यह ज़रूरी नहीं है कि किसी और की कहानियां सुनने के बाद ही हमें प्रेरणा मिलेगी, बल्कि कई दफा हमें खुद से भी प्रेरणा मिलती है। इस बात को बल देती हैं बिहार की 45 वर्षीय अमीना खातून, जो पढ़ी-लिखी ना होकर भी अपने गाँव में पहले शौचालय का निर्माण किया।
जी हां, अमीना सुपौल ज़िले के पिपरा प्रखंड की पथरा उत्तर पंचायत के वार्ड नंबर 2 में रहती हैं, जो ना सिर्फ एक गरीब परिवार से आती हैं बल्कि दो वक्त की रोटी के लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ता है।
अमीना की कहानी औरों से अलहदा है, जिन्होंने तमम विषमताओं के बीच अपने घर के लिए भीख मांगकर शौचालय निर्माण कराया। साल 2017 में ज़िला प्रशासन द्वारा लगातार ग्रामीणों पर यह दबाव बनाया जाने लगा कि वे जल्द अपने घरों में शौचालय निर्माण कराएं, नहीं तो तमाम सराकरी योजनाओं से उनके नाम काट दिए जाएंगे।
अमीना के लिए प्रशासन द्वारा दी गई यह वॉर्निंग चुनौती ज़रूरी थी लेकिन उन्होंने उसी रोज़ मन बना लिया कि मैं सिर्फ अपने घर के लिए ही शौचालय निर्माण नहीं कराऊंगी, बल्कि अपने गाँव और प्रखंड में तामाम लोगों को इसके लिए जागरूक भी करूंगी।

उनकी यह कोशिश रंग लाती तब दिखी जब साल 2017 के बाद से लगातार ज़िला प्रशासन द्वारा अलग-अलग शिविरों में लोगों को जागरूक करने के लिए उनकी मिसाल दी जाने लगी।
अमीना के पति मोहम्मद रज्जात अब इस दुनिया में नहीं हैं। एक बेटी की शादी हो चुकी है और 14 साल का एक बेटा भी है, जो उनके साथ रहता है। अमीना के लिए बेशक ज़िन्दगी अब भी आसान नहीं है लेकिन पूरे देश में जब भी ‘स्वच्छ भारत मिशन’ का ज़िक्र होता है, तब उनका नाम गुमान के साथ लिया जाता है।
अमीना मुस्लिम समुदाय से आती हैं, जहां भीख मांगना हराम माना जाता है लेकिन टॉयलेट बनवाने के लिए उन्हें यह काम भी करना पड़ा। अमीना जब लोगों के घर जाती थीं, तब कोई उन्हें पैसे तो कोई बांस या अन्य चीज़ें देकर उनकी मदद करता था। अमीना आज आजीविका चलाने के लिए दूसरों के घरों में चौका-बर्तन का काम करती हैं।
अमीना बताती हैं, “भीख मांगकर तो बेशक मैंने सिर्फ अपने ही घर में शौचालय बनवाया लेकिन ऐसा करने से कहीं ना कहीं मुझे प्रेरणा मिली और मैंने पंचायत के अन्य घरों में जाकर भी लोगों को शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित करने का काम किया। मैं घर-घर जाकर लोगों से बोलती थी कि मेरे पास भी पैसे नहीं थे लेकिन मैंने भीख मांग कर शौचालय बनवाया तो आप भी बनवा सकते हैं।”
अमीना आज के दौर में उन तमाम महिलाओं के लिए उदाहरण पेश कर रही हैं, जो आर्थिक तंगी के कारण कुछ कर गुज़रने की चाह खत्म कर लेती हैं। वह ना सिर्फ महिलाओं के लिए उम्मीद की एक किरण हैं बल्कि समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े हर शख्स के लिए नकारात्मकताओं के बीच ज़िन्दगी जीने की सकारात्मक राह मुकम्मल करती दिखाई पड़ रही हैं।
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