माहवारी, हर महीने औरतों को होने वाली ब्लीडिंग, जान लेने जैसी कमर दर्द, पेट में कपड़े को निचोड़ देने वाले जैसे मरोड़े, फट कर बह जाने वाले सर-दर्द, दिन-रात बाथरूम के चक्कर, और खुद ही से होने वाली चिढ़ से कहीं ज्यादा है।
माहवारी औरत के उस अंग की स्वस्थता का आईना है, जिससे वो एक इंसान को धरती पर लाती है। यह शर्म की या चुप्पी की बात नहीं हैं, ख़ुशी की निशानी है, बच्चे पैदा करने की शक्ति के साथ-साथ स्वयं औरत के स्वस्थ शरीर की निशानी है।
जब हम रोटी-कपड़ा और मकान को ज़रुरत समझते हैं, जब हमारा समाज बेसिक दवाइयों को जरुरत समझता है, साफ़ पानी सबकी जरुरत है, जब साफ़ हवा के लिए एयर पॉल्यूशन एक्ट लाया जा सकता है, तो क्यूँ स्वस्थ माहवारी, स्वच्छ माहवारी पर खुल कर बातें नहीं होती?
बचपन से मैंने कोटेक्स, स्टेफरी, व्हिस्पर जैसी प्राइवेट कंपनियों के विज्ञापन के अलावा माहवारी के लिए बड़े स्तर पर सरकारी या प्राइवेट, या कोई सामाजिक कैम्पेन नहीं देखा।
मुझे याद है, मेरी माँ ने सबसे पहले मुझे माहवारी के बारे में बताया था, वो खुल कर बात करती थी मुझसे हर पहलू को लेकर। तब मैं छठी में थी और मुझे माहवारी आना शुरू भी नहीं हुआ था। फिर जब दसवीं में मुझे पीरियड्स आना शुरू हुए, तब हम इतने गरीब नहीं थे कि माँ सैनेटरी पैड्स खरीद ना सके, लेकिन माँ मुझे कपड़े के पैड्स बना कर देती थी, इस तरीके से खुद मुझे सेट करके देती थी कि स्कूल में मुझे कोई दिक्कत ना हो, और तब तक मुझे कपड़े धोना नहीं आता था, इसलिए माँ खुद मेरे कपड़े वाले पैड्स धोती भी थी, हमेशा कहती थी कि “इसी खून से इंसान बनता है, ये गन्दा नहीं होता बल्कि इससे ज्यादा गन्दगी तो हमारे अंदर भरी रहती है, इससे किसी भी तरह की चिढ़ मत करना।”
हम उस समय अच्छे से जानते थे कि कोटेक्स, स्टेफ्री कितने पॉप्युलर हैं, और आसानी से मिलते भी थे, लेकिन माँ कहती थी वो अच्छे नहीं रहते-सूती कपड़ा ज्यादा अच्छा रहता है-पसीना भी सोखता है और इंफेक्शन नहीं होगा उससे, तब मैं माँ की बात मानती थी।
फिर थोड़ी बड़ी हुई, विज्ञापनों और दोस्तों का असर माँ की बातों से ज्यादा होने लगा, माँ की बातें ओल्ड-फैश्नड लगने लगी। तब रेडीमेड पैड्स यूज़ करने लगी, क्योंकि पहली बात धोना नहीं पड़ता था, दूसरी बात पहले तैयारी नहीं करनी पड़ती थी और तीसरी बात कपड़े की बजाय ये पैड्स थोड़े पतले होते थे, जिससे बाहर से पता ना लग सके। तब तक ये नहीं पता था कि किससे बनते हैं, क्या नुकसान करते हैं, और क्यों इन्हें इस्तेमाल किया जाना चाहिए या नहीं किया जाना चाहिए।
अब मुझे पता है इसलिए लिख रही हूँ। सबसे पहला सवाल,
1) सैनेटरी नैपकिन्स (जो सबसे ज्यादा पॉप्युलर हैं, इंडिया में), वो किस चीज़ से बने होते हैं?
