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“खराब रास्ते के कारण एम्बुलेंस नहीं आ सकी, मुझे डोली में बैठा कर अस्पताल पहुंचाया गया”

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किसी भी क्षेत्र के विकास का सबसे पहला पैमाना सड़क के संपर्क को माना गया है। जहां सड़कें अच्छी होंगी, अन्य क्षेत्रों से उसकी कनेक्टिविटी अच्छी होगी। वह क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में तेज़ी से विकास करेगा। यही कारण है कि पिछले कुछ दशकों में सड़क और राजमार्ग के सुधार और उसके विकास पर खासा ज़ोर दिया गया है। सबसे पहले गंभीरता से इस दिशा में वाजपेयी सरकार के समय ध्यान दिया गया। उनके बाद की सरकारों ने भी इसे आगे बढ़ाया। स्वर्णिम चतुर्भुज, एक्सप्रेसवे और भारतमाला जैसी परियोजना शुरु की गई तो वहीं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने भी गांव-गांव तक विकास को पहुंचने में काफी मदद की। लेकिन अभी भी कई ऐसे गांव बाकि हैं जो इस योजना की राह देख रहे हैं जिसके बिना गांव का विकास रुका हुआ है।

पक्के सड़कों के इंतज़ार में है गाँव

बात की जाए केंद्र प्रशासित जम्मू कश्मीर की, तो यहां भी हर तरफ विकास के काम बड़े जोर-शोर से हो रहा है। चाहे फ्लाईओवर हो या रोड कनेक्टिविटी, ऐसा कोई जिला नहीं है जहां काम में तेजी ना आई हो। परंतु इसी केंद्र प्रशासित जम्मू कश्मीर का एक गांव ऐसा भी है, जिसमें आज भी लोगों को एक अधूरी सड़क होने की वजह से आये दिन पैदल यात्रा तय करनी पड़ रही है। जम्मू के कठुआ जिला स्थित बिलावर तहसील से 9 किलोमीटर दूर एक जाना-माना गांव बड्डू है। इसी बड्डू पंचायत में एक छोटा सा गांव जोड़न भी है। इस गांव में लगभग 20 से 25 घर हैं, जिनकी कुल आबादी लगभग 100 के करीब है। लेकिन इस गांव में सड़क की बहुत बुरी हालत है। इस के कारण लोगों को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बड़े बुजुर्ग हों या महिलाएं या फिर स्कूल में पढ़ते बच्चे, हर किसी को पक्की सड़क ना होने की वजह से बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बारिश के दिनों में तो सड़क की हालत इतनी खराब हो जाती है कि बच्चों का स्कूल जाना भी मुश्किल हो जाता है।

पैदल चलने के लिए भी नहीं है रास्ता

गांव में अन्य समुदाय की तुलना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय की संख्या अधिक है। इस संबंध में गांव की एक महिला मोनी कहती हैं कि जर्जर सड़क के कारण गांव वालों की ज़िंदगी ठप हो गई है। विकास के ऐसे बहुत से काम हैं जो केवल इस टूटे-फूटे सड़क के कारण रुके हुए हैं। सड़क की खराब हालत के कारण सबसे अधिक कठिनाई महिलाओं और बुज़ुर्गों को होती है। वह कहती हैं, "जब मैं गर्भवती थी, तब एक दिन मेरी अचानक तबीयत खराब हो गई। घर वालों ने फ़ौरन एम्बुलेंस को कॉल किया लेकिन जहां सड़क ही टूटी-फूटी हो, तो वहां गाड़ी कैसे पहुंचेगी? रास्ता भी इस लायक नहीं था कि मैं इस पर पैदल चल सकती। उस समय घर के सभी सदस्य परेशान हो गए। उनके पास कोई रास्ता नहीं था तो उन्होंने किसी तरह लकड़ी की डोली बनाई जिसमें मुझे लेटा कर अस्पताल पहुंचाया गया।" मोनी का कहना है कि गाड़ी के लिए ही न सही, लेकिन इस हद तक तो इस रास्ते को बनाया जाए कि लोग पैदल तो अच्छे से चल सकें क्योंकि बारिश के दिनों में तो इसमें इतना पानी भर जाता है कि इस पर से गुज़रना किसी के लिए भी खतरे से खाली नहीं होता है।

