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 ‘नृत्य के प्रति समर्पण की कहानी है मेरी’

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(संपादक की तरफ से: ये कहानी स्पर्श चौधरी द्वारा लिखी गई है ,जैसे उन्हें  अपर्णा ने बताई )

मेरा नाम अपर्णा सराठे है। मैं बाबई,माखननगर (नर्मदापुरम ) के एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हूँ। मेरे घर पर आटे की चक्की चलाने वाले पापा,  एक निजी स्कूल में पढ़ाने वाली माँ और एक छोटा भाई हैं। बचपन से ही डांस करने में बेहद ख़ुशी मिलती थी। और ये मेरी कहानी है जिसमें आपको जूनून, ज़िद और नए नए मोड़ मिलेंगे जैसे मुझे मिले थे। 

जब नृत्य से मेरी पढ़ाई का स्तर अच्छा हुआ

तो हुआ यूँ कि सातवीं कक्षा तक मैं एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ती थी पर मुझे वहां अपने हुनर और आत्मविश्वास को पोसने का मौका ही नहीं मिलता था। मुझे अलग से मौका ही नहीं दिया जाता था। शायद एक वजह यह भी रही हो कि मैं निहायती दुबली पतली सी अंडरवेट लड़की थी। नतीजतन मैं पढाई में भी संघर्ष कर रही थी।  पर आम धारणा के विपरीत मेरी ज़िन्दगी सरकारी विद्यालय में आकर बदल गयी। यहाँ मुझे अच्छे शिक्षकों के साथ साथ अच्छा प्रेरक माहौल भी मिला। इससे मेरा खोया आत्मविश्वास लौट आया और कोई आश्चर्य नहीं कि जब मुझे नाचने को प्रेरित और सराहित किया गया तो इसका असर मेरी पढाई पर भी पड़ा और मेरे अच्छे मार्क्स के कारण मैंने मैथ्स विषय चुना। इस दौरान मैं घर पर  वेस्टर्न डांस सिखाया करती थी(वो भी फ्री में!) पर उन दिनों मुझे क्यूंकि अच्छा लगता था तो मैं यह अकादमी चलाती थी। कभी भी इस शौक़ को करियर बनाने का सोचा ही नहीं था। मज़ेदार वाक़्या यह हुआ कि स्कूल के वार्षिकोत्सव के प्रदर्शन के बाद मैं अभिभावकों और बच्चों में चर्चा का विषय बन गयी और मेरी अकादमी की डिमांड भी बढ़ने लगी।  

डांस पर करियर का चांस ