

मैं आज अपने विचारों के पिटारे से एक विषय 'शिक्षा का अधिकार से अनजान हमारा समाज' पर ज़िक्र करना चाहती हूं। कभी-कभी विचारों में एक अजीब सा जिज्ञासु प्रवृत्ति का उछाल आता है। हम क्यों हैं, हम क्या हैं, किस लिए हैं, सब एक जैसे क्यों नहीं हैं। अरे! हाँ, यही बात तो अजीब लगती है कि हम सब एक जैसे क्यों नहीं हैं। अगर शारीरिक तौर पर एक जैसे है तो सामाजिक तौर पर क्यों नहीं? आधिकारिक तौर पर क्यों नहीं? अरे मुझे अधिकारों से याद आ गया। हम तो अपने अधिकारों से परिपूर्ण है शायद!
हाशिये पर जी रहे अधिकारों से वंचित लोग
पर वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जो समाज का हिस्सा है पर अधिकारों से वंचित हैं। समाज के बीच इसी अंतर को मिटाने के लिए संविधान हजारों महत्वपूर्ण अनुच्छेद मौजूद हैं। अब सोचना तो इस पर भी चाहिए कि जब अधिकार है, तो समाज का एक ऐसा वर्ग क्यों जो इन अधिकारों से वंचित भी हैं और अंजान भी हैं। कैसे वह अपने अधिकारों को समझेगा, या इन्हें कौन समझाएगा। समाज के इस अनजान वर्ग को जागरूक और सम्पन्न बनाने में प्रयत्नशील है एक अद्भुत संस्था हमारी पहचान।
अधिकारों से अनजान समाज में कुछ मासूमों के सपनों को उड़ान देने वाली है संस्था हमारी पहचान। इन मासूमों को इनके अधिकार जिनमें महत्वपूर्ण है शिक्षा का अधिकार। इन्हें कैसे जागरूक किया जाए, कैसे इन्हें शिक्षित समाज के हिस्से में शामिल किया जाए यह सोचना होगा। हम सब जानते हैं कि शिक्षा का क्या महत्व है। तो शिक्षित और समाज के एक जिम्मेदार व्यक्ति होने के नाते आप सब भी सहयोग करें। प्रयत्नशील रहें कि ये अधिकारों से अनजान समाज के मासूम वर्ग को एक संपन्न वर्ग से जोड़ने के लिए।