ये सैनेटरी पैड्स हर उस केमिकल से बनते हैं, जो हमारे वातावरण के लिए, उसे इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए और साथ ही साथ उनसे पैदा होने वाली पीढ़ी ले लिए भी घातक हैं। नीचे पूरी लिस्ट है उन महत्वपूर्ण केमिकल्स की, जो इस तरह के नैपकिन्स में इस्तेमाल होते हैं।
अ) डाइअॉक्सिन- ये सबसे ज्यादा घातक यौगिक है। शुद्ध रुई एकदम सफ़ेद नहीं होती और ज्यादा सफ़ेद दिखाने के लिए डाइअॉक्सिन से ब्लीच किया जाता है रुई को। यह यौगिक लीवर के लिए, यूट्रस यानि गर्भाशय के लिए कैंसर जैसा खतरा पैदा कर देता है।
आ) डियोडराइज़र्स- सैनेटरी पैड्स को खुश्बूदार बनाने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले केमिकल शरीर के लिए बेहद नुकसानदायक होते हैं, जो महिलाओं के गर्भाशय को नुकसान पहुँचाते हैं और साथ ही साथ आने वाली पीढ़ी में जन्मजात बीमारियां पैदा करते हैं।
इ) बैक्टीरिया- दो-तीन घंटे के बाद खून को सोखने के लिए सैनेटरी पैड्स में लगाये गए “जेल” में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जो इंफेक्शन का कारण बनता है।
इन सब के अलावा भी ये सेल्यूलोस, प्लास्टिक, और न जाने कितने केमिकल्स से बनता है। इसके साथ-साथ ऊपर के प्लास्टिक के बने कवर और पैंटी-लाइनर्स जो वातावरण के लिए बेहद खतरनाक होते हैं।
वातावरण को सैनेटरी नैपकिन्स से होने वाले नुकसान और कपड़े के पैड्स कैसे बनायें या इस तरह की इंडस्ट्री को खड़ा कर किस तरह ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देकर, इकोनॉमी विकास में योगदान दे सकते हैं, ये सब मैं आपको अगले कुछ कॉलम्स में बताऊँगी।
जानती हूँ इसके लिए सरकार ने कभी कुछ नहीं किया, बहुत कुछ किया जा सकता था, और अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है, लेकिन मैं इसमें सरकार की गलती तब तक नहीं मानती, जब तक की हम सभी जानते हुए भी गलत को रोकने और अपने या अपने समाज या अपने वातावरण की बेहतरी के प्रयास नहीं करते।कई बार जब हम गलत रास्ता अपना लेते हैं, तब हमें यू-टर्न लेकर वापस आना होता है, और जहाँ से गलत रास्ता पकड़ा था, वहाँ से फिर सही रास्ता पकड़ना होता है।
सैनेटरी पैड्स वही एक गलत रास्ता है, जो हमारे स्वास्थ्य और वातावरण दोनों के लिए खतरा है, जिसे छोड़ने की हिम्मत करना तब तक मुश्किल है, जब तक हमें उसका कोई और अच्छा विकल्प नहीं मिलता, और आजकल की भाग-दौड़ भरी लाइफ-स्टाइल में उस विकल्प का आसानी से उपलब्ध होना भी बहुत जरुरी है। लेकिन तब तक ध्यान रखिए- नॉर्मल ब्लीडिंग के लिए घर पर कॉटन के पैड्स तैयार करिये। सैनेटरी पैड्स को कम से कम समय के लिए इस्तेमाल कीजिये, जिससे इंफेक्शन कम हो।
और हाँ, सैनेटरी पैड्स को यहाँ -वहाँ बिलकुल न फेंके। इनका आधा भाग नॉन-बायोडिग्रेडेबल यानि जैव-निम्नीकरण होता है, जो हमारे हवा-पानी को दूषित करता है।
The post सुरक्षित माहवारी के लिए असुरक्षित सैनेटरी पैड्स पर ज़ोर क्यों? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.