

युवा शक्ति देश की पूंजी होती है। भारत के बारे में कहा जाता है कि यह एक युवा देश है। युवा किसी भी समाज या देश की दशा और दिशा बदलने की क्षमता रखते हैं। उनके आह्वान से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। तम्बाकू मुक्त भारत के सपने को साकार कर सकते हैं। मगर युवाओं को अपनी ऊर्जा सही दिशा में लगानी होगी। तम्बाकू को लेकर नकारात्मक पूर्वाग्रहों से मुक्त होने की जरूरत पड़ेगी इस लड़ाई में। पूर्वाग्रह जो नशे को दवा मानने की बड़ी भूल करते हैं। तम्बाकू को दोस्त समझते हैं।
कैसे करें लोगों को जागरूक
प्रभावों के ऊपर जागरूक कर सकते हैं। तम्बाकू मुक्त जीवन स्वस्थ जीवन का आधार है। हस्तक्षेप के बिना बदलाव की कामना नहीं की जा सकती। हस्तक्षेप की परंपरा मज़बूत भविष्य की नींव रखेगी । तंबाकू के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव के प्रति आगाह होना होगा। स्थानीय क्षेत्र में तंबाकू मुक्त जीवन के महत्व का संदेश फैलाने के लिए जनसमर्थन जुटाना होगा। स्वस्थ और धूम्रपान मुक्त वातावरण की दिशा तय करनी होगी। समुदाय को तम्बाकू मुक्त करने की ओर तंबाकु खरीदने बैचने की उम्र बढ़ाकर 18 से 21 करने की मांग इसमें अहम है।
देश में तंबाकू के विरुद्ध हो रहा काम
देश भर में युवा तम्बाकू के विरुद्ध संगठित हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश पंजाब और अन्य जगहों पर जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। जमीनी स्तर पर स्कूलों में तम्बाकू मुक्त युवा रैलियां निकाली जा रही हैं। कॉलेज लेवल पर विद्यार्थियो के लिए सेमिनार आयोजित किए जा रहे हैं। नीति के आधार पर भी बदलाव आए हैं।
1. माननीय वित्त मंत्री श्रीमती सीतारामन ने तम्बाकू करों में 16% इज़ाफा किया था। इससे तंबाकू एवम उससे जुड़े उत्पादों की खरीद एवम बिक्री सीधे प्रभावित हुई।
2. हिमाचल हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा युवाओं के भविष्य के संदर्भ में तम्बाकू पदार्थों पर कर की बढ़ोतरी करने का सराहनीय निर्णय लिया गया । हिमाचल सरकार द्वारा सीजीसीआर के तहत तम्बाकू पदार्थों पर टेक्स 3 रुपए से 4.50 बढ़ाया गया।
4. स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार द्वारा ओटीटी को कोटपा नियमों के दायरे में लाया गया
5. विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर सरकार द्वारा देशभर में कार्यक्रम आयोजित किए गए ।
कैसे रोक लगे तंबाकू बिक्री पर
तम्बाकू मुक्त भारत के लिए एक बृहद दृष्टिकोण आवश्यक है। समस्या का करीबी अवलोकन ज़रूरी है। तंबाकू की खपत का स्तर गरीब बच्चों और निम्न आय समूहों के बच्चों में अधिक है। तम्बाकू कंपनियां इन्हें ही लक्षित करती हैं। हमारे यहां सिगरेट की दुकानों के लिये लाइसेंस की कोई व्यवस्था नहीं उपलब्ध है। बच्चों एवं किशोर बाज़ार के भ्रम में इसलिए फंस जाते हैं।तंबाकू उत्पादों की खरीद एवम बिक्री पर अंकुश लगाने के लिये कारगर नियम होने चाहिए।
किशोरों में बढ़ रहा है तंबाकू सेवन
वैश्विक युवा तंबाकू सर्वेक्षण 2019 में किशोरों में 13-15 वर्ष के बीच तंबाकू के सेवन दर 8.5 फीसद थी । इसी सर्वेक्षण 2010 में यह आंकड़ा अधिक था। 14.6 फीसद को छू रहा था । दोनों अध्ययन हालांकि सकारत्मक बदलाव की ओर इशारा कर रहे हैं। लेकिन तम्बाकू मुक्त होने का लक्ष्य अभी दूर है।
शिक्षण संस्थानों के पास न हो दुकानें
एक अन्य अध्ययन ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजिज स्टडी’ के की मानें तो 2019 में भारत में धूम्रपान और सेकंड हैंड धुम्रपान के कारण 12 लाख लोग प्रभावित थे। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नए अनुमान के मुताबिक देश में तंबाकू के इस्तेमाल से हर साल 13.5 लाख लोग प्रभावित होते हैं। कोटपा अधिनियम के तहत तम्बाकू नियमों में मुख्य रूप से शिक्षण संस्थानों के 100 गज दायरे में तंबाकू उत्पादों को बेचना और खरीदना मना है। इसमें संलिप्त के खिलाफ कारवाही की जाती है। हरित एवम स्वस्थ कैंपस के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है।
सिगरेट की दुकानों के लिए हो लाइसेंस
