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“मेरे जैसे और भी लाखों बच्चे हैं जिनसे ज़बरदस्ती काम करवाया जाता है”

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निशा:

9 साल की उम्र से ही मैंने एक घर में हाउसहेल्प के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। मेरा काम घर की सफाई करना और बाज़ार से ज़रुरत की चीजें लेकर आना था। वहां काम करने के दौरान मैं आंटी के बच्चों को ‘स्कूल’ नाम की जगह जाते देखा करती थी। एक दिन मैंने आंटी से स्कूल के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि स्कूल वो जगह होती है जहाँ बच्चे सीखते हैं और शिक्षा ग्रहण करते हैं। मुझे ये काफी एक्साईटिंग लगा और मैंने उनसे कहा कि मैं भी सीखना चाहती हूँ, स्कूल जाना चाहती हूँ। मैंने उनसे कहा ‘मैं काम नहीं करना चाहती हूँ’

आंटी ने कहा, “तुम कैसे स्कूल जाओगी? तुम्हे ना तो लिखना आता है और ना ही पढ़ना और तुम्हारे पास कोई आइडेंटिटी प्रूफ (पहचान पत्र) भी नहीं है।” लेकिन उन्होंने मुझे खुद ही पढ़ाने की बात मेरे सामने रखी। तो अब काम के बाद हर दिन मैं उनके साथ बैठती और वो मुझे पढ़ाती। मैंने एबीसी सीखी, 123 यानि कि गिनती सीखी, मेरा और मेरे मम्मी-पापा का नाम लिखना सीखा साथ ही मैंने अंग्रेज़ी के कुछ शब्द बोलना भी सीखे। मुझे ये नयी चीज़ें सीखना बड़ा अच्छा लग रहा था, मैं और सीखना चाहती थी, कुछ बनना चाहती थी।

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निशा की बनाई हुई एक पेंटिंग

मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर में हुआ था और जब मैं बहुत छोटी थी तभी मेरे पापा काम की तलाश में दिल्ली आ गए थे। जल्द ही मैं, मेरी मम्मी और मेरी दो बड़ी बहनें भी दिल्ली आ गयी और हम लोग जंगपुरा की एक झुग्गी बस्ती में रहने लगे। जब हम तीनों बहनें बड़ी हो रही थी तो मेरी मम्मी बहुत परेशान रहने लगी और बार-बार यही कहती कि हम लोग कुछ काम क्यूँ नहीं करते ताकि कुछ पैसे कमाए जा सकें। 2 साल जंगपुरा की झुग्गी बस्ती में रहने के बाद केंद्र सरकार ने हमारी झुग्गी तोड़ दी और हम बेघर हो गए। इसके बाद हम श्रीनिवासपुरी की एक झुग्गी में रहने लगे। मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि मेरी ज़िन्दगी अब बदलने वाली है।

श्रीनिवासपुरी में मैं एक लड़की से मिली जिसने मुझे एक ऐसे एन.जी.ओ. के बारे में बताया जो काम करने वाले बच्चों की मदद करता है। मैंने उससे कई सवाल पूछे और उसने मुझे जो बताया उससे मैं काफी रोमांचित हो गयी। उसने मुझे बताया कि काम करने के बजाय मैं एन.जी.ओ. के सेंटर में जाकर पढाई कर सकती हूँ। तो मैं एक दीदी से मिली, वो एक बहुत ही अच्छी दीदी हैं उन्होंने मुझसे कहा कि वो मेरी मदद ज़रूर करेंगी।

मैंने एन.जी.ओ. वाली दीदी से मम्मी-पापा को मेरे स्कूल जाने के लिए मनाने के लिए कहा। शुरुआत में वो नहीं माने क्यूंकि हमारे पास पैसे नहीं थे और वो चाहते थे कि मैं पैसे कमाने के लिए काम करूँ। लेकिन दीदी ने मेरे पापा से पूछा, “क्या पैसों के लिए आप अपनी बेटी का भविष्य बर्बाद कर देंगे।“ मेरे पापा ये सुनकर सकते में आ गए और मेरी पढाई के लिए राज़ी हो गए।

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निशा की लिखी एक कविता

जब मैंने सेंटर में पढ़ना शुरू किया, तो दीदी को इस बात का एहसास हुआ कि मुझे काफी सारी चीज़ें मालूम हैं और मैं स्कूल जाने के लिए तैयार हूँ। फिर उन्होंने एक अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल में छठी क्लास में मेरा एडमीशन करवा दिया। अब मैंने हर दिन स्कूल जाना शुरू कर दिया। जब मैंने मेरी क्लास के बच्चों को बताया कि मैं पहले काम किया करती थी तो, उन्हें इस बात पर बड़ा अचरज होता था। शुरुआत में पढाई में मुझे कुछ दिक्कतें आई, लेकिन अब मैं अच्छा कर रही हूँ। हिन्दी और अंग्रेज़ी मेरे मनपसंद सबजेक्ट (विषय) हैं। मेरी मैथ्स (गणित) टीचर पहले मुझे डांटा करती थी, लेकिन अभी हाल ही में हुई परीक्षाओं में मुझे अच्छे मार्क्स मिले हैं और वो कहती हैं कि मैं इससे भी अच्छा कर सकती हूँ।

