“चमार सियार की क्या औकात जो मेरे सामने खड़ा हो।” यह एक डायलॉग जो अक्सर हमें कुछ ज़मींदारी प्रथा के समर्थकों के मुख से सुनने को मिल ही जाती हैं। ऐसा नहीं कि सारे सवर्ण यह बात बोलते हैं। कुछ के मुख से तो बस इसलिए निकल जाता है क्योंकि लंबे वक्त से कहावत के तौर पर यह चलन में है।
अब ज़िम्मेदारी चमारों की है कि वे इस कहावत पर उंगली उठाएं क्योंकि जब तक आप विरोध नहीं करेंगे, तब तक यह चलता रहेगा। इसी कहावत पर एक किस्सा याद आ गया, जो अभी-अभी 4 दिन पहले घटित हुआ है। मेरे 60% दोस्त सवर्ण हैं जिनमें ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार और यादव भी शामिल हैं।
एक दिन इन्हीं दोस्तों के साथ कॉलेज सीनियर के रूम में जाना पड़ गया क्योंकि मेरे 80% सीनियर दोस्त ही हैं। इसी दौरान एक महान सर ने शराब पी रखी थी और उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि वह क्या बोल रहे हैं। उन्होंने कहा, “400 साल की ज़मींदारी रही है मेरी! बहुत पैसा है, किसी चमार-सियार की औकात नहीं मेरे सामने खड़े होने की।”
उन्होंने एक प्रकार से शब्दों के ज़रिये ज़लील किया जिसपर मैं रिएक्ट करता ही कि मेरा ब्राह्मण दोस्त खड़ा हो गया। यहां तक कि यादव दोस्त तो सन्न ही रह गया। हालात ऐसे हो गए थे कि कुछ और बोलने पर ज़मींदार साहब पीट जाते। मेरे यादव दोस्त इस इंतज़ार में थे कि एक बार और वह उस बात को रिपीट करें।
खैर, उसके बाद सर ने कुछ नहीं बोला। हम सब यह सोचकर वापस चले आए कि साहब जब होश में आएंगे तो मिलकर बात करेंगे। उन्हें बताएंगे कि सियार का तो पता नहीं लेकिन चमार आपके सामने खड़ा है।
जब ज़मींदार साहब को होश आया तो उन्हीं के दोस्तों ने उन्हें बताया कि वह क्या-क्या बोले थे फिर उन्हें अपनी बात पर शर्मिंदगी महसूस हुई और अपने दोस्तों के ज़रिये हम तक खबर पहुंचाई कि उन्होंने जानबूझकर नहीं बोला था।
फेयरवेल के वक्त तो सर ने आंखें ही नहीं मिलाई। शायद उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया था और यही वजह थी कि हमारा गुस्सा भी शांत हो गया। मेरा विरोध उन्हें फिर कभी यह गलती दोहराने नहीं देगा। समाज में बहुत सी कहावते हैं जो जातियों के मज़ाक पर बनाई गई हैं। अब यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि उन कहावतों पर सबको जानकारी दें कि अब समाज बदल रहा है, आप भी बदलिए।
मैं चमार हूं यह पूरा कॉलेज जानता है और जितनी इज्ज़त मुझे और किसी जाति के होने से मिलती, उतनी मुझे चमार होने से भी मिलती है। जिन्हें मुझसे या मेरी जाति से नफरत है, वे शौक से नफरत करें। मैं उनसे मिलने भी नहीं जा रहा हूं और जिन्हें मेरी पहचान से मोहब्बत है, वे कभी दूर जाएंगे नहीं।
यह किस्सा इसलिए बताना ज़रूरी था ताकि आप अपनी पहचान कभी भी किसी से ना छुपाएं। जिन्हें आपसे प्रेम होगा वे आपके साथ होंगे, चाहे वे किसी भी जाति, समुदाय या धर्म से क्यों ना हो। जातियों की बेड़ियां टूट रही हैं। बस आपको अपनी पहचान बनाए रखने की ज़रूरत है और अंततः मैं अपने दोस्तों का आभारी हमेशा रहूंगा जो मेरे साथ हर वक्त खड़े रहते हैं।
गलत का विरोध करना सीखिए एक दिन में परिवर्तन नहीं आएगा लेकिन यह सत्य है कि परिवर्तन ज़रूर आएगा।
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