अनेक विविधताओं के साथ भारत, लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश है। शासन की लोकतांत्रिक व्यवस्था का पालन करने वाला सबसे बड़ा देश होने की वजह से इसकी अपनी कुछ कशमकश और उलझने भी हैं। एक ऐसी ही अस्पष्टता तब ज़ाहिर हुई जब इस विविध देश के लोगों को लगा कि रिप्रेज़ेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम) के एक अधिनियम में कुछ कमियां हैं।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम वह अधिनियम है जो पहले आम चुनावों के पहले भारतीय प्रोविंशियल पार्लियामेंट के द्वारा 1951 में लागू किया था। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम भारत में चुनाव व्यवहारों को लेकर लागू किया गया था ताकि चुनाव के दौरान असंवैधानिक और गलत व्यवहारों पर रोक लगाई जा सके।
इस अधिनियम के धारा 75A के अनुसार संसद के दोनों सदनों में चुने गये प्रत्याशियों को चुने जाने के 90 दिन के भीतर अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना होगा। लेकिन जो खामी है वो यह कि कार्यकाल खत्म होने पर दोबारा ब्यौरा देने का कोई प्रावधान नहीं है। नेताओं द्वारा सत्ता का दुरुपयोग कर अपनी संपत्ति बढ़ाने की बात भारत में किसी से छिपी नहीं है। परिणामस्वरूप देश की तरक्की के लिए करदाताओं के द्वारा दिये गये पैसे का एक बड़ा भाग भ्रष्ट लोगों की जेब भर रहा है।
गौरतलब है कि बहुत सारे नेताओं की संपत्ति में उनके कार्यकाल के दौरान हैरतंगेज़ तौर पर इज़ाफा हुआ। सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज़ (सीबीडीटी) की तरफ से सुप्रीम कोर्ट की मांग पर इस मुद्दे को लेकर आंकड़े भी जारी किए गए हैं। सीबीडीटी के मुताबिक 7 लोकसभा सांसदों और 98 विधायकों की संपत्ति में काफी वृद्धि हुई है जिसमें काफी अनियमितताएं पाई गई हैं। इन अनियमितताओं पर रोक लगाने और पारदर्शिता को प्राथमिकता देने के लिए अरुणाचल ईस्ट से एक सांसद होने की हैसियत से मैंने सितंबर 2017 में एक संशोधन बिल संसद के सामने रखा। इस बिल में मैंने सांसदों द्वारा कार्यकाल खत्म होने के 90 दिनों के अंदर अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने का प्रस्ताव रखा गया है। यह प्रस्तावना लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में एक सबसेक्शन 75B(1) के तौर पर शामिल किया जाना चाहिए।
मैंने यह बिल इसलिए पेश किया ताकि चुनाव के बाद हार हो या जीत किसी की संपत्ति के लिए उसे परेशान नहीं किया जाए। अगर सही तरीकों से संपत्ति में वृद्धि हुई है तो फिर सवाल खड़े नहीं किये जा सकते। मैं दो बार विधायक रह चुका हूं जिसमें मंत्री और उप सभापति का पद संभाला और दो बार सांसद के साथ-साथ केंद्रिय मंत्री भी रहा लेकिन मेरी संपत्ति की पुष्टि इंटरनेट पर की जा सकती है। इसलिए यह बिल प्रस्तावित किया गया है ताकि कोई भी गलतफहमी या कोई द्वेष ना रहे किसी के लिए चाहे वो सत्ता में हो या ना हो। हमें राजनीति से उपर उठकर इसका समर्थन करना चाहिए।
इस प्रस्ताव का बहुत विरोध तो नहीं किया गया लेकिन इसे बहुत समर्थन भी नहीं मिला है। मीडिया में कुछ जगह इस प्रस्ताव के फायदे और नुकसान के बारे में खबरें भी छपी लेकिन इसे ज़्यादा महत्व नहीं दिया गया और ठीक से चर्चा होने से पहले ही सारा मामला खत्म कर दिया गया। बहुत सारे लोगों को अभी तक यह भी नहीं पता चल पाया है कि इस संशोधन में क्या-क्या कहा गया है। किसी भी लोकतंत्र के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है कि लोग अपने ही कानून को लेकर अनभिज्ञ हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि लोग जाने कि इन संशोधनों को पारित करना क्यों ज़रूरी है और इसका भारतीय राजनीति पर क्या असर पड़ेगा।
इस संशोधन का समर्थन करने की काफी वजहें हैं। अगर यह पारित होता है तो भ्रष्टचार को बढ़ावा देने वाले तरीकों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी साथ ही अज्ञात और गैरकानूनी श्रोतों से संपत्ति बनाने के जुर्म में नेताओं को सज़ा भी दी जा सकेगी। इसके साथ ही वैध श्रोतों से अपनी संपत्ति में इज़ाफा करने वाले नेताओं को किसी भी तरीके से प्रताड़ित करने पर भी रोक लग जाएगी। जनता अपने नेताओं को ज़िम्मेदार ठहरा सकेंगे और सरकार की कार्यशैली में और भी पारदर्शिता आएगी।
सत्ता का दुरुपयोग कर संपत्ति बनाने की प्रथा को खत्म करने के लिए यह निसंदेह एक मज़बूत और प्रभावी तरीका है। भारत के लोग ही सरकार बनाते हैं और इसलिए यह उनका हक है कि वो किसको चुन रहे हैं या भविष्य में किस तरह के लोगों को चुनेंगे। यह बेहद ज़रूरी है कि इस देश के लोग अपने नेताओं को जान पाएं और उन्हें ज़िम्मेदार ठहरा पाएं।
(अभिषेक रंजन, शार्वी सक्सेना और प्रज्ञा तिवारी के इनपुट की मदद से।)
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