मुझे बहुत मेहनत से पढ़ाई करनी पड़ती है क्यूंकि अगर मैं पीछे रह गई तो मुझे स्कूल से निकाल दिया जाएगा। मैं स्कूल जाने के लिए सुबह 6 बजे उठ जाती हूँ, मुझे 8 बजे बस पकड़नी होती है और दोपहर को मैं एन.जी.ओ. सेंटर में आती हूँ। फिर वहां से मैं ट्यूशन के लिए जाती हूँ। इसके बाद ही मैं घर जाती हूँ और फिर मेरा होमवर्क करने के बाद 9 बजे सो जाती हूँ। मुझे स्कूल में ब्लैकबोर्ड पर लिखना और खेलना बहुत पसंद है- वॉलीबॉल, खो-खो, बैडमिंटन… लेकिन मैं एक चीज़ को मिस करती हूँ और वो है डांस क्लास!

आप देख सकते हैं कि जब मैं 9 साल की थी और मुझसे ज़बरदस्ती काम करवाया जाता था, तबसे मेरा जीवन अब काफी अलग हो चुका है। मेरे जैसे और भी लाखों बच्चे हैं जिनसे ज़बरदस्ती काम करवाया जाता है। जो लोग बच्चों को काम पर रखते हैं उने मैं ये कहना चाहती हूँ कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम करवाना गलत है। जो भी इसे पढ़ रहे हैं उनको भी मैं ये सन्देश देना चाहती हूँ कि अगर आपके आस-पास कोई छोटा बच्चा आपको काम करता दिखाई दे तो 1098 (24 घंटे बच्चों के लिए चलने वाली हेल्पलाइन) पर कॉल करे और शिकायत दर्ज करवाएं।

मैं सरकार से भी ये कहना चाहती हूँ कि किसी बच्चे का स्कूल में एडमीशन इसलिए ना रोका जाए क्यूंकि उसके पास सर्टिफिकेट नहीं हैं। नरेन्द्र मोदी जी अगर आप इसे पढ़ रहे हैं तो मैं आपसे ये कहना चाहती हूँ कि भारत में बच्चों के सामने कई परेशानियाँ हैं और उन्हें सरकार से सहयोग की ज़रूरत है। मेरे पास कोई बर्थ सर्टिफिकेट (जन्म प्रमाण पत्र) नहीं है क्यूंकि मेरी माँ को एक लड़की के लिए ये ज़रूरी नहीं लगता। इस कारण मैं ‘लाडली’ का फॉर्म नहीं भर सकती ताकि मुझे मेरी पढ़ाई के लिए आर्थिक सहायता मिल सके। मैं ऐसी अकेली बच्ची नहीं हूँ, मेरी तरह लाखों ऐसे बच्चे हैं, जिनका सर्टिफिकेट ना होने की वजह से स्कूल में दाखिला नहीं हो पाता। क्या ये सही है? नहीं ये बिलकुल सही नही है।

जहाँ तक मेरी बात है, मेरी मम्मी को अभी भी यही लगता है कि लड़के, लड़कियों से बेहतर होते हैं क्यूंकि लड़कियां शादी के बाद घर से चली जाती हैं। लेकिन मैं मेरी माँ को चिंता ना करने के लिए कहती हूँ। लड़कियों में काफी शक्ति है। आजकल वो सभी जगह काम कर रही हैं- एअरपोर्ट में, बसों में, सभी जगह। दसवीं के बाद मैं बारहवीं में भी पढ़ना चाहती हूँ, फिर कॉलेज या कोई ख़ास कोर्स या फिर कोई ट्रेनिंग ताकि मुझे नौकरी मिल सके। मैं बड़े होकर एन.जी.ओ. में काम कर के मेरे जैसे बच्चों की मदद करना चाहती हूँ। और मैं मेरे इस सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करुँगी।

Nisha, 14, hails from a small town in UP. At the tender age of 9, she was forced to work as a domestic helper in a posh suburb in Delhi. Eventually through Save The Children’s partner NGO Salaam Baalak Trust, Nisha was enrolled in an English Medium school, where she excels in her studies.

Nisha will be speaking at our upcoming event “#TheInvisibles: A Dialogue”, on October 8, 2016 in Delhi. Click here to register and for more details

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