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Channel: Campaign – Youth Ki Awaaz
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“मैं नहीं पढ़ पाई लेकिन किशोरियों के शिक्षा के लिए गॉंव में स्कूल खुलवाना चाहूँगी”

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मेरा नाम किरण सहरिया है । मेरी उम्र 15 वर्ष है। मैं ग्राम गन्नाखेड़ी की रहने वाली हूं। मेरे माता–पिता दोनों ही अशिक्षित हैं और मजदूरी करते हैं। इसके अलावा थोड़ी-बहुत जमीन है । उसमें हम खेती भी करते हैं । लेकिन इससे गुजारा नहीं चल पाता है । इस वजह से कमाने के लिए साल में एक-दो बार पलायन कर एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता है ।

दस्तावेजों में नाम अलग होने से नहीं हुई शिक्षा

मैंने गांव के ही स्कूल में पांचवी तक की पढ़ाई की थी । इसके बाद गांव में स्कूल न होने के कारण और मेरे घर के नाम और दस्तावेजों में अलग नाम होने के कारण मेरी आगे की पढ़ाई नहीं हो सकी। मेरा स्कूल में नाम गुड़िया था और बाकी सभी दस्तावेजों में किरण। इसकी वजह से स्कूल में आगे प्रवेश लेने में समस्या हुई और पढ़ाई से नहीं जुड़ सकी। जो स्कूल आठवीं तक की है, वह हमारे गांव से दूर है तथा वहां तक जाने का रास्ता कच्चा और इतना खराब है कि बरसात में नदी-नालों की वजह से जा ही नहीं पाते हैं। इन सभी कारणों की वजह से पिताजी ने कागजों में नाम की त्रुटि को ठीक नहीं करवाया और मैं आगे की पढ़ाई से वंचित रह गई।

मेरे गांव में पिछले 6 महीने से ‘प्रयत्न संस्था’ के द्वारा‘शी लीड्स चेंज’परियोजना शुरू किया गया है । उसके तहत गांव में लक्ष्मी किशोरी मंच का गठन हुआ, जिससे मैं जुड़ी हूं। मैं इस मंच की अध्यक्ष भी हूं। परियोजना से जुड़कर मैंने शिक्षा के महत्व को समझा । स्वच्छता तथा हमारे अपने अधिकारों के बारे में समझने का मौका मिला। संस्था की कार्यकर्ता हमारे गांव में आकर 2 घंटे क्लास लेती है, जिसमें मैं और मेरे साथ वाली लड़कियां पढ़ना-लिखना सीख रही है। अब मैं भी आगे पढ़ना चाहती हूं। इस परियोजना के तहत मैंने शाहबाद में 3 दिन का किशोरी जीवन कौशल शिक्षा प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण से मुझे नई– नई बातें जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, जेंडर और हिंसा के बारे में जानकारी मिली । इसके अलावा मैंने गुड टच, बैड टच और अपने अधिकारों के बारे में जाना।

अगर मौका मिले तो आगे पढ़ूँगी

संस्था से जुड़कर, मैंने अपने हम उम्र तथा अन्य लोगों के बीच में बोलना सीखा है। अब मेरा डर कम हुआ है। मुझे रेमेडियल क्लास में पढ़ने का मौका मिल रहा है । इससे बहुत अच्छा लग रहा है । अगर मुझे आगे पढ़ने का मौका मिलता है तो मैं पढ़ना चाहूँगी। मैं चाहती हूँ कि मेरे गाँव गन्नाखेडी में 8 वीं तक की स्कूल खुले जिसमें मैं और मेरी सहेलियां आगे पढ़ सकें। बारां के शाहाबाद विकासखंड में सहरिया और भील समुदाय के 8 गांव में पांचवी के आगे स्कूल न होने की वजह से आदिवासी समुदाय की किशोरीयां शिक्षा से वंचित हो रही है। बेसलाइन के आधार पर 10 से 18 आयु वर्ग की ड्रॉपआउट और शिक्षा से वंचित किशोरियों की संख्या 88 है।

शिक्षा से वंचित किशोरियों को शिक्षा से जोड़ने के लिए इस क्षेत्र में राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय खुलवाना जरूरी है ताकि इन किशोरियों को शिक्षा से जुड़ने का अवसर मिले। हमारा मानना है कि अगर इन गांवों में राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय खुलते हैं, तो शिक्षा से वंचित सभी किशोर–किशोरियों को आगे की शिक्षा प्राप्त करने का अवसर अपने उनके गांव में ही मिलेंगे। इससे वे सब शिक्षित तो होंगे ही साथ ही सरकार द्वारा बारां जिले में सहरिया जाति के लिए सरकारी सेवाओं में निर्धारित 25% आरक्षण का फायदा लेते हुए नौकरियों से जुड़कर आगे बढ़ेंगे। उनके आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार आएगा और वे समाज की मुख्यधारा से जुड़कर गरिमामयी जीवन जी सकेंगे।


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