Quantcast
Channel: Campaign – Youth Ki Awaaz
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3094

ये बिहारी दिल नहीं स्टिरियोटाइप तोड़ता है

$
0
0

ऐ बिहारी, चल बे बिहारी साइड हो, देख बिहारी जैसी हरकते कर रहा है, ओए सही से खा ना बिहारियों की तरह क्यों खा रहा है, इन बिहारियों ने गंध मचा दिया है इधर आकर।

अगर आप दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में पले बढ़े हैं तो उपर लिखी बातें आपको दो केस में ही विचलित कर सकती हैं या कम से कम बुरी लग सकती हैं। पहला ये कि आप संवेदनशील इंसान बनने की प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं और दूसरा ये कि आप इस देश के संविधान और डेमोक्रेसी की आत्मा को समझते हैं। अब फर्ज़ करिए कि आप रिसीविंग एंड पर हैं, मतलब बिहार से हैं फिर हर हालत में ये बातें आपने इन महानगरों में सुनी होगी अगर खुद पर नहीं तो किसी रिक्शा चलाने वाले के लिए, किसी ने कोई गलती की हो तब, किसी ने कोई अपराध किया हो तब, या किसी को गाली दी जा रही हो तब।

आपकी जन्मभूमी जब आपके देश में एक गाली बन जाती है तब अपने डिफेंस में की जाने वाली बातों में रचनात्मक स्पेस बहुत ज़्यादा नहीं रह जाता है। फिर प्रतिकार के लिए जो स्लोग्न्स निकलते हैं वो कुछ ऐसे बिना सिर पैर के होते हैं- ‘जे ना कटे आड़ी से उ कटे बिहारी से’, ‘मार देम गोली केहू नइखे बोली।’ लेकिन फिर कोई ऐसा शख्स भी आता है जो बड़े अदब से आपको कहेगा कि हम दिल नहीं स्टिरियोटाइप तोड़ते हैं। खैर इस लाइन के लिए आप लेखक को वाहवाही दें उससे पहले आपको बताता चलूं कि ये पटना के बश्शार हबिबुल्ला का पेटेंट है जो PatnaBeats के फाउंडर हैं। और क्यों शुरु किया बश्शार ने PatnaBeats इसका जवाब उनके टैगलाइन में है Redefining The Word Bihar यानी बिहार शब्द की परिभाषा एक नए सिरे से गढ़ने का प्रयास।

Founder Of PatnaBeats Bashshar Hbibullah
PatnaBeats के फाउंडर बश्शार हबिबुल्ला

Youth Ki Awaaz के प्रशांत की बश्शार से एक दोस्ताना मुलाकात, इंटरव्यू में तब्दील हो गई, पढ़िए बश्शार और उनके स्टार्टअप की कहानी।

प्रशांत- बश्शार थोड़ा इंटरव्यू जैसा कर लेते हैं, हाहा, तो एकदम स्टेपल सवाल कि PatnaBeats का  ख़याल कैसे आया?

बश्शार- पहले कौन सा बताउं, एक के बाद एक जो नौकरियां जाती रहीं मेरी वो या जो बचपन से ही बिहारियों के लिए स्टिरियोटाइप्स देखा-महसूस किया जो एक बड़ी वजह थी वो?

प्रशांत- पहले स्टिरियोटाइप वाला बताओ, नौकरी छूटने पर भी आएंगे।

बश्शार- बचपन की एक स्टोरी बताता हूं। 1999 में दिल्ली गया था 10 साल का था तब। बुआ के यहां गया था तो आसपास के बच्चों से दोस्ती हो गई थी। शाम को मुहल्ले के पार्क में क्रिकेट खेलने गया था। मैच में एक बच्चे ने कैच छोड़ दिया तो दूसरे बच्चे ने बोला अबे बिहारी ठीक से खेल। जब मैच खत्म हुआ तो मैं उसके पास गया और पूछा भाई तुम बिहार में कहां से हो? उसने कहा कि अबे मैं बिहारी नहीं वो तो कैच छूटने पर मुझे गाली दे रहा था। बहुत छोटा था लेकिन ये बात ज्यों कि त्यों छप गई मन में।

