“अगर आपके पड़ोस वाले अंकल को आपसे दिक्कत होनी शुरू हो जाए तो मान लो कि आप लाइफ में बिलकुल सही जा रहे हैं।” ये कहना है यंग राइटर दिव्य प्रकाश दुबे का। जिन्हें अपनी पसंद का करियर चुनने पर उनके अपनों ने ही “बिगड़ा हुआ लड़का” घोषित कर दिया था। उनके परिवार और पड़ोसियों के लिए उनके राइटर बनने का सपना “बिगड़ने” से कम नहीं था।
दिव्य की कहानी बहुत रिलेट करने वाली लग रही है ना? अपने समाज में जन्म के साथ ही बच्चों का करियर तय कर दिया जाता है। और फिर पूरा बचपन विडंबना (आयरनी) से ज़्यादा कुछ नहीं रह जाता, जहां एक तरफ पूरा मुहल्ला और आपके घरवाले आपको आशीर्वाद देते हैं कि खूब नाम कमाओ-खूब आगे बढ़ो, लेकिन मजाल है कि आप अपने चुने हुए रास्ते से आगे बढ़े! अपना करियर खुद चुनने की ज़ुर्रत करते ही बन गए आप बिगड़े हुए।
दिव्य प्रकाश दुबे की तरह आपको भी क्या अपने सपने देखने की वजह से कभी बिगड़ा हुआ घोषित किया गया ? क्या आपको लगता है कि अपने मन की सुनने, अपने मन के अनुसार अपने भविष्य का फैसला करने का मतलब बिगड़ना है ? क्या आपको लगता है कि समाज जो हमारे करियर चुनने के केस में बिना फीस का वकील बन जाता है वो गलत है? Youth Ki Awaaz पर अपनी कहानी ज़रूर शेयर करें और फॉलो करें UNICEF के पार्टनरशिप में शुरू किया गया YKA और BBCMA का साझा कैंपेन #BHL
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