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“10 साल की उम्र में शादी और घरेलू हिंसा से लड़कर मैं प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर बनी”

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मैं जब महज 10 साल की थी, तब मेरी बड़ी बहन के साथ मेरी भी शादी करवा दी गई। उस समय मुझे ये भी नहीं पता था कि क्या हो रहा है। मैं नए कपड़े देख कर ही बहुत खुश थी। मैं पाँचवी कक्षा में पढ़ती थी। शादी के बाद, घरवाले मुझे अक्सर ससुराल ले जाने लगे ताकि वहाँ आना-जाना मैं सीख जाऊँ और आदत हो जाए। मेरे माँ-बाप ने भी उसी समय से मुझे ससुराल भेजना शुरू कर दिया। मैं उस वक्त इतनी छोटी थी कि मुझे साड़ी पहनना भी नहीं आता था।

दस साल की उम्र में शादी

दस साल के उम्र की बच्ची को शादी का मतलब कहाँ पता होता। लेकिन मुझसे कहा गया कि मुझे घूँघट ओढ़े रहना है। मेरे लिए एक बड़े से घूँघट में रहना बहुत मुश्किल था। फिर भी मुझे इस हिदायत को मानना ही था। कई बार तो मैं घूँघट के कारण गिर भी चुकी थी। किसी तरह जैसे-तैसे मैंने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की। लेकिन इसके बाद मेरे ससुराल वालों ने मेरी पढ़ाई रुकवा दी। हालांकि मुझे आगे पढ़ने का बहुत शौक था। मैंने अपने मन में ही पढ़ाई कर पाने के सपने को मार दिया। ससुराल में जब मैं अपनी ननद को स्कूल जाते देखती, तो बुरा लगता था और सोचती कि मैं स्कूल क्यों नहीं जा सकती? फिर कभी-कभी लगता कि शायद मेरे किस्मत में स्कूल जाना, पढ़ना-लिखना ही नही था।

सूरत में घर खरीदने की बात और घरेलू हिंसा की शुरुआत

जब मैं लगभग 16 साल की थी, तब मेरे पति मुझे लेकर गुजरात में सूरत चले आए। यहाँ मैं उनके साथ चार सालों तक रही। उस दौरान मैं गर्भवती भी हुई। मैं तीन महीने गर्भवती थी जब मेरे पति ने सूरत में एक घर खरीदा। इसके लिए उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अपने पिता से 4 लाख रुपए लाऊँ। मैंने यह बात अपने पिता के सामने रखी। मैंने कहा कि मेरे पति को घर खरीदने के लिए पैसों की जरूरत है और वो इसके लिए मदद करें। मेरे पिता ने पैसे देने के लिए मना तो नहीं किया लेकिन उन्होंने कहा कि वे पैसे तभी दे सकते हैं जब मेरे पति मकान मेरे नाम पर लें।

मैंने यह बात अपने पति को बताई और उन्होंने मेरे ससुराल में। लेकिन इस बात की चर्चा होते ही, मेरे ससुराल में जैसे पहाड़ टूट गया हो। मेरी सास और ससुर दोनों मुझे अपशब्द कहने लगे। वे कहने लगे कि मैं अभी से ही सब कुछ अपने नाम करवाना चाहती हूँ। ऐसे में उनका छोटा बेटा क्या करेगा। वह कहाँ जाएगा। वे कहने लगे कि मैं उनके बेटे को अपने बस में कर रही थी। इस घटना के बाद से मेरी सास के कहने पर मेरे पति मेरे साथ मारपीट करने लगे। मेरे पति अक्सर मेरी पिटाई करते। लेकिन मेरी सास और ससुर मुझे बचाने या उसे रोकने नहीं आते।

घरेलू हिंसा से हुई मिसकैरेज

एक रोज़ जब मेरे पति मेरी पिटाई कर रहे थे, तो मुझे पेट पर लात मारने लगे। मैं उस वक्त चार महीने की गर्भवती थी। इस आघात से मेरा रक्तस्राव शुरू हो गया और मेरा मिसकैरेज हो गया। मेरे आस-पड़ोस के लोगों ने मुझे संभाला और बचाया। उस रात मैं पड़ोसियों के पास रुकी थी। लेकिन हैरानी की बात थी कि ससुराल वालों में से किसी ने भी आकर मेरा हालचाल नहीं पूछा। उनमें से किसी ने नहीं पूछा कि मैं कैसी हूँ। अगले दिन आस-पड़ोस के लोग मुझे मेरे माँ-बाप के घर ले गए।

