

अलवर स्थित गंडवा गाँव से यह इस शृंखला की हमारी दूसरी कहानी है। मनीषा एक 21 वर्षीय खुशमिजाज स्वभाव की लड़की है जो अलवर जिले में स्थित गंडवा गाँव में रहती है। मनीषा के बहुत सारे सपने हैं। उसका कहना है कि वह अपनी लाइफ में बहुत कुछ करना चाहती है। पर जिस गाँव में वह रह रही है, वहाँ सपनों को पूरा करना इतना आसान नहीं है। मनीषा ने बचपन से देखा है कि गाँव में ज्यादातर लड़कियों की शादी जल्दी कर दी जाती है। अब वही मनीषा के साथ होने जा रहा है। उसकी शादी होने वाली है। अब जब वह कुछ करना चाहती है ज़िंदगी में, जब वह अपने सपनों के लिए कुछ सोचने लगी है, तो उसकी शादी की बात हों लगी है। मनीषा EMpower संस्था द्वारा पोषित एवं सवेछा और जनसाहस संस्था द्वारा संचालित एक किशोरी लर्निंग कम्यूनिटी का हिस्सा है। इससे जुड़ने पर मनीषा को खुद की पहचान बनाने की ज़रूरत महसूस होने लगी है। उससे बातचीत में महसूस होता है कि वह इस किशोरी समूह से जुड़े रहकर खुद के लिए निर्णय लेने की चाहत औरों में भी देखना चाहती है। मनीषा का खुद की शिक्षा का सफ़र इतना आसान नहीं रहा पर वह अपने गाँव के दूसरे बच्चों के लिए बेहतर कल की आशा रखती है।
शिक्षा पाने में संघर्ष
मनीषा ने अपनी 5वीं कक्षा तक की पढ़ाई गाँव के सरकारी स्कूल से की जो कि तब प्राथमिक स्कूल था। उसके बाद सारे कलाँ में उस वक्त कार्यरत एक प्राइवेट स्कूल खुला था। मनीषा के पिता ने उसका दाखिला उस स्कूल में करा दिया, जहाँ उसने 8वीं तक की पढ़ाई की। उस स्कूल से 8वीं कक्षा पास करने के बाद, मनीषा ने किशनगढ़ बास के हॉस्टल में 9वीं कक्षा में एडमिशन ले लिया था। मनीषा भी अपने गाँव में रहकर पढ़ना चाहती थी। पर गाँव से 8वीं कक्षा से आगे का स्कूल का रास्ता 15 किलोमीटर दूर था। वहां से रोजाना आना-जाना मुश्किल था इस वजह से मनीषा के पिता ने किशनगढ़ बास के हॉस्टल में उसका दाख़िला करा लिया और उसने 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई वहां से की।
घर वालों ने बंद कर दी पढ़ाई
इसके बाद मनीषा और पढ़ना चाहती थी। पर कॉलेज गाँव से 35 किलोमीटर दूरी पर था जिसके कारण मनीषा को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मनीषा का कहना है कि उसके घर वालों ने बोला, "इतना ही बहुत है कि तू इतना (12वीं) पढ़ ली। अपना हिसाब-किताब तो कर सकती है। बाकी आगे की पढ़ाई हम नहीं करा सकते क्योंकि यहाँ पर साधन नहीं है कि तू इतनी दूर आए जाए। और यह यहाँ सुरक्षित भी नहीं माना जाता है।" मनीषा का परिवार उसे अकेले कॉलेज आने-जाने की दिक्कत और सुरक्षा के मद्देनजर मना कर दिया। इस कारण, मनीषा को अपनी पढ़ाई छोड़ कर घर बैठना पड़ा। पर मनीषा आज भी पढ़ना चाहती है। हालांकि गंडवा में जहाँ वह रह रही है, यहाँ लोग शिक्षा को लेकर बिल्कुल भी जागरूक नहीं है। फिर मनीषा के घर वालों की भी विचारधारा ऐसी ही बनी हुई है कि लड़कियों के लिए उतनी ही पढ़ाई काफी है कि वह अपना हिसाब-किताब कर ले।
शिक्षा को समझा जा रहा है गैर जरूरी
मनीषा का कहना है कि अगर उनके गाँव से कॉलेज इतनी दूर नहीं होता तो उसका शायद परिवार उसे कॉलेज जाने से मना नहीं करता। या फिर कम से कम परिवहन/अन्य साधन की सुविधा ही होती तो शायद उसके गाँव की और लड़कियों साथ जाना-आना कर सकती थी। ऐसे में सभी पढ़ाई कर पाते। मनीषा कहती है, "गाँव की सोच भी इस वजह से नहीं बदली है क्योंकि साधन उपलब्ध नहीं है।" उसकी यह बात किशोरी लर्निंग कम्यूनिटी द्वारा किए गए 3 गाँवों के सर्वे में भी पता चलती है। इस सर्वेक्षण में यह पाया गया कि ज्यादातर लड़कियों को परिवहन नहीं होने के कारण 8वीं कक्षा पास करने के बाद घर में बिठा दिया जाता है। पहला कारण सामाजिक सोच है। पर लड़कों को भी 8वीं कक्षा के बाद बहुत कम ही घरों में पढ़ाया जाता है। 8वीं से आगे का स्कूल भी गाँव से 5 किलोमीटर दूर है जिसे कि गंडवा और आस-पास के गाँव वाले सुरक्षित नहीं मानते। साथ ही साथ ज़्यादातर घर कृषि आय पर निर्भर है। इसलिए किशोर-किशोरियाँ को खेतों को खेती का भी काम करना होता है। नीचे दिए हुए पाई चार्ट में 226 घरों पर किए गए सर्वे के आँकड़े बताए गए हैं।

राजस्थान के आरटीई नियमों के तहत, राजस्थान सरकार द्वारा लड़कियों को अनिवार्य स्कूली शिक्षा प्रदान करने के लिए परिवहन वाउचर योजना साल 2017-18 में शुरू की गई थी। सरकारी स्कूलों में माध्यमिक और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में पढ़ रही लड़कियों को विशेष रूप से लाभान्वित करने के उद्देश्य से इस योजना में स्कूल से 5 किमी की दूरी के भीतर रहने वाली लड़कियों को शामिल किया गया है। यह कक्षा 1 – 8 के सभी छात्राओं को लाभान्वित करेगा। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों की कक्षा 1 – 5 के लड़कियों को भी शामिल किया गया है जो 1 किमी से अधिक दूरी पर रहते हैं। वहीं उच्च प्राथमिक यानि छठी कक्षा से आठवीं तक लड़कियों को शामिल किया गया है जो स्कूल से 2 किमी से अधिक दूर रहते हैं।