माहवारी, पीरियड्स, मेंसट्रूएशन.. नाम अलग हैं लेकिन व्याख्या एक। एक लड़की या स्त्री के शारीरिक विकास के लिए पीरियड्स होना उतना ही जरूरी है जितना कि खाना खाना या सांस लेना। ये एक स्त्री के शरीर की सामान्य प्रक्रिया है फिर भी पीरियड्स को शर्म, अपवित्रता और ना जाने कितने सामाजिक मिथकों से जोड़ा जाता है। पीरियड्स को समाज में एक टैबू मानने के लिए भी हम ही ज़िम्मेदार हैं। दुनिया तरक्की कर रही है लेकिन पीरियड्स को लेकर हमारी सोच आज भी वहीं है।
क्यों एक औरत जिसे समाज में देवी का दर्जा दिया जाता है, अचानक अछूत और अपवित्र हो जाती है? क्यों एक औरत जिसे अन्नपूर्णा बनाकर पूरे परिवार को भोजन खिलाने की ज़िम्मेदारी थमा दी जाती है, अचानक रसोई में उस ‘अन्नपूर्णा’ की एंट्री पर पाबंदी लग जाती है? क्यों एक औरत पीरियड्स के दौरान किसी धार्मिक स्थल में नहीं जा सकती? क्या अपवित्र हो जाएगा उनके वहां जाने से मंदिर या वहां बैठा भगवान? हर जगह औरत और मर्द में बराबरी की बात करने वाला समाज ,क्यों महीने के उन कुछ दिनों में अपनी सोच खोखली कर बैठता है?

अगर औरत देवी है तो पीरियड्स में उसे देवी मानने से गुरेज क्यों? इसी दोगली सोच को आईना दिखाता है गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी का मंदिर। इस मंदिर में उस वक्त भक्तों का तांता लग जाता है जब मंदिर के पास स्थित ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल रंग का हो जाता है। पानी का रंग लाल होने का कारण कामाख्या देवी के मासिक धर्म को माना जाता है। बाकी मंदिरों से परे यहां प्रसाद के रूप में भक्तों को लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे भक्त धन-धान्य की वृद्धि के लिए अपने घर में रखते हैं। क्या ये भक्त उस समाज का हिस्सा नहीं हैं ,जो महिला को पीरियड्स के दिनों में अपवित्र मानते हैं?
अपवित्र होने का ये एहसास मुझे भी बचपन से आज तक हर उस बार कराया गया जब पीरीयड्स के दौरान मुझे पूजा पाठ से दूर रखा गया, धार्मिक स्थलों पर जाने से मना किया गया, जैसे ‘भगवान’ मुझसे रूठ जाएगा। ऐसा होता तो अब तक मुझे उन दिनों के लिए श्राप मिल जाना चाहिए था, जब मैं चुपके-चुपके बिना किसी को बताए पीरियड्स के दौरान मंदिर गई!
बचपन में मम्मी और नानी को यही कहते सुना कि “पीरियड्स के दौरान अचार को हाथ मत लगाता सड़ जाएगा..” जब मैंने पूछा क्यों? क्या पीरियड्स हाथ से होते हैं जो अचार सड़ जाएगा या पीरियड्य कोई संक्रामक रोग है? “बड़े जो कहते हैं सही कहते हैं” ये कहकर मुझे भी चुप करवा दिया गया। लेकिन लॉजिकली सोचा जाए तो इसलिए अचार को हाथ लगाने से मना किया जाता था, क्योंकि पहले साल भर का अचार एक साथ बड़े-बड़े मर्तबान (चीनी मिटटी का एक बड़ा बर्तन) में रखा जाता था। पीरियड्स के दौरान एक महिला को भारी वजन नहीं उठाना चाहिए इसलिए मर्तबानों को छूने से मना किया जाता था। इससे अचार के सड़ने का कोई मतलब नहीं, लेकिन अफसोस हम आज भी लॉजिक लगाने के बजाए सालों से चलती आ रही भ्रांतियों पर जीते चले आ रहे हैं।
सच मानिए हम सब इन पुरानी और दकियानूसी बातों को अपने दिमाग भरते जा रहे हैं, बिना ये सोचे कि आखिर इनके क्या मायने हैं। अपने दिमाग को दुरुस्त कीजिए इससे पहले की युवाओं और आने वाली नस्लों के दिमाग भी इन्ही वाहियात बातों से संक्रमित हो जाएं।
The post कामाख्या देवी को पीरियड्स आए तो प्रसाद और हमें आए तो हम अछूत? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.