गली खोर सूनी पड़ी, सूने पड़े मकान सूने-सूने खेत सब, सूने सब खलिहान। भारत का यह ह्रदय छलनी, तपती इसकी जान सब घर छोड़कर शहर भाग गए, जो बचे वे फांसी पर चढ़े किसान। आज एक क्रांतिकारी भूमि बुंदेलखंड की वह कहानी बता रहा हूं, जो तड़पते हुए किसानों, गरीबों, मज़दूरों और शिक्षा के क्षेत्र में एक पिछड़ा इलाका बन चुका है। मेरा नाम आशीष शाक्यवार है और मैं बुंदेलखंड के जालौंन जनपद से हूं। आज जो लिखने जा रहा हूं, उसे...
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