फिर पटना से स्कूलिंग करने के बाद बेंगलुरू से BBM किया। हॉस्टल में 4 लोग थे। मैं एक बिहारी मुस्लिम, एक मणिपुर से जो बड़ा अच्छा  म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट बजाता था, एक सिक्किम में बड़ा हुआ बिहारी जो 10 लैंग्वेज बोल लेता था, एक बंगाली मुस्लिम था जो बहुत अच्छा लिखता था। तो सब मे कुछ ना कुछ टैलेंट था हमको छोड़कर। तो वहां लगा कि यार कुछ तो अपना एक बनाना चाहिए। इसी दौरान फोटोग्राफी का शौक हुआ। भाई से एक डिजिटल कैमरा मंगवाया और फिर कैमरा लेकर बहुत घूमा।

घूमते घूमते बिहारियों के लिए इतने स्टिरियोटाइप्स देखें की क्या बताऊं, कश्मीर के लोग, पुणे के लोग और तो और यूपी के लोग भी बिहारियों का इतना स्टिरियोटाइप बनाए हुए थे कि पूछो मत। लिविंग स्टैंडर्ड से आदतों तक हर बात पर बिहारियों का इतना मज़ाक उड़ाते थे। वो बातें दिल में रह गईं। फोटोग्राफी के साथ साथ मैं 2010 से ही अपना एक पेज चलाता था। अब तो खैर पेज चलाना ट्रेंड ही हो गया है। और बहुत टाइम सोशल मीडिया पर जाता था।

उसी वक्त पटना नाम से एक पेज था जिसे मैं मैनेज करने लगा, हालांकि वो मेरा पेज नहीं था लेकिन मैक्सिमम कंटेंट मेरा ही था और मैनेज भी हम ही कर रहे थे। ये करते करते हमको लगा कि काहे नहीं अपना ही कुछ शुरु किया जाए। और उस वक्त कोई ऐसा वेबसाइट भी नहीं था जो बिहार के बारे में बात करे या लिखे। बेरोज़गार भी थे उस वक्त, बस वो पेज मैनेज कर रहे थे। तो हमको लगा कि एक वेबसाइट बनाया जाए।

उसी दौरान मिथिला मखान और देसवा के डायरेक्टर नितिन चंद्रा से दोस्ती हुई थी। उन्होंने एक दिन एक वेबसाइट दिखायाा।

Youswear.com ये गालियों का इनसायक्लोपीडिया है। दुनिया मेंं जितनी  भी भाषाएं हैं उनसबकी गालियां यहां आपको मिल जाएगी, वहां एक सेक्शन हिंदी का भी है, और उसमें एक गाली है BIHARI जिसका मतलब है LOSER. मैं कसम से कह रहा हूं मेरे रौंगटे खड़े हो गये जब ये देखा मैंने।

और तभी वेबसाइट कैसा और किस मोटिव से बनाउंगा ये क्लियर हो गया था। यही कहानी है PatnaBeats के शुरु होने की।

प्रशांतये तो बहुत भद्दा है यार वेबसाइट पर गाली बना देना बिहार को!

बश्शार– हर बार किसी को बताता हूं तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं। और ये फिर पूरे देश ने मिलकर तोहफा दिया है ना हमें स्टिरियोटाइप बना बना के। सोचो कोई हिंदी सेक्शन में आए किसी दूसरे देश का तो वो तो यही सोचेगा ना कि बिहारी तो गाली है।

प्रशांतनौकरी से काहे निकाले गये थे?

बश्शार– ये  बातें बताई नहीं मैंने पहले किसी को हाहा… सबसे पहले जब सोशल मीडिया पर बहुत सारा वक्त बिताने लगा तो भैय्या के एक दोस्त ने बताया कि जब हमेशा ऑनलाइन ही रहते हो तो काहे नहीं डिजिटल मीडिया मार्केटिंग या सोशल मीडिया मार्केटिंग में करियर बनाते हो। ये सब टर्म भी पहली बार सुन रहे थे हम। खैर रिसर्च किया इस सब के बारे में फिर एक स्टार्टअप में नौकरी मिल गई।

