जातिगत भेदभाव और शोषण भारत की बहुत बड़ी जटिल समस्या है, जिससे निजात पाने के लिए आए दिन नए नए कानून और संविधान में संशोधन किए जाते हैं। भारत के संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार हैं लेकिन आए दिन दलितों को सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश करने से मना किया जाता है।
उन्हें कई जगहों पर भोजन करने से रोका जाता है, कहीं घोड़ी पर बैठने नहीं दिया जाता तो कहीं मंदिर में प्रवेश करने की इजाज़त नहीं दी जाती है। इसके अलावा शैक्षणिक संस्थानों में भी जातिगत भेदभाव की शिकायतें आम हो गई हैं, जिसके संबंध में भी आए दिन खबरें आती रहती हैं।
ओडिशा में फानी चक्रवात के बाद दलितों के साथ भेदभाव की खबरें सामने आईं, जिसमें सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवा दी और लाखों लोग बेघर हो गए। इन बेघर लोगों के पुनर्वास और सहायता के लिए स्थानीय स्तर पर सरकार द्वारा शेल्टर होम्स की व्यवस्था की गई, जहां सभी सुविधाएं शोषित लोगों के लिए उपलब्ध कराए गए हैं।

इन सबके बीच आउटलुक मैगज़ीन द्वारा जो खुलासे किए गए हैं, वे चौकाने वाले हैं। ओडिशा के ‘फानी’ चक्रवात से प्रभावित लोगों के पुनर्वास और सहायता के लिए बनाए गए शेल्टर होम्स में दलितों के साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव किया जा रहा है।
आउटलुक के अनुसार भुवनेश्वर और पुरी के कई स्थानों पर राहत शिविरों में दलितों को प्रवेश नहीं दिया गया है और वे खुले आसमान के नीचे जीवन जीने को मजबूर हैं।
पुरी ज़िले के चंदनपुर, बीरारामहंद्रापुर पटेली के बीरिपतिया गाँव में दलित परिवारों को राहत शिविरों में प्रवेश नहीं दिया गया। इसी तरह से पुरी ज़िले के ब्रह्मागिरी ब्लॉक के अशोक सेठी ने भी जातिगत आधारित बंधन प्रणाली के तहत मुफ्त में कपड़े धोने से इनकार कर दिया।
उनके परिवार ने पास के चक्रवात आश्रम में शरण ली है। चक्रवात आने के दौरान उनके परिवार को फिर से हटाया जा रहा था लेकिन ज़िला प्रशासन से शिकायत करने के बाद उन्हें वहां रहने दिया गया।
दलितों और अन्य कमज़ोर वर्गों को भेदभाव से सुरक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय हो सकते हैं-
- आघात ग्रस्त समुदायों के लिए मनोवैज्ञानिक सामाजिक हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। विशेष रूप से ऐसे लोगों को जो अपने परिवार के सदस्यों को खो चुके हैं।
- सरकार को चाहिए कि मॉनसून के आगमन से पहले पूर्वानुमान लगाए और उसके अनुसार पुनर्वास और राहत शिविरों की व्यवस्था करे।
- कानूनी और सुरक्षा के दृष्टिकोण से दलितों पर विशेष ध्यान दें। भेदभाव करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
- भेदभाव को समाप्त करने के लिए सामाजिक और धार्मिक जागरूकता भी फैलाने की ज़रूरत है।
नागरिक और समाज कैसे मदद करें?
नागरिकों को चाहिए कि वे आपदा के समय आपदा प्रबंधन संबंधित जागरूकता पत्रों का अध्ययन करते हुए अन्य लोगों को भी इसके बारे में जागरूक करें। जाति, धर्म और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव ना हो, इसका प्रयास समाज के प्रगतिशील वर्ग को करने की ज़रूरत है।
दलित समुदाय को क्या करना चाहिए?
सभी जाति और धर्म के लोगों को एक साथ मीटिंग करनी चाहिए और पढ़े लिखे लोगों को यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि समाज के अनपढ़, अनजान, अशिक्षित और संकीर्ण मानसिकता के लोग किसी के साथ भेदभाव ना करें।
प्रगतिशील लोगों को चाहिए कि वे समाज के ऐसे संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों को चिन्हित करके प्रशासन को सूचित करें और कार्रवाई कराने में सरकार और प्रशासन की मदद करें।
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