विश्व अपनी अपनी मानसिकता से थोड़ा ऊपर उठ रहा है, जहां महिला सशक्तिकरण और समलैंगिकता को पाप समझा जाता था, वहां आज लोगों के अनुभव और उनकी सोच में बदलाव आ रहा है। इतिहास में समलैंगिक होना गुनाह कभी नहीं रहा। यहां सिर्फ मानव जाति ऐसी है, जो अपने मनगढंत नियम और कानून बनाती है। मानवता कभी भी असमानता की पैरोकार नहीं रही। फिर चाहे बात मेजॉरिटी की हो या फिर माइनॉरिटी की। लोगों ने सम+लैंगिकता इन दो शब्द क...
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