Bashshar With The Team Of PatnaBeats
PatnaBeats की टीम

वहां  3-4 महीने काम किया उसी दौरान एक नेटवर्क मार्केटिंग कंपनी के चक्कर में भी फंस गए। वहां 1.5 लाख रुपया फंस गया। इसी नेटवर्क मार्केटिंग को टाइम देने के चक्कर में उस कंपनी से भी लगभग  पिंक स्लिप(नौकरी से निकाले जाने का नोटिस) मिल गया था।

फिर Odigma में सेल्स का काम किया लेकिन 10 महीने में एक भी सेल्स लाकर कंपनी को दे नहीं पाया तो वहां से भी एक तरह से निकाला ही गया। हालांकि वहां से हमको निकालते उससे पहले हम ही रिज़ाइन कर दिएं कि हमसे सेल नहीं  हो पाएगा। फिर वहीं से एकदम फोटोग्राफी में जुट गएं। तो कुल मिला के नौकरी के साथ अपना  दोस्ताना बना नहीं।

प्रशांतPatnaBeats की शुरुआत की बात बताओ, कैसे क्या करते थे? मतलब लोग कैसे जुड़े?

बश्शार–  नौकरी वगैरह छोड़ दी थी और वेबसाइट का प्लान तो कर ही लिया था। उसी वक्त TVF की एक सीरीज़ आई थी पिचर्स(Pitchers) बोल के वो भी देखी तो वहां से भी इंस्पिरेशन मिल गई थोड़ी।

प्रशांत (बीच में काटते हुए)- तो तुमको कौन बोला कि तू बियर है बह… हाहाह

बश्शार– हाहाहा कोई नहीं बोला, हम खुद को ये बात समझा दिये। बाकी इंजीनियर लोग से दोस्ती था ही, वेब डेवलपर लोगों से भी दोस्ती थी तो उनमें से एक ने वेबसाइट बना दिया। उस वक्त 3 लोग रहते थे बेंगलुरू में। मेरे दोनों रूममेट्स अशर अली और अंशुमन प्रसाद सपोर्ट तो करते थे लेकिन ज़्यादा इन्ट्रेस्ट नहीं लेते थे। लेकिन उन लोगों ने भी नौकरी के साथ-साथ वेबसाइट पर काम करना शुरू किया। खासकर कि अशर, शुरुआत में वो इतना इन्ट्रेस्ट नहीं लिया लेकिन आज वो सबसे एक्टिव मेम्बर्स में से एक है और इन्वेस्ट भी काफी कर चुका है।

मेरे पास 1-2 महीने के बाद पैसे खत्म हो गएं, रेन्ट के लिए भी पैसे नहीं थे। और पैसे भी बचाने थे, क्योंकि उनकी सैलरी के कुछ पैसे भी वेबसाइट में लगने थे। तो  मैं हर रोज़ सबके लिए खाना बनाता था ताकि बाहर खाना खाने वाला पैसा बच सके। हर रोज़ दो वक्त मैं सबके लिए खाना बनाता था। 5-6 महीने ऐसे ही बेंगलुरू में बीते। फिर पटना से घरवालों का फोन आया कि फैमिली गेट टुगेदर है आ जाओ। मैं पटना आ गया और मेरे पास वापस जाने के लिए पैसे नहीं थे तो मैं फिर कभी बेंगलुरू गया ही नहीं।

प्रशांतफिर वेबसाइट का क्या हुआ? पटना में कैसे आगे बढ़ाया चीज़ों को?

Bashar With The Director Of Anarkali Of Ara
अनारकली ऑफ आरा के डायरेक्ट अविनाश दास के साथ बश्शार

बश्शार– काम तो चलता ही रहा और लोगों का बड़ा सपोर्ट मिला, नितिन चंद्रा, अविनाश दास, अजय ब्रह्मात्ज ये कुछ ऐसे लोग हैं जिनका अनकंडिशनल सपोर्ट मिला। जो पहला आर्टिकल था वेबसाइट पर वो नीतू चंद्रा और नितिन चंद्रा पर ही किया किया था जिसे नीतू चंद्रा ने अपने वेरिफाइड अकाउंट से शेयर किया, जिससे काफी लोगों तक पहुंची बात। तो वहां से सबकुछ शुरु हुआ।

इसके बाद टेक्निकल चैलेंजेज़ का दौर शुरु हुआ। अगले 3 महीने में 1.5 महीने वेबसाइट चालू रहा और 1.5 महीने नहीं चला। कभी ज़्यादा लोग आ गएं तो वेबसाइट डाउन कभी कुछ। किसी से पूछो तो बोले कि ये डोमेन खरीद लो, सर्वर स्पेस खरीद लो। लेकिन फिर धीरे-धीरे चीज़ें स्मूद होने लगीं। सब समझ में आने लगा।

प्रशांतT-Shirt का आइडिया कहां से आया?

