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तमाम कठिनाइयों के बीच मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और एक दिन वकील बनूंगी

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मेरा नाम रेशू है मैंने अभी कक्षा 11वीं की परीक्षा दी है। अब मुझे परीक्षा परिणाम का इंतज़ार है ताकि मैं अब नई कक्षा 12 में प्रवेश ले सकूं। मेरे विद्यालय का नाम आर.एन.आई कॉलेज भगवानपुर है। मेरा पंसदीदा विषय अंग्रेज़ी है। मुझे अंग्रेज़ी बोलना और नई अलग-अलग भाषाएं सीखना पसंद है। मेरे परिवार में आठ सदस्य हैं, हम चार बहनें और एक भाई हैं। बड़ी बहन और भाई की शादी हो चुकी है। मेरे पापा जी का नाम प्रमोद है व माताजी का नाम मुकेश देवी है।

मेरे घर की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण व परिवार वालों की सोच पिछड़ी होने के कारण मेरे तीन भाई बहन केवल 10वीं तक ही पढ़ पाएं। मेरे पापाजी एक लोहार हैं जो हर समय दवाई के सहारे काम करते हैं। वे दिल के मरीज़ हैं इसके साथ ही उन्हें सांस की भी दिक्कत व शुगर है। इन सब बीमारियों के कारण ही मैं आगे नहीं पढ़ पा रही थी। मेरा सपना था कि मैं एक वकील बनूं लेकिन मैं अपने पापा जी को देखकर घबरा जाती हूं। मैं आगे कैसे पढ़ी मैं बताना चाहती हूं।

रेशू

राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय रूहालकी में तो मुझे लगा कि कक्षा 6ठी के बाद मेरे र्सिफ दो वर्ष और हैं। मैं र्सिफ कक्षा 8वीं तक ही पढ़ पाऊंगी, फिर कक्षा 6ठी में 21 सितम्बर 2012 को हमारे विद्यालय में एक संस्था आई जाे केवल लड़कियों के लिए ही थी उस संस्था का नाम रूम टू रीड है। जब 6ठी कक्षा की सभी लड़कियां इस कार्यक्रम से जुड़ीं तो हमें कुछ नहीं पता था कि ये क्या है। हमारी एसएम दीदी ने हमें बताया कि यह संस्था लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देती है और इससे हमें फ्री ट्यूशन और जीवन कौशल सत्र भी दिये जायेंगे। हमें ये सुनकर अच्छा लगा और इस प्रोग्राम में हमें ओर कई सुविधाएं भी प्राप्त हुईं।

मुझे आगे पढ़ना बहुत ही मुश्किल लग रहा था लेकिन हमारी एसएम दीदी ने परिवार के सदस्यों को समझाया कि लड़कियों को पढ़ाना ज़रूरी है। इस कार्यक्रम से मुझे बहुत मदद मिली, जिसके कारण मैं आगे पढ़ पा रही हूं। इस कार्यक्रम से मुझे ही नहीं बल्कि कई गरीब समुदाय की लड़कियों को मदद मिली।

इस कार्यक्रम के ज़रिये ही मुझे नई जगह नए लोगों से मिलने व बात करने का हौसला मिला। मैं बहुत हिचकती थी लेकिन अब मैं स्टेज पर भी अपनी बात रख सकती हूं। इस कार्यक्रम से मुझे आत्मविश्वास मिला, सही मार्गदर्शन दिखाया। इससे पहले मेरे पापाजी की सोच कुछ रूढिवादी थी, वो सोचते कि लड़कियों को ज़्यादा मत पढ़ाओ। वो माहौल को देखकर डरते कि कहीं कुछ इनके साथ गलत ना हो। जब वे अभिभावक बैठक में कई बार आएं तो उनकी सोच में भी थोड़ा-थोड़ा बदलाव आया। ऐसे ही अभिभावक बैठक में आते-आते आज उनकी सोच में बहुत परिवर्तन आया। पढ़ाई के प्रति भी व पहनावे के प्रति भी उनकी सोच थी कि लड़की सूट सलवार ही पहनेगी लेकिन अब कहते हैं कि जैसा देश वैसा वेश, माहौल के अनुसार कपड़े पहनने चाहिए और मुझमें भी बहुत सारे बदलाव आये।

आज मुझे रूम टू रीड से जुड़े 7 वर्ष हो गए हैं। जिसमें मेरे अन्दर सबसे बड़ा बदलाव आत्मविश्वास का आया। मैं पहले बोलने में झिझकती थी, डरती थी, गुस्सा ज़्यादा करती थी और अब मैं गुस्सा भी नहीं करती हूं। 7वीं कक्षा में मुझे सभी सत्रों में से बचत का सत्र सबसे अच्छा लगा और इसे मैंने अपने जीवन में लागू भी किया जो अब मेरे बहुत काम भी आया। मेरी छोटी बहन भी कक्षा 10वीं में आई है और मैं कक्षा 12वीं में आई हूं। इस बीच हम दोनों बहनों की ट्यूशन भी लगानी है। जिसका हमारे पास बजट नहीं है। मैंने अपने घर की आर्थिक स्थिति को देखकर मेहनत की ताकि मेरी पढ़ाई में रुकावट ना हो इसलिए मैंने खेतों में काम करके कुछ पैसे जुटाए ताकि मेरे पापा जी को कोई परेशानी ना हो।

मैंने मेहनत करके अपने दाखिले के लिये और ट्यूशन के लिए पैसे इकट्ठे किये हैं। अब मेरे पापाजी मेरी छोटी बहन का दाखिला भी करा देंगे, मैं भी अपना दाखिला ले पाऊंगी। इसलिए मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देना चाहती हूं जिन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया, सही मार्गदर्शन दिखाया और साथ ही रूम टू रीड का भी दिल से धन्यवाद करती हूं जिसने मुझ में आत्मविश्वास जगाया और पढ़ने का तरीका बताया। मेरा रूम टू रीड के साथ आखिरी वर्ष होगा जिससे मुझे दुख हो रहा है लेकिन फिर भी मैं हमारी एसएम दीदी का मार्गदर्शन लेती रहूंगी।

अपने सहपाठियों के साथ रेशू

रूम टू रीड की पूरी संस्था को मैं धन्यवाद करती हूं जिन्होंने मेरा 7 वर्षों तक इतना साथ दिया, आत्मविश्वास जगाया। अगर मेरी पढ़ाई में आर्थिक स्थिति के कारण कोई रुकावट आती है तो मैं उससे मेहनत करके पार पाऊंगी लेकिन अपनी पढ़ाई नहीं रुकने दूंगीं। मेरे पापा कहते हैं कि रेशू बहुत मेहनती व आत्मविश्वासी हो गयी है। वह कहते हैं कि वह मुझे पढ़ाई में पूरा सहयोग करेंगे। इसलिए कहा भी गया है-

“लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।

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