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तीन तलाक बिल का विरोध मुस्लिम महिलाएं ही क्यों कर रही है?

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तीन तलाक एक ऐसा मुद्दा जो आज की मीडिया और सरकार के लिए मसाला बन गई है, पिछले 1 साल में मीडिया में इसे इस तरह से उछाला जा रहा है जैसे इसके सिवा देश में कोई दूसरा मुद्दा ही नहीं है। तीन तलाक पर सरकार उस छोटे बच्चे की तरह बर्ताव कर रही है जो बाज़ार में खड़ा होकर किसी चीज़ के लिए ज़िद करता है मगर यह नहीं जानता है कि उसे खाने के बाद उसका पेट खराब हो सकता है।

मीडिया ने जितनी बहस और प्राइम टाइम ट्रिपल तलाक पर की उतनी अगर किसानों के मुद्दों पर की होती तो उन्हें सैकड़ो km की पैदल यात्रा कर दिल्ली अपनी बात कहने नहीं आना पड़ता। इतनी ही बहस TV पर देश के हालातों पर होती तो रुपये की ये हालत नहीं होती, पकौड़ा बेचना रोज़गार नहीं बन पाता और मॉब लिन्चिंग से इतनी छीछालेदर नहीं होती।

तीन तलाक का ज़िक्र करते हुए भाजपा कहती है कि वह मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाना चाहती है, मगर यहां सवाल पूछना लाज़मी हो जाता है कि जिस भाजपा के नेता अपनी सभाओं में मुसलमानों को ‘पाप्यूलेशन फैक्ट्री’ कहते हैं, जो मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगलते हैं ‘लव जिहाद’ और ‘घर वापसी’ जैसा प्रोपेगेंडा चलाते हैं, लिंचिंग के आरोपियों को फूल और मालाओं से स्वागत करते हैं वहl पार्टी मुस्लिम महिलाओं की कब से फिक्र करने लगी?

किसी भी समाज मे तलाक को किसी भी हाल में सही नहीं ठहराया जा सकता है, तलाक अलगाव और बेरुखी का प्रतीक है, तलाक सिर्फ दो लोग ही नहीं बल्कि दो परिवार, दो दिल और कई सदस्यों को भी अलग कर देता है। किंतु साथ रहकर जब दिल ना मिले और तकरार और मनमुटाव बढ़ती जाए तो अलग हो जाना ही बेहतर है। यहां यह बड़ा इंटरेस्टिंग फैक्ट है कि अगर तीन तलाक बिल मुस्लिम महिलाओं के हक में है तो फिर लाखों की तादाद में मुस्लिम महिलाएं इस बिल के खिलाफ सड़कों पर क्यों उतर रही है?

इस्लाम में शादी जन्मों-जन्मों का या सात जन्मों का रिश्ता नहीं है। अगर आपका अपने जीवनसाथी से मनमुटाव हो और उसके साथ वक्त बिताना मुश्किल हो जाए तो तलाक लेकर पति-पत्नी अपने जीवन की दूसरी पारी शुरू कर सकते हैं। अब आंकड़ों की बात करते हैं, लोकसभा में स्मृति ईरानी ने तीन तलाक बिल के पक्ष में बोलते हुए यह कहा कि देशभर में 477 ऐसी महिलाएं हैं जो तीन तलाक से पीड़ित हैं। यह डाटा उन्हें कहां से मिला मुझे नहीं पता, शायद उन्होंने या उनकी पार्टी ने कोई नया सर्वे किया होगा क्योंकि जब मैं ऐसे किसी का डाटा की तलाश कर रहा था तो कोई भी आर्टिकल मुझे नहीं मिला।

अब उस डाटा की बात करते है जो मुझे मिला 2011 सेंसस के अनुसार भारत में तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं .56% है, जबकि तलाकशुदा हिंदू महिलाओं की संख्या .76% है, यह संख्या ईसाइयों में और भी ज्यादा है 1.23 है। यानी आंकड़ों की माने तो मुस्लिम समाज में तलाक दूसरे धर्म की अपेक्षा कम है।

दूसरी तरफ अगर सरकार सच में महिला सशक्तिकरण के लिए काम करना चाहती है तो उसे शेल्टर होम की स्थिति को भी ठीक करना चाहिए जिसके नए-नए मामले सामने आ रहे हैं और अगर सरकार इससे भी ज्यादा कुछ करना चाहती है तो उसे महिलाओं को आरक्षण दे देना चाहिए कम से कम शिक्षा के क्षेत्र में तो दे ही देना चाहिए ताकि महिलाएं पढ़ लिखकर अपना और देश का भविष्य उज्जवल कर सकें। मगर 4.5 साल गुजर गए नई सरकार बनने के बाद ना ही सरकार ने और ना ही किसी विपक्षी पार्टी ने महिलाओं को आरक्षण देने की बात कही।

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