बश्शार– जैसे दिल्ली वगैरह जाते थे तो बड़ा कूल स्लोगन सब देखते थे जैसे दिल्ली से हूं… या पंजाबी गबड़ू और ऐसे बहुत सारे, लेकिन अपने बिहार के आइडेंटिटी वाला कुछ नहीं था। इसलिए सोचा अगर ऐसा कुछ किया जाए जिससे लोग बिहारी आइडेंटिटी को कैरी कर सकें प्राउडली तो वो बहुत सही रहेगा।

और वो भी ऐसी आइडेंटिटी जिसमें खुद को दूसरे से बड़ा दिखाने वाली फीलिंग ना आए बस बिहारी प्राइड की बात आए। जैसे बहुत यंग बिहारी लोगों को काउंटर करने के लिए हम ही हम हैं वाली अप्रोच लेते हैं जैसे, जे ना कटी आड़ी से उ कटी बिहारी से। तो हमारा मकसद था इन टीशर्ट्स से उनको उस शर्म से बाहर निकालने का जो बिहारी शब्द के साथ जोड़ दिया गया था।

प्रशांतकिन बिहारियों को टार्गेट करने का प्लान था, बिहारी प्राइड को लेकर?

बश्शार– मुझे उन बिहारियों तक पहुंचना है जो अपनी पहचान छुपाते हैं, जैसे बैंगलुरु जाके खुद को नॉर्दी और दिल्ली में कहते हैं कि बिहार से तो बस कनेक्शन है ऑरिजिनली दिल्ली का हूं। अभी जो लोग प्राइड लेते हैं वो बहुत अग्रेसिव अप्रोच लेते हैं जैसे उलझ जाना या वही काउंटर स्लोगन्स जिसका अभी उपर हमने ज़िक्र किया।

प्रशांतस्टार्टअप्स को बहुत रोमैनटिसाइज़ किया गया है अपने देश में। इसका चैलेंजिंग पार्ट शेयर करो ज़रा जो यंग लोग पढ़ेंगे उनके लिए।

बश्शार– हाहाह.. हां ये तो है कि बहुत रोमैन्टिसाइज़ किया गया है। लेकिन सिंपल है बॉस अगर आपमें पैशन है तब ही आप सर्वाइव कर पाएंगे। अगर बस ये है कि स्टार्टअप कर देना है और खुद का कुछ कर देना है तो वो नहीं चलेगा। पहले साल में लगभग 80 परसेंट लोग अपना स्टार्टअप बंद कर देते हैं, और फिर दूसरे साल में कुछ लोग छोड़ देते हैं। लोग सोचते हैं कि बीन बैग वाला स्टार्टअप सीधा खोल लेंगे। ऐसा नहीं होता।

मैं अपनी ही स्टोरी शेयर करता हूं, कितनी बार ऐसा लगता था कि अब आगे का रास्ता क्या है जैसे जब अचानक टीशर्ट वेंडर ने बोला कि आगे काम नहीं कर सकता क्योंकि प्रॉफिट नहीं हो रहा और फिर फोन उठाना बंद। तबतक डिमांड भी बढ़ चुकी थी। कहने को तो कह देता था कि आउट ऑफ स्टॉक है लेकिन हकीकत ये थी कि प्रिंट ही नहीं हो रही थी  टीशर्ट। तो कई रोडब्लॉक्स होते हैं जिन्हें ओवरकम करना होता है।

प्रशांतएक चीज़ जो तुम्हारे लिए काम किया, या मोटिवेटेड रखा तुमको?

