हर चीज़ की अपनी एक कीमत होती है, जो आपको देर सबेर चुकानी ही पड़ती है, कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रूप से। बिना कीमत चुकाए कभी कुछ नहीं मिलता। ऐसी ही कीमत हम सब शहरीकरण के नाम पर, विकास के नाम पर चुका रहे हैं। कम-से-कम मैं तो चुका ही रही हूं। अपनी सेहत देकर। पिछले पांच सालों से नौकरी छोड़ घर पर हूं और खोखले हो चुके शरीर में फिर से जान डालने की कोशिश में लगी हूं। मुझे पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम...
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