जाति विहीन समाज के निर्माण के लिए आज एक देशव्यापी सामाजिक आंदोलन की ज़रूरत है। आज हमारे समाज में जाति की जड़े दिन-ब-दिन गहरी होती जा रही हैं। आज़ादी के सात दशक बाद भी हम उस सामाजिक व्यवस्था से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं। कभी जाति भेदभाव तो कभी आरक्षण के नाम पर पार्टियों का आपस में लड़ना, जिससे ना सिर्फ सामाजिक समरसता की कमी आती है, बल्कि एक जाति का दूसरे जाति के प्रति विद्वेष उत्पन्न हो जाता है।
इस बार जब जातिगत नीतियों के विरोध में एनजीओ ‘यूथ फॉर इक्वलिटी’ ने 14 अप्रैल को इंडिया गेट से जाति विहीन समाज के लिए आंदोलन करने का आव्हान किया, तो ऐसा लगा कि आज समाज में इसी तरह की सोच की ज़रूरत है।
आज तक के इतिहास में जातिगत मुद्दे पर बहुत राजनीति हुई। कभी वोट बैंक के लिए, तो कभी अपनी राजनीति चमकाने के लिए लेकिन कोई भी राजनीतिक दल एक जाति विहीन समाज के निर्माण की ओर प्रयास नहीं कर रहा है।
जब मैंने यूथ फॉर इक्वलिटी के कुछ सदस्यों से बात की तो पता चला कि वे जातिगत नीतियों को लेकर मिशन 2020 नामक एक आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं, जिसके तहत वे देशव्यापी आंदोलन करेंगे और जाति विहीन समाज के निर्माण की तरफ अग्रसर होंगे।
मुझे यह जानकार बहुत हर्ष हुआ कि आखिर कोई तो ऐसा है, जो वास्तव में बाबा साहब के जाति विहीन समाज की तरफ सोच रहा है। समाज में जब नीतियां व्यक्ति आधारित होंगी, तभी वास्तव में हम सेकुलरिज़्म की असल भावना तक पहुंच सकेंगे।
पिछले पांच वर्षों में जिस तरह व्यक्ति आधारित योजनाएं बनाई गई हैं, उससे लगता है कि देश अब असल में सेकुलरिज़्म की भावना को अपनाने की तरफ बढ़ रहा है। वही इस आम चुनाव में जिस तरह से राजनीतिक दलों की जातीय समीकरणों को झटका लगा है, उससे यह स्पष्ट झलक रहा है कि देश वास्तव में अब इन जात-पात से परे रहकर सोच रहा है और इसी तरह के सामाजिक परिवर्तन से हमें इस जातीय कुचक्र से छुटकारा मिल सकता है।
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