लेकिन मेरे ससुराल वालों को मेरी कोई चिंता नहीं थी। मेरे घर आते ही मेरी सास ने मेरे पति की दूसरी शादी कर दी। इस घटना के बाद, मैंने भी अपने ससुराल जाने से मना कर दिया। उस वक्त मेरे माँ-बाप मेरे सबसे बड़े सहारा बने और मेरी हिम्मत भी। उन्होंने कहा कि बेटा तुम भूल जाओ कि तुम्हारी शादी हुई थी और आगे बढ़ो। इसके बाद, मैं साल 2000 से अपने माता-पिता के साथ रह रही हूँ।

बतौर सामाजिक कार्यकर्ता जीवन की नई शुरुआत

साल 2007 में मैं ‘जतन’ संस्थान से एक ट्रेनिंग के संदर्भ में संपर्क में आई। मैंने ट्रेनिंग ली और मैंने उन्हें बताया कि मैं काम करना चाहती हूँ। उसी समय ‘जतन’ में काम कर रही चेतना से एक प्रोजेक्ट मिला जिसमें मुझे फील्ड कार्यकर्ता के पद पर रखा गया। यहाँ मैंने बतौर फील्ड कार्यकर्ता काम करने लगी। इन 15 सालों के दौरान ‘जतन’ के डायरेक्टर ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। उन्होंने लगातार मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए मोटिवेट करते रहे।

उन्होंने मुझसे कहा कि पहले मुझे अपनेआप को बदलना चाहिए। मुझे खुद में बदलाव लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी चाहिए। उनके प्रोत्साहन और बढ़ावा में मैं इन 15 सालों में अपनी बी ए तक की पढ़ाई पूरी की। साथ ही साथ मैं इस बीच अपना काम भी करती रही। सब कुछ धीरे-धीरे संभल रहा था। मैं लगातार मेहनत से अपना काम करती रही। लेकिन उस बीच जीवन में फिर से मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।

बड़े भाई का मर्डर और बच्चों की जिम्मेदारी

मेरे बड़े भाई का मर्डर हो गया। यह मेरे लिए एक बड़ा झटका था। मेरे बड़े भाई के दो छोटे-छोटे बच्चे थे। उनकी बेटी तीन साल की थी और बेटा ढाई साल का था। लेकिन असल मुश्किल तब हुई, जब 20 दिनों बाद मेरी भाभी हमें छोड़ कर अपने घर चली गई। अब मुझ पर मेरे माँ-बाप के अलावा, इन दो बच्चों की जिम्मेदारी भी थी। अब मेरे ऊपर बच्चों की जिम्मेदारी भी है। हालात के कारण मैं इन बच्चों की माँ बन गई। अब मैं इन बच्चों को बड़ा कर रही हूँ। आज मेरी बेटी बीएससी सेकंड ईयर में पढ़ रही है और मेरा बेटा 11वीं में पढ़ रहा है।

अभी वर्तमान में मैं ‘विकल्प’ संस्थान में पिछले 7 महीने से काम कर रही हूं। यहाँ मैं ‘प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर’ के पद हूँ और 3 ब्लॉक की देख-रेख मेरी जिम्मेदारी है। मेरी टीम में आज 6 मेम्बर हैं जो फील्ड में काम करते हैं। कोऑर्डिनेटर होने के नाते मेरी जिम्मेदारी है कि मैं अपनी टीम को साथ में लेकर चलूँ। उनपर आने वाली मुसीबतों के वक्त उनके साथ रहना और उनका समाधान करना। रिपोर्ट राइटिंग करना, ट्रेनिंग के आयोजन करना और समय-समय पर कार्यकर्ताओं की कैपेसिटी करना ये कुछ ऐसे काम हैं जो मेरे अंतर्गत हैं। इस तरह मैं जीवन की दूसरी पारी जी रही हूँ और ‘विकल्प’ के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश कर रही हूँ। 


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