बश्शार– फियर ऑफ फेलयर को ओवरकम करना बहुत ज़रूरी है। मेरा इकलौता रीज़न है सर्वाइव करने का कि मैं लाइफ में बहुत बार फेल हुआ हूं, स्कूल से लेकर ऑफिस तक। तो फेल होने का डर ही नहीं था। ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा यार फेल करोगे ना, नो होने पर क्या हुआ ज़िंदगी थोड़े ना खत्म हो जाती है।

फेल ही करूंगा ना बहुत खराब होगा तो। और इंजीनियर नहीं बना तो फेलियर ही था आस-पास के लोगों के लिए। फेल करूंगा मरूंगा नहीं। और मरूंगा नहीं तो कुछ ना कुछ तो कर ही लूंगा।

बहुत से बच्चे मुझे बोलते हैं कि नौकरी छोड़ दूंगा और ये स्टार्टअप कर लूंगा। तो मेरे लिए ये क्लिक कर गया कि मैंने नौकरी छोड़ दी ज़रूरी नहीं कि तुम्हारे लिए भी करे, सबका अपना तरीका होता है।

प्रशांत– इंजीनियर नहीं बने तो आस-पास के लोग तो सुना सुना के एकदम परेशान कर दिए होंगे? बहुत बात करते हैं उसके बारे में

बश्शार– मैं वैसे ही सर्कल में रहना पसंद करता हूं जो मुझे मोटीवेट करते हैं,  पिछले कुछ साल में जो मैंने दोस्त बनाए खुद से कम उम्र की बनाई, ताकि उनसे काफी एनर्जी मिले, इंसपिरेशन काफी मिलती है नए लोगों से। फ्रेश वाइब्स क्रिएट करते हैं। और मुझे लगता है कि मैं भी यंग हूं। बोलने वाले तो बहुत होते हैं  जब लाइफ में कुछ क्लिक नहीं कर रहा होता है लेकिन मैंने बहुत ज़्यादा लोगों से कुछ लिया नहीं।

प्रशांतयार बिहारियों कि जो इमेज बनी हुई है बाहर उसमें तुमको लगता है कि बिहारियों की भी गलती है?

बश्शार– बिल्कुल है , ऐसा थोड़े ही है कि हम हर जगह सही हैं, हमने रूबी रॉय वाला कांड किया है, हमने बाहर जाकर भी कांड किया है। लेकिन परेशानी ये है कि हमारी पैरलल स्टोरीज़ बाहर नहीं आ पाती। और हमलोग वही काम करने की कोशिश कर रहे हैं कि बिहार की पैरलल स्टोरीज़ करेंगे। इस साल गोपाल वाले टॉपर कांड को सबने दिखाया लेकिन कुमार सानू जो बिहारी है जिसने CBSE को RTI के अंदर लाने कि कोशिश की उसके बारे में कुछ कहीं बात नहीं हुई।

प्रशांतयंग बिहारियों के लिए कोई मैसेज है कि कैसे स्टीरियोटाइप तोड़ें?

बश्शार– डायलॉग टाइप तो कुछ याद नहीं आ रहा है लेकिन जो करें  पैशन से  करो, और उसके साथ अपनी बिहारी आइडेंटिटी को लेकर जिओ। कुछ बहुत अलग नहीं कर देना है। जैसे तुम YKA में काम करते हो, तो वहां जितने लोग होंगे वो अगर तुमको सही मानते हैं और किसी एक का भी स्टिरियोटाइप टूटा तो काम हो गया।

प्रशांतजब कोई कहता है कि तुम्हारी वजह से दुबारा अपनी आइडेंटिटी को जी पा रहा हूं उससे शर्म नहीं आती तो अच्छा लगता है?

बश्शार– एक कहावत है ना कि पइसा कमाया तो क्या कमाया इज्जत कमाओ पगले, हाहाहाहा.. तो वही बात है 4 दिन पहले अभी मेल आया था लंडन से किसी रैंडम इंसान का कि मैं अब लंडन में ये टीशर्ट पहनकर घूमूंगा। तो जेब फटा हुआ भी रहता है लेकिन ऐसी बातें जान भर देती हैं। इसी के बदौलत आगे चल रहा हूं।

The post ये बिहारी दिल नहीं स्टिरियोटाइप तोड़ता है appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3094

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>