हर किसी की ज़िन्दगी में एक टर्निंग प्वॉइंट आता है, जो कई मायनों में उसके सोचने के नज़रिये और ज़िन्दगी के प्रति शिद्दत को बढ़ा देता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही उस वक्त हुआ, जब आज से 10 साल पहले मैंने ‘बेयर फुट लॉयर’ की ट्रेनिंग ली।
यह वो दौर था, जब हमारे मध्यप्रदेश के अलग-अलग ज़िलों और ग्रामीण इलाकों में महिलाएं फील्ड वर्क करने से कतराती थीं। इसके पीछे कई वजह थीं। एक तो इस समाज द्वारा लड़कियों को पुरुषों से कमतर आंकने वाली पितृसत्तात्मक सोच, जिसने ना जाने कितनी ही लड़कियों के हौसलों की उड़ान की रफ्तार धीमी कर दी थी।
आज मैं सामाजिक कार्यों में इसलिए हिस्सा ले पा रही हूं क्योंकि मैंने स्किल डेवपलमेंट की ट्रेनिंग ली थी। मुझे भी अन्य महिलाओं की तरह घर से बाहर नहीं जाने दिया जाता था। लोगों को लगता था कि लड़कियां तो सिर्फ भोजन पकाने के लिए ही बनी हैं।
खैर, परिवर्तन का आगाज़ हुआ, जिसकी बानगी मैं और मेरी तरह तमाम लड़कियों ने ‘बेयर फुट लॉयर’ की ट्रेनिंग लेते हुए ना सिर्फ जीवन के प्रति अपने नज़रिये में बदलाव महसूस किया, बल्कि कई लड़कियों की ज़िन्दगियों में भी परिवर्तन देखने को मिलीं।
‘बेयर फुट लॉयर’ की प्रशिक्षण कोई 6 महीने या दो साल लंबी नहीं थी, बल्कि यह हर क्वार्टर में तीन दिनों तक चलने वाली ट्रेनिंग होती थी। इस प्रशिक्षण के दौरान संगठन द्वारा लॉयर्स और समाज के बुद्धिजीवी वर्ग से लोगों को बुलाया जाता था, जो हमें ट्रेनिंग देते थे।
वे हमें बताते थे कि महिलाओं के साथ किस प्रकार का शोषण होने पर कानून की कौन-कौन सी धाराएं लगती हैं। हमें यह भी बताया जाता था कि अगर किसी महिला के साथ बलात्कार या शोषण होता है, तो सबसे पहले उसे थाने ले जाकर शिकायत दर्ज़ करवानी है। वे हमें बताते थे कि ऐसे वक्त पर बेहद ज़रूरी होता है कि हम सर्वाइवर को अपराधी की नज़रों से दूर रखें, क्योंकि कई दफा गुस्से में वे कुछ भी कर सकते हैं।
हमें संविधान के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। मैंने जब ट्रेनिंग सेशन लेना शुरू किया, तब धीरे-धीरे हमें जानकारी मिली कि संविधान क्या होता है। इससे पहले तो हमें पता ही नहीं था कि अगर कोई हमारे अधिकारों का हनन करता है, तो हमें क्या करना है।
मेरे साथ सबसे अच्छी चीज़ यह हुई कि प्रशिक्षण समाप्त करते ही कुछ दिनों में जन-साहस नामक सामाजिक संगठन में मेरी नौकरी लग गई। सबसे दिलचस्प यह है कि जो चीज़ें हमें ‘बेयर फुट लॉयर’ की ट्रेनिंग के दौरान सिखाई गई थीं, वही चीज़ें जन-साहस में इंटरव्यू के दौरान मुझसे पूछे गए।
आज मैं जन-साहस संस्था के साथ जुड़कर ना सिर्फ कुशल रोज़गार कर रही हूं, बल्कि सामाजिक कार्यों के ज़रिये कई महिलाओं की ज़िन्दगी में परिवर्तन लाने के लिए भी प्रतिबद्ध हूं।
मेरा मानना है कि हम सरकारी नौकरी के लिए लंबे वक्त तक नहीं इंतज़ार कर सकते हैं। हमें समझना होगा कि अनंत संभावनाओं के साथ यह दुनिया काफी रोमांचक है, जहां हमें यह देखना होगा कि संभावनाओं के इस बाज़ार में अपने टैलेंट का प्रयोग किस तरह करें।
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