तम्बाकू मुक्त भारत के लिए एक बृहद दृष्टिकोण आवश्यक है। समस्या का अवलोकन ज़रूरी है। तंबाकू की खपत का स्तर गरीब बच्चों और निम्न आय समूहों के बच्चों में अधिक है। तम्बाकू कंपनियां इन्हें ही लक्षित करती हैं। हमारे यहां सिगरेट की दुकानों के लिये लाइसेंस की कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। बच्चों एवं किशोर बाज़ार के भ्रम में इसलिए फंस जाते हैं। नवयुवक एवम किशोर कम उम्र में ही इस ओर आकर्षित होने लगते हैं। तंबाकू उत्पादों की खरीद एवम बिक्री पर अंकुश लगाने के लिये कारगर नियम समय की मांग है।
तंबाकू का नशा छोड़ने में मदद कर सकता है समाज
युवाओं की मानसिक एवम सामाजिक तैयारी में युवाओं की सेहत बचाने के लिए युवा केन्द्रित कार्यक्रम होने चाहिए।ऐसे अभियान भविष्य की नींव रखेंगे। बदलाव की कड़ी बनेंगे। देश में लाखों लोग सालाना तंबाकू से उत्पन्न बीमारियों एवम विकार की चपेट में आ जाते हैं। हालांकि तंबाकू व नशाखोरी की लत में आकर गरीबी की ओर धकेले जाते हैं। अकेलेपन में छोड़ आते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि धूम्रपान की लत को छोड़ना आसान नहीं होता है। किंतु किसी भी लत से छुटकारा पाने के लिए मानसिक तैयारी जरूरी है। तम्बाकू के विरुद्ध युवाओं को ना केवल मानसिक अपितु सामाजिक लड़ाई भी लड़नी है। मानसिक स्तर पर उन्हें स्वयं को मज़बूत करना है। जबकि सामाजिक संघर्ष में घर परिवार समुदाय का सहयोग चाहिए होगा। व्यक्ति यदि जिम्मेवारी निभा रहा तो समाज का भी दायित्व जरूर बनता है। असल में दोनो एक दूसरे के पूरक हैं।
क्या है कोटपा अधिनियम
तम्बाकू को रोकने में युवा केंद्रित कोई भी संघर्ष कोटपा अधिनियम 2003 के पूरी जानकारी के बिना संभव नहीं है। कोटपा के बारे आमजन में बहुत कम जानकारी है । स्वास्थ को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाने की जरूरत है। स्वास्थ किसी भी देश की बड़ी पूंजी होती है। युवा शक्ति पूंजी होती है। आज तंबाकू एवम उससे जुड़े उत्पाद आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं । हालात को बदलने के लिए सरकारों एवम समाजसेवी संस्थानों
को आगे आना होगा।समाधान की दिशा में साथ चलना होगा।
पहले से बढ़ी है जागरूकता
विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर हुए कार्यकर्मों में युवाओं का उत्साह देखने लायक रहा। तम्बाकू को लेकर वो पहले से अधिक जागरूक हैं। किंतु मानसिक एवम सामाजिक स्तर पर स्वयं को मजबूत करना पड़ेगा। व्यवहार में बदलाव लाना होगा। जानकारी को व्यवहार में लाना होगा। इसके लिए उनके पास पर्याप्त कौशल हैं। घर परिवार की महिला सदस्य को इसमें सहयोग देना होगा। महिलाओं को परिवार का रोल मॉडल माना जाता है। वो किसी प्रकार के तम्बाकू का सेवन नहीं करेंगी तो घर में भी इसका असर होगा। प्रसव के दौरान या उससे पहले धूम्रपान के संपर्क में आने से होने वाले बच्चे पर असर पड़ता है। वो बाजार से भ्रमित ना हों क्योंकि वो तम्बाकू को एंपावर होने का जरिया दिखाता है। फेमिनिस्ट होने का अपना पैमाना गढ़ता है।
जागरूकता के बावजूद क्यों नहीं छोड़ते लोग सिगरेट
तम्बाकू मुक्त भारत के सपने को हर युवा को देखना चाहिए क्योंकि संकल्प से देखा गया सपना अवश्य साकार होता है। देश को तम्बाकू मुक्त करने के लिए नियम एवम कानून के स्तर पर तैयारियां अब पहले से कहीं अधिक हैं। मगर नियम बन जाने से चीजें नहीं पूरी बदलती। व्यक्ति एवम समाज को भी तैयार होना पड़ता है। युवाओं को अपनी क्षमता को पहचानना होगा। मन को संकल्प एवम बदलाव की दिशा में ले जाना होगा। युवाओं में तम्बाकू को लेकर जागरूकता की कमी भी नहीं।
लेकिन उन्हें देश के सपने को पूरा करने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी। सरकारों द्वारा लगाई रोक जनसहयोग के बगैर सफल नहीं हो सकती। सहयोग एवम समर्थन के साथ चुनौतियों का सामना वो कर सकते हैं । तम्बाकू से मुक्ति की राह में कई चुनौतियां हैं। मीडिया द्वारा निर्मित छवियों का रोल भी इसमें है। मिडिया प्रचार प्रसार का बड़ा माध्यम है। विज्ञापन के दम पे मिडिया हाउसेज चलते हैं। विज्ञापनों के चयन में लेकिन सावधानी बरतें। मिडिया का चयन मानसिक एवम सामाजिक तैयारी में अहम होगी। इसलिए विवेक से अपने मिडिया का चयन करें।