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पीरियड लीव कोई ‘विशेष सुविधा’नहीं, महिलाओं का अधिकार है

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देश के एकमात्र राज्य बिहार में महिलाओं को 90 के दशक से दो दिन का पीरियड्स लीव दिया जाता है। इसी तरह स्विगी, जोमाटो, बाइजू, इविपनन, मातृभूमि, मैग्टर, इंडस्ट्रीज, एआसी, फ्लाईमाईबिज़ और गूज़ूप जैसे कंपनियां महिला कर्मचारियों को पेड पीरियड्स लीव देती हैं। दुनिया के कई देशों में महिलाओं को पीरियड लीव का प्रावधान है। इन्हीं प्रावधानों को आधार बनाकर मुख्य न्यायधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष महिलाओं के पीरियड लीव पर एक याचिका पेश हुई, जिसकी सुनवाई की सहमति मिल चुकी है।

भारतीय महिलाओं के हक में पीरियड्स लीव पर बहस लंबे समय से चलती रही है। परंतु, सर्वोच्च अदालत के पास यह बात पहली बार पहुंची है। इस उम्मीद के साथ कि भारतीय महिलाओं को हर महीने उनके तकलीफ के दिनों में कुछ राहत या आराम मिले। साथ ही साथ महिलाओं के मातृत्व लाभ अधिनियमों को लागू करने के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति भी सुनिश्चित करने की मांग की गई है।

भारत ही नहीं, दुनिया भर की महिलाओं का एक साझा और कमोबेश एक ही तरह का अनुभव पीरियड्स से जुड़ा है। पीरियड्स लीव के मामले में भी पूरी दुनिया के महिलाओं के अनुभव और संघर्ष कमोबेश एक ही तरह के हैं। औसतन एक औरत अपनी जिंदगी के 3,500 दिन या तकरीबन दस साल पीरियड्स के स्थिति में बिताती है। जिसमें से दो साल पीड़ा, असहनीय दर्द और जबरदस्त स्त्राव में ही बीतते हैं। हकीकत यही है कि औरतों को इस समय तरह-तरह की दिक्कतों से जूझना पड़ता है। इसलिए कम से कम एक देश में पीरियड्स के दिनों में अपने लिए आराम या कमोबेश एक तरह का समान व्यवहार की मांग कहीं से अनुचित तो नहीं लगती है।

क्या और क्यों जरूरी है पीरियड्स लीव

अपने देश ही नहीं दुनिया भर के किसी भी स्त्री देह में 24 से 34 दिनों में गर्भाशय से टिशूज साफ खून में मिलकर बाहर निकलते हैं। ये हार्मोन्स व कैमिकल मैसेजर हैं, जो स्त्री की उरवर्ता के लिए बेहद जरूरी है। कुछ औरतों को इस समय जबरदस्त दर्द होता है। पेट व पैरों में ऐठन, सिर चकराना, उल्टियां होना या हल्का बुखार आम है। मूड चेन्ज, ज्यादा या कम भूख, नींद में दिक्कत, स्तन सख्त होने जैसी समस्याएं भी होती हैं। यह प्राकृतिक है, पर बीमारी न होने के बावजूद यह महिलाओं को शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ और सामान्य नहीं रहने देता है। उस पर एक नहीं, हजार तरह के दकियानूसी बातें किसी आम महिलाओं के समस्याओं को और बढ़ा देती है। इसलिए महिलाओं के पीरियड्स के दिनों में दो दिन के अवकाश की मांग लंबे समय से होती रही है।

क्या कह रही है सरकार

सेंट्रल सिविल सर्विसेज रूल 1972 के अनुसार पीरियड लीव का कोई प्रावधान नहीं है। सरकार महिला कर्मचारियों को अलग-अलग तरीके के छुट्टियां पहले से देती है। इनमें अर्न्ड लीव, हाफ पे लीव, एक्सट्रा आर्डनरी लीव, चाइल्ड केयर लीव, कम्यूटेड लीव, मैटरनिटी लीव शामिल हैं। परंतु, यह सुविधा सरकारी नौकरियों में ही लागू होती है। असंगठित क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति अधिक चुनौतिपूर्ण है। घरेलू सहायिकाओं को अवकाश देने में लोग हमेशा ही नाक-मुंह सिकोड़ते हैं। निजी कंपनियां महिलाओं को इतने तरह के छुट्टियां देने से बचने के लिए महिलाओं के नियुक्ति से घबराती है। मैटरनिटी लीव के कुछ सप्ताह बढ़ाने भर से महिलाओं के सामने नई चुनौतियां पैदा हो गई थी।

हो रही है समान व्यवहार की मांग

सर्वोच्च अदालत के सामने दायर याचिका में कहा गया है कि देश भर के महिलाओं को समान नागरिक अधिकार मिलने चाहिए। भारत के अलग-अलग राज्यों में पीरियड्स लीव को लेकर अलग-अलग तरह का व्यवहार किया है। जब महिलाओं के पास भारत की एक ही नागरिकता है तो अलग-अलग तरह का व्यवहार क्यों किया जा रहा है। कुछ राज्य पीरिड्स लीव दे रहे हैं, कुछ कंपनियां पेड पीरिड्स लीव दे रही है और कई जगहों पर कोई राहत नहीं है। जबकि संविधान का अनुच्छेद 14 के तहत समानता और गरिमापूर्ण जीवन जीने के महिलाओं के मौलिक संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।

पीरियड लीव पर क्या तर्क दिए जाते हैं

महिलाएं अक्सर अपनी पीरियड की बात गोपनीय रखती है। वह नहीं चाहती है यह सार्वजनिक हो जाए। इसके कारण सारा दफ्तर हर महिला के पीरीअड्स के दिनों का हिसाब-किताब रखने के लिए उतावला हो जाएगा। संकीर्ण सोच रखने वाले सहयोगियों को भद्दे कमेंट, उपहास या घटनाएं शर्मिंदगी का एहसास करा सकती है। वैसे भी इन दिनों को लेकर छूआछूत की मान्यताएं भी कम नहीं है। शुभ-अशुभ वाली बातें होने लगेगी। इसलिए कई औरतें भी इस लीव के खिलाफ है। इसके कारण बार-बार उन्हें कमजोर सिद्ध करने का प्रयास शुरु हो जाएगा। इसलिए पीरियड लीव की सुविधा को महिलाओं के सुविधा और चुनाव पर छोड़ देना चाहिए। उनके मेडिकल लीव में इस लीव को शामिल कर दिया जा सकता है।

दुनियाभर में महिला अधिकारों के मामले में कोई भी यात्रा आसान नहीं रहा है। इसलिए जरूरी है कि पीरियड लीव के बहस में हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बात या सामाजिक व्यवहार सर्वोच्च अदालत के संज्ञान में लाई जाए, जिससे पीरियड लीव के विषय पर बहसों को श्रेणीबद्धता के सभी स्तरों पर समझा जा सके। एक पूरी बहस एक बड़े कैनवाश पर इकठ्ठा हो सके। जब दुनियाभर में कई देश और कई कंपनियां पीरियड लीव के साथ सहजता से काम कर रही है तो भारत में यह क्यों नहीं संभव हो सकती है? गौरतलब हो कि महिलाओं के सैनटरी पैड्स को महिलाओं के जीवन के लिए आवश्यक वस्तु मानकर जीएसटी के दायरे से बाहर रखने के विषय पर भी कई तर्क थे। परंतु, आज भारत में सैनटरी पैडस को महिलाओं के जीवन के लिए उपयोगी मानकर जीएसटी के दायरे से बाहर लाना पड़ा है।


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