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और इस तरह मेरे पहले पीरियड की कहानी अपराधबोध भरी थी…

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आज भी हमारे छोटे से कस्बे में पीरियड्स खुसुर-पुसुर करने वाला ही विषय है। आज भी लड़कियों को इन दिनों के दौरान शारीरिक तकलीफों के साथ-साथ मानसिक तकलीफों से गुजरना पड़ता है। आज भी घर जाकर हम बता दें कि पीरियड्स चल रहे हैं तो हमारा सोने के बिस्तर से लेकर खाने की प्लेट तक अलग कर दी जाती है। आज भी लड़कियां इस बारे में बात करती झिझकने लगती हैं। वहां आज भी लगभग हर घर की माँ लड़कियों को इशारों में, दबी आवाजों में ही समझाती है। आज भी वहां पीरियड्स शुरू हो जाने के बाद कहा जाता है कि चुप रहना, किसी को बताना मत। और हाँ ये भी सिखाया जाता है कि इन दिनों अपने घर के पुरुषों से दूर रहना चाहिए।

मैं आज भी इन दिनों में अपने पापा को पानी तक नहीं पिला सकती। कुल मिलाकर इन दिनों हमारे यहाँ लड़कियों को पूरी तरह से अछूत माना जाता है। एक ऐसी अछूत जिसके छूने से अचार तक सड़ जाए।

ऐसे ही कितने किस्से हैं जो हमेशा मुझे पीरियड्स से नफरत करवाते रहे। खैर अगर बात करूँ अपने पहले पीरियड की तो मुझे याद है अपने पहले पीरियड की बात। सातवीं क्लास में ही मुझे पीरियड होना शुरू हो चुका था। आज की तरह उस वक़्त भी बच्चों को बताया तक नहीं जाता था इन सबके बारे में। बस एक उड़ा-उड़ा सा शब्द था एम.सी.। जो उस वक़्त बेहद ही घिन वाला शब्द माना जाता था। मैं जिस जगह रहती थी वहां आज भी लड़कियां या घर की माएं अपनों बच्चों को नहीं बताती कि पीरियड क्या है।

जब पहली बार मुझे पीरियड हुआ उस वक़्त मुझे पता भी न चला। मैं स्कूल से घर आई और दूसरे दिन स्कूल भी चली गई। कुछ अंदाजा ही नहीं था मुझे और न ही मेरी माँ को। पर जब मैं दूसरे दिन स्कूल से वापस आई तो मेरी माँ ने झट से मुझे खखोलना शुरू कर दिया। मुझे लगा न जाने क्या बात हुई ? मैंने झल्ला कर पूछा तो जबाब मिला तुझे एम. सी. हो गई है। मुझे समझ में नहीं आया आखिर ये क्या है। तब मम्मी ने मेरी कल की यूनिफार्म पर लगा खून का दाग दिखाया।

मुझे एम. सी. कोई बुरी बात लगी, इसलिए मैंने उसे टालना शुरू कर दिया। माँ मेरी अब तक माथा पकड़ कर बैठी थी। मुझे उन दिनों लगा कि मुझसे शायद कोई अपराध हुआ है। माँ ने माथा इस चिंता में पकड़ा था कि उन्हें लगा अब मेरी लम्बाई नहीं बढ़ेगी। चूँकि मेरी माँ ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं इसलिए उन्होंने हमें कभी खुल कर इस बारे में नहीं बताया।

माँ ने अलमारी से एक कपड़ा निकाला और कहा जा बाथरूम में जाकर देख और इसे लगा। लगभग कई सालों तक हमने कपड़ा ही इस्तेमाल किआ फिर। मुझे अब तक घिन के साथ-साथ रोना आ रहा था। शायद उस वक़्त मैं चाहती थी कि कोई मुझसे बात करे। तब माँ ने बस दबी आवाज में बताया था मुझे कि तेरे पेशाब करने वाली जगह से खून आ रहा है। ये सुनते ही जैसे डर गई मैं। लगा जैसे कोई अपराध हुआ है मुझसे। माँ ने हाथ में कपड़ा देते हुए कई सारे नियम भी बाँध दिए थे साथ में।

उन दिनों खेलने के साथ-साथ बंद हो गया था रसोई में जाना, किसी चीज को हाथ लगाना, पापा के पास जाना और भी बहुत कुछ। इस तरह मेरे पहले पीरियड की कहानी अपराधबोध भरी थी।

मुझे पहली बार पीरियड्स पूरे 15 दिन तक चले लेकिन बाद में अचानक ही कुछ महीनों के लिए बंद भी हो गए। मैं बहुत खुश थी, तब जानती नहीं थी कि इनका बंद होना अच्छा नहीं। उस वक़्त कई सारे सवाल मन में थे, बदलाव शरीर में थे पर जबाब देने वाला कोई नहीं।

आज भी अपने घर, बुआ के घर, और बाकी रिश्तेदारों के घर जाने से थोड़ा सा डरती हूँ कहीं इन्हें पता चल गया तो फिर उन्हीं दकियानूसी बातों में खुद को घसीटना पड़ेगा। जिनका असर अब तक है जिंदगी पर। उन दिनों यह भी पता चला कि एक ऐसा धर्म भी है जो शर्मिंदा करता है।

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