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Channel: Campaign – Youth Ki Awaaz
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पीरियड्स की सही जानकारी से ही संवेदनशील बन पाएंगे हम ‘लड़के’

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ये लेख, Youth Ki Awaaz द्वार शुरु किए गए अभियान #IAmNotDown का हिस्सा है। इस अभियान का मकसद माहवारी से जुड़े स्वच्छता मिथकों पर बात करना है। अगर आपके पास पीरियड्स में स्वच्छता के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले प्रॉडक्ट्स को सुलभ बनाने का तरीका हो या पीरियड्स के मिथकों से लड़ने वाली कोई निजी कहानी हो तो हमें यहां भेजें

मैं उस समय आठ या नौ साल का था जब पहली बार रजस्वला (माहवारी/मासिक धर्म) शब्द पढ़ा था, घर में कई सारी धार्मिक किताबें थीं उन्हीं किताबों में कहीं पढ़ा था। उसमें लिखा हुआ था कि रजस्वला स्त्री को ये नहीं करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए ऐसी बहुत सारी बातें थी। उस समय मुझे समझ नहीं आया कि इस शब्द का मतलब क्या है, थोड़ा बहुत दिमाग लगाने के बाद मैंने इसका मतलब विधवा समझ लिया था। किसी से पूछा भी नहीं, अगर पूछता तो या तो उन्हें मतलब पता नहीं होता उन्हें और अगर पता होता तो मुझे डपटकर चुप करा दिया जाता।

वक्त बीता मैं सातवीं में पहुंच चुका था, स्कूल में एक लड़का कोई घटना बता रहा था शायद तब पीरियड्स पर बात हो रही थी। तब तक पीरियड्स का इतना ही मतलब समझ में आया कि यह औरतों का बेहद निजी मसला है और इसका विज्ञापनों में दिखाए जाने वाले पैड्स से कोई कनेक्शन है। वो लड़का बता रहा था कि एक बार शादी के बाद एक लड़की को पूजा के लिए भेजा जा रहा था जो कि परंपरा में था, लेकिन वो लड़की मंदिर की सीढियां नहीं चढ़ रही थी। फिर लड़के ने हंसते हुए बताया कि “M.C.थी उसकी” तब तक इसका मतलब भी नहीं पता था फिर पता चला कि यह भी पीरियड्स का समानार्थी है।

आठवीं में प्रजनन नाम के पाठ में कुछ बताया हुआ था लेकिन हमारे शिक्षक को ट्रेनिंग पर भेजा जा चुका और एक कुछ समय तक एक अन्य व्यक्ति को संविदा पर रखा गया था। लड़के रोज़ कहते कि हमें ये वाला पाठ पढ़ना है, हालांकि उनकी भी इसे पढने के पीछे की मंशा कुछ और ही थी। यौन शिक्षा के नाम पर अमूमन जो ठेंगा हमारे यहां दिखाया जाता है, वही हमें भी दिखा दिया गया। वैसे भी वो क्या बताते, पुरूषों को इतना पता भी नहीं होता और ऊपर से उनका बैकग्राउंड भी प्रगतिशील नहीं था।

नेपाल की चौपाड़ी प्रथा: माहवारी के दौरान औरतों को अभी भी घर से बाहर बनी एक झोपडी में रहना पड़ता है, जबकि यह नेपाल में गैर कानूनी है।

मैं जब 10वीं में था तब पुणे से प्रकाशित होने वाले अखबार के हेल्थ पेज से काफी समझ में आना शुरू हुआ लड़के अभी भी पीरियड्स के नाम पर लड़कियों की हंसी उड़ाते हैं। 12वीं तक समझ आ चुका था कि ये वही समय है जब औरतें खाना नहीं बनाती, मंदिर नहीं जाती और प्रसाद भी नहीं खाती और ये सब सम्माज द्वारा की जाने वाली उनकी मेंटल कंडीशनिंग की वजह से है।

इसके बाद इंजीनियरिंग के दौरान फेसबुक से पता चला कि माहवारी के दौरान कई जगहों पर स्त्रियों को जानवरों के बाड़े में भी रहना पड़ता है और पैड्स कि जगह उन्हें पोयरा (धान के पौधे का तना) इस्तेमाल करना पड़ता है। ऐसी ही स्थिति में एक लड़की की योनी के भीतर कीड़ा चला गया था, जिसकी जानकारी संक्रमण के इलाज के दौरान हुई। उसी कॉलम में माहवारी के दौरान होने वाले मैरिटल रेप के बारे में भी पता चला। वो happy to bleed कैंपेन के हिस्से का लेख था।

आज जब हम माहवारी को लेकर इतने प्रगतिशील तब भी बहुत होमवर्क की ज़रूरत है। आज भी PMS जोक्स भेजे जाते हैं, आज भी क्लास में कोई लड़की लेक्चर (पीरियड) की बात करती है तो लड़का पूछ लेता है कि “तुम्हारा पीरियड कब है?” और लड़की अनुत्तरित रह जाती है। हमें अब अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है। लोगों को माहवारी के बारे में जागरूक करने की ज़रूरत है। कहीं न कहीं बहुत सारे मसले छूट रहे हैं। सैनिटरी पैड्स की उपलब्धता ,निपटान और उनकी गुणवत्ता। अभी इस्तेमाल की जानकारी भी लोगों को पर्याप्त नहीं है। समाज को ये समझने की ज़रूरत है कि माहवारी एक आम शारीरिक प्रक्रिया है ना कि किसी की हँसी उड़ाने या किसी को शर्मिंदा करने का विषय। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, उतनी ही प्राकृतिक जितनी की हमारा सांस लेना।

The post पीरियड्स की सही जानकारी से ही संवेदनशील बन पाएंगे हम ‘लड़के’ appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


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