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गर्भपात और अवैध लिंग निर्धारण के लिए ज़रूरी है महिलाओं की सहमति

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एक महिला मेनोपॉज धारण करने तक हर महीने पीरियड से गुज़रती है, जिस प्रक्रिया में 15-20 g/ml रक्त एंडोमेट्रियम लेयर के साथ निकल जाता है। एंडोमेटरियम यूट्रस के सबसे निचली परत को कहते हैं।

हर महीने होने वाली इस प्रक्रिया से कई महिलाओं के अंदर रक्त की कमी हो जाती है और हीमोग्लोबिन का स्तर भी गिर जाता है। अमूमन इसका पता तब चलता है जब कोई महिला प्रेगनेंट होती है इसलिए इसके पहले से ही महिलाओं को आयरन की दवा लेने की सलाह दी जाती है ताकि शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बना रहे।

आयरन की कमी से होता है एनीमिया

औसतन एक महिला को 12-16 g/dl हीमोग्लोबिन की ज़रूरत होती है और 28 सप्ताह की प्रेगनेंट महिला को 10-14 g/dl हीमोग्लोबिन की ज़रूरत होती है। प्रेग्नेंसी के दौरान रक्त का स्तर 30% तक बढ़ जाता है, जिसे बनाए रखने के लिए अतिरिक्त हीमोग्लोबिन की ज़रूरत होती है।

वहीं, अगर हीमोग्लोबिन का स्तर गिर जाए तो महिलाओं को गर्भधारण और डिलिवरी में मुश्किल होती है। डिलिवरी के समय भी रक्तस्राव का स्तर बढ़ जाता है, जिससे कई महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन में चली जाती हैं।

कम उम्र में शादी है बड़ी वजह

आज भी कई प्रांतों में लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती है। ऐसे में उन्हें ना सेक्स की समझ होती है और ना पीरियड की। कम उम्र में माँ बनने से लड़कियों को स्वास्थ्य सम्बंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शरीर गर्भधारण के लिए तैयार नहीं होता है, जिससे वह मानसिक और शारीरिक रूप से कमज़ोर हो जाती हैं।

महिलाओं से नहीं पूछी जाती राय

मैंने इस मुद्दे पर एक महिला से बात की तो उन्होंने मुझे बताया, “किसी भी महिला से यह नहीं पूछा जाता कि वह कितने बच्चे चाहती हैं। आज भी लड़कों की चाह में अवैध लिंग निर्धारण और गर्भपात जैसे कार्य होते हैं। यहां तक कि दो बच्चों के बीच 3 साल का अंतर भी नहीं रखा जाता है। परिवार नियोजन में महिलाओं की बात को सिरे से नकार दिया जाता है।”

उन्होंने आगे बताया कि गरीब परिवार की महिलाओं  की मृत्यु उचित पोषण नहीं मिलने के कारण हो जाती है। आजकल की भोजन प्रणाली से भूख तो मिट जाती है लेकिन शरीर को पोषक तत्व नहीं मिल पाते।

बच्चों के बीच जागरूकता की कमी

आजकल बच्चों के अंदर किसी भी चीज़ को जानने की उत्सुकता इतनी अधिक होती है कि जाने-अनजाने में वे गलत कदम उठा लेते हैं। सेक्स को लेकर जागरूकता की कमी के कारण भी कई अपराध हो जाते हैं। हमने एक ऐसा सामाजिक महौल बनाया है, जहां बच्चों का सेक्स संबंधित बातें करना अपराध माना जाता है।

फोटो साभार: Getty Images
फोटो साभार: Getty Images

चाहे स्कूलों, कॉलेजों या फिर हमारे घरों की ही बात क्यों ना करे लें, हर जगह पीरियड्स या सेक्स से जुड़ी बातों पर चुप्पी साध ली जाती है। हमे लगता है कि ऐसे गंभीर विषयों पर चुप्पी साध लेने से हम सभ्य समाज के लोग कहलाने लगते हैं मगर जाने-अनजाने में हम महिला संबंधित समस्याओं को गुमनामी के दलदल की ओर धकेल रहे होते हैं।

स्कूलों में रिप्रोडक्शन चैप्टर पढ़ाने में झिझक

आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि रिप्रोडक्शन चैप्टर पढ़ाते वक्त टीचर्स असहज हो जाते हैं। बच्चों में महीने भर पहले से ही एक अजीब किस्म की उत्सुकता होने लगती है। बेशक उन्हें इस संदर्भ में अधिक जानकारी नहीं होती है लेकिन हमारे समाज और घरों में इस विषय पर दबे जुबाने में चर्चा होने से बच्चों के अंदर जिज्ञासा उत्पन्न होती है।

यही वजह है कि जब बच्चे पहली दफा स्कूलों में रिप्रोडक्शन चैप्टर पढ़ रहे होते हैं तब वे बेहद उत्तेजित हो जाते हैं। घरों में हमारे पेरेनट्स को लगता है कि हमारा बच्चा कितना संस्कारी है और हमने उनमें कूट-कूट कर अच्छे संस्कार डाले हैं लेकिन उन्हें क्या पता कि आने वाली नस्लों को हम सटीक जानकारी से महरूम रख रहे हैं।

सरकार को उठाने चाहिए यह कदम

  • महिलाओं के लिए खाद्य सुरक्षा बिल लाना।
  • अस्पतालों में प्रसव विभाग का नियमित दौरा करना।
  • फैमिली प्लानिंग में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चलाना।
  • कंडोम और अन्य कॉन्ट्रासेप्टिव्स के बारे में लोगों को जागरूक करना।
  • सेक्स से जुड़े मिथक के बारे में जागरूक करना।
  • आयरन की दवाओं को महिलाओं तक पहुंचाना।
  • मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर को खत्म करने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए।

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