Quantcast
Channel: Campaign – Youth Ki Awaaz
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3094

रांची के इस मोहल्ले में रात के अंधेरे में आज भी ढोया जाता है सिर पर मैला

$
0
0

लोकसभा चुनाव अब आने को है। पीएम मोदी अपने सबसे महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन को भुनाने की एक बार फिर कोशिश करेंगे, जो कि करना भी चाहिए। लेकिन ओडीएफ  घोषित हो चुके रांची में जब वह इसका बखान करेंगे तो झारखंड की राजधानी का एक मोहल्ला ऐसा होगा जिसके कुछ लोगों को यह थप्पड़ से कम नहीं लगेगा। ऐसा इसलिए है कि रांची के तुलसी नगर मोहल्ले के लगभग 35 से अधिक लोग जिसमें अधिकतर महिलाएं हैं, अभी तक सिर पर मैला ढोने को मजबूर हैं।

मैला ढोनेवाली एक महिला ने बताया कि किसको शौक लगा है माथा पर मैला ढोने का, निगम में नौकरी मिल जाता तो वहीं काम करते न। आप खबर छापिएगा, कल से अधिकारी लोग आकर हमलोगों को बात सुनाएगा। वार्ड 21 की पार्षद सबा नाज़ ने बताया कि यह बात सही है कि मोहल्ले के कुछ लोग अभी भी यह काम कर रहे हैं। इसके पीछे वजह यह है कि जिन गलियों में निगम की गाड़ियां नहीं जा पाती हैं, वहां का मैला कैसे साफ होगा। ये लोग वहां की सफाई रात के अंधेरे में एक बजे करते हैं और तीन बजे सुबह तक लौट आते हैं। एक महिला ने बताया कि मैला उठाते तो हैं, लेकिन आए दिन उनकी तबीयत खराब हो जाती है। कई बार तो दो-दो दिन तक उल्टी आती रहती है। एक महिला ने बताया कि उनके बच्चे को उनके काम के बारे में नहीं पता है।

सबा नाज़ ने यह भी बताया सर्वे के वक्त भले ही ऐसे लोगों की संख्या 35 या इससे अधिक होती है, लेकिन वास्तव में 5 से 10 लोग ही ऐसे हैं। बाकि लोग तो निगम में सफाई कर्मचारी बनने के लिए सर्वे के वक्त अपना नाम मैला ढोनेवालों में लिखवा देते हैं। एक पुरुष ने बताया कि प्रति टीन (मैला ढोनेवाला डब्बा) उन्हें 50 रुपया मिलता है। उन्होंने यह भी बताया कि जब कोई सरकारी आदमी पता करने के लिए आता है तो उनके जैसे लोग उन्हें बता भी नहीं पाते हैं क्योंकि उनके बच्चे को यह नहीं पता है। ऐसे में कोई और अपना नाम देकर नौकरी ले गया। वह तो बीच में ही फंसे रह गए हैं।

शहर में कई ऐसे मोहल्ले हैं जहां गलियों में सिवाय साइकिल के कोई और गाड़ी नहीं जा सकती। इन इलाकों में घरों के अंदर जो शौचालय बने हैं, वहां की सफाई इस कलंक के सहारे जीनेवाले लोगों के भरोसे ही छोड़ दी गई है। या यूं कहें कि मान लिया गया है कि ये लोग इसी काम के लिए बने हैं, इन्हें यही करना होगा, वरना सफाई होगी कैसे।

मैला ढोने वाली महिला की प्रतीकात्मक तस्वीर

स्थानीय अखबारों में इस संबंध में फोटो के साथ जब –जब खबर छपी है, नगर निगम, जिला प्रशासन सहित राज्य सरकार तक के कर्मचारी इसे पहले तो इसे सिरे से खारिज करते हैं। फिर उन जगहों पर सर्वे के लिए टीम भेजते हैं, ऐसे लोगों का पता चलने पर उन्हें ज़लील भी करते हैं। जिस प्रथा को सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय कलंक घोषित कर चुका हो, राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण के रैंकिंग में इस कलंक की तरफ अधिकारियों को देखना मुनासिब नहीं लगा।

स्वच्छता सर्वेक्षण- 2018 में रांची देशभर में 21वें स्थान पर हैं। रांची नगर निगम के मुताबिक राजधानी में साफ-सफाई पर हर महीने लगभग दो करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो रहे है़ं। 2016 में हुए एक सर्वे के मुताबिक सिर पर मैला ढोनेवाले लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वर्ष 2016 में नगर निगम की टीम मोहल्ले में आई थी। टीम ने मैला ढोनेवाले लोगों की सूची भी तैयार की थी। अधिकारियों ने कहा था कि लोग इस काम को छोड़ दें, सरकार सभी को नगर निगम में काम देगी। इस आश्वासन के बाद निगम की टीम दोबारा उस मोहल्ले में झांकने तक नहीं गई। बेरोज़गारी के कारण मजबूरी में महिलाएं फिर से इस काम में लग गई हैं।

लगभग 15 लाख की आबादी वाले इस नगर निगम की सफाई एस्सेल इंफ्रा कंपनी और नगर निगम मिलकर कर रहा है। निगम के पास 5000 की सैलरी पर काम कर रहे कुल 1700 सफाई कर्मचारी हैं। शहर से सटे झिरी नामक जगह पर बीते आठ साल से हर दिन लगभग 450 टन कूड़ा डंप किया जाता है। यहां कूड़े का पहाड़ बन चुका है, लेकिन अभी तक वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट नहीं लगाया गया है। मैला ढोने के लिए भी निगम ने कुल नौ गाड़ियां रखी है। जो 900 से 3000 रुपए तक चार्ज करती है।

साल 2017 में राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष महेंद्र सिंह वाल्मिकी ने रांची में साफ कहा था कि आज भी देश के 28 लाख लोग सिर पर मैला ढोने के लिए मजबूर हैं। वहीं बीते अक्टूबर महीने में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने रांची में ही एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि देशभर में लगभग 25 लाख लोग अब भी सर पर मैला ढोने के लिए मजबूर हैं। आंकड़ों की इस बाज़ीगरी में राष्ट्रीय कलंक को खत्म करने की भला किसे जल्दबाज़ी है।  

The post रांची के इस मोहल्ले में रात के अंधेरे में आज भी ढोया जाता है सिर पर मैला appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3094

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>