीं की छात्रा है और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन तथा चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क के संयुक्त "प्रोजेक्ट दिशा" से जुड़ी हुई है। प्रोजेक्ट से जुड़ने के बाद उसने न केवल अपने अधिकारों को जाना है बल्कि अब वह महिला अधिकारों और सामाजिक मुद्दों पर लिखती रहती है


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3094

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>