स्कूली बच्चों के परेशानी का कारण

जोड़न गांव के केवल आम लोगों को ही नहीं, बल्कि स्कूली बच्चों को भी इस टूटी सड़क का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है। जर्जर सड़क के कारण गांव में स्कूली वैन भी नहीं आती है, जिससे अधिकतर बच्चों को पैदल ही स्कूल आना जाना पड़ता है। इस संबंध में स्कूली छात्र फिरोज दीन, लियाक़त और रूबीना अख्तर का कहना था कि जब हम स्कूल जाते हैं, तब हमें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। स्कूल हमें समय पर पहुंचना होता है। लेकिन रास्ता सही ना होने के चलते अमूमन हम स्कूल में लेट पहुंचते हैं, जिससे लगभग हमें रोज़ाना स्कूल से डांट भी खानी पड़ती है। वह कहते हैं कि बारिश के मौसम में हमारी कठिनाई दोगुनी हो जाती है। सड़क पर जहां पानी से बचना होता है वहीं इसमें होने वाली फिसलन से भी बच कर चलना पड़ता है। कई बार हम या हमारे साथी इसमें फिसल जाते हैं जिससे हमारी स्कूल ड्रेस ख़राब हो जाती है। यही कारण है कि बारिश के दिनों में इस गांव के ज़्यादातर बच्चे और लड़कियां स्कूल जाना बंद कर देते हैं. उन्हें मज़बूरी में अपनी पढ़ाई का नुकसान करनी पड़ती है

सरपंच जगदीश सपोलिया भी जोड़न गांव के सड़क की बदहाली और गांव वालों को इससे होने वाली परेशानियों से चिंतित हैं। लेकिन उनका कहना है कि पंचायत के पास इतने फंड नहीं हैं जिससे इस सड़क को पक्की की जा सके। उन्होंने बताया कि यह सड़क वार्ड नंबर 6 और 7 के अंतर्गत आती है। ऐसे में इसका मरम्मत होना बहुत ज़रूरी है। वे कहते हैं, "मैं भी चाहता हूं कि इस सड़क का कार्य जल्दी से जल्दी मुकम्मल हो, जिससे यहां के लोगों को फायदा हो सके।" वे आगे बताते हैं, "पंचायत ने अपने स्तर पर एक दो बार पंचायत फंड से इस सड़क की मरम्मत भी करवाई है। परंतु बारिश के तेज बहाव से यह सड़क फिर ख़राब हो जाती है। इसे एक मज़बूत मरम्मत की ज़रूरत है, जिसमें काफी खर्च आएगा, जो पंचायत फंड से बाहर की बात है।" उन्होंने बताया कि इस सड़क की कुल लंबाई केवल 2 से 3 किमी है जोकि गांव जोड़न के लोगों के लिए परेशानी का सबक बनी हुई है।

हालांकि गांव वालों को यकीन है कि विकास के लिए वचनबद्ध स्थानीय प्रशासन और एलजी जोड़न गांव के लोगों की परेशानियों को समझेंगे और यहां की जर्जर सड़क की हालत में सुधार होगा। अब देखने वाली बात यह है कि एक तरफ जहां केंद्र प्रशासित जम्मू कश्मीर में हर तरफ निर्माण कार्य और विकास के काम तेजी से हो रहे हैं, वहीं सरकार और स्थानीय प्रशासन की नजर इस गांव पर कब पहुंचती है और कब इस गांव के लोगों को सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का लाभ मिलता है? कब यहां की अधूरी सड़क पर विकास का पूरा पहिया घूमता है?

यह आलेख कठुआ, जम्मू से मीनाक्षी मेहरा ने चरखा फीचर के लिए लिखा है


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