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“बिहार में इंटरमीडिएट परीक्षा में लड़कियों का लड़कों से बेहतर प्रदर्शन सुखद एहसास है”

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आमिर खान की एक फिल्म आई थी दंगल जिसका फेमस डायलॉग था ‘मारी छोरियां छोरों से कम है के'। इसे आज के सन्दर्भ में देखा जाए, तो लड़कियां पूरी तरह से चरितार्थ कर रही हैं। आज लड़कियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। चाहे वो शिक्षा, खेल, व्यापार, फिल्म या किसी अन्य क्षेत्र में हो। इन्हें आगे बढ़ते देखना भी एक सभ्य समाज के लिए सुखद एहसास होना चाहिए। कभी वो दौर भी था जब लड़कियों को लड़कों के मुकाबले बहुत ही कमतर आंका जाता था। लेकिन ये भी सच है कि अब भी उस सामाजिक नजरिए में पूरी तरह बदलाव नहीं हुआ है। जिस तेजी के साथ हर क्षेत्र में लड़कियां आगे बढ़ रही है, वो दिन भी दूर नहीं जब ये भेद और यह नजरिया पूरी तरह से समाज के अंदर से खत्म हो जाएगा।

इंटरमीडिएट परीक्षा में लड़कियों ने किया बेहतर

बिहार में इंटरमीडिएट परीक्षा 2023 के परिणाम आ चुके हैं। इनमें लड़कियों का शानदार व जानदार प्रदर्शन देखने को मिला है। साइंस,आर्ट्स और कॉमर्स तीनों संकायों में लड़कियां टॉपर बनी है। इसमें साइंस संकाय से आयुषी नंदन, कला संकाय से महद्दिशा और कॉमर्स संकाय से सौम्या शर्मा ने टॉप किया है। इन्होंने अपने जरिए साफ संदेश दिया इन्हें कमतर ना आंका जाए। हमें जब भी मौके मिलेगा अपने आप को साबित करेंगे। लड़कियों ने किस तरह से बाजी मारी है, आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि तीनों संकाय के 30 टॉपरों में 21 लड़कियां शामिल हैं। वहीं सिर्फ 9 लड़के ही टॉपरों की इस सूची में जगह बना पाए हैं। 

अगर इस इंटर मीडिएट परीक्षा परिणाम की खास बात करें, तो लड़कों के मुकाबले लड़कियों का पासिंग पर्सेंटेज भी ज्यादा रहा है। लड़कियां अब अपने घरों से निकलकर स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी की तरफ बड़ी तेजी के साथ बढ़ रही है। इसका सबसे सुखद पहलू ये है कि ना सिर्फ़ लड़कियां घरों से बाहर कदम रख रही है बल्कि मौका मिलते ही अपने आपको सफ़लता के शिखर पर खुद को विराजमान भी कर रही है। ये सुखद इसलिए भी है आने वाले वक़्त में लड़के और लड़कियों के बीच असमानता के भाव खत्म होने की संभावना है। अब तो चर्चा इस पर भी शुरू हो गई है कि आखिर लड़कियों के मुकाबले लड़के क्यों पिछड़ रहे हैं? इस बात पर बहस होना ही लड़कियों की सफलता की गाथा है।

बिहार में लड़कियों के शिक्षा में हो रहा सुधार

बिहार जैसे राज्यों के लिए ऐसे परिणाम देखना और भी सुखद है, जहां कुछ सालों पहले लड़कियां शिक्षा के लिए घरों से बाहर भी नहीं आ पाती थी। जिन्हें घरों से स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक लाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सराहना भी की जानी चाहिए। सरकार के द्वारा किए गए सकारात्मक कदमों का ही ये परिणाम है। चाहे ये छात्रवृत्ति योजना,साईकिल योजना, इंटर मीडिएट, स्नातक उत्तीर्णता प्रोत्साहन राशि हो या स्टूडेंट्स क्रेडिट कार्ड स्कीम हो। इनके वजह से बिहार में ना सिर्फ़ साक्षरता का ग्राफ ऊपर की ओर जा रहा है, बल्कि तेजी के साथ लड़कियां लड़कों के मुकाबले परीक्षा में ज्यादा भागेदारी पेश कर रही है।

जिस तरह से लड़कियां घर से बाहर निकलकर मेहनत और मेधाशक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर रही है ये अपने आप में एक नया अध्याय है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। ये वो आधी आबादी है जिससे समाज ने एक लंबे वक़्त तक अन्याय किया है। जिसे हमेशा लड़कों के मुकाबले कमतर आंका गया है। ये देखना और भी आनंददायी है कि लड़कियां अब लड़कों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। यह उस ओर भी इशारा करती है कि अगर उसे पहले से ऐसे मौके दिए जाते तो वो नित दिन नए-नए गाथा लिखते रहती। देर ही सही लेकिन सुखद है समाज धीरे-धीरे लड़के- लड़कियों में अन्तर करना छोड़ रही है। वो दिन भी दूर नहीं जब ये पूरी तरह से समाज के अंदर से ख़त्म हो जाने वाली है।

 


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