समाज ने इंसानों को धर्म, जाति, लिंग और भी न जाने कौन-कौन से स्तर पर हैं बांटा है। इस बंटवारे को लोग पूर्वजों की देन मानकर पूजा करते हैं। कई बार देखने में आता है “फलां आदमी मेरे घर आया मगर मज़ाल है वो कि हमारे सामने कुर्सी या बिस्तर पर बैठे”? हमारे बुजुर्गों के लिए तो वो शान है जहां दलित और नीची जाति के लोग दरवाज़े की ड्योढ़ी से कदम आगे नहीं बढ़ाते।” जब सभ्य समाज के असभ्य लोग ऐसी बातों का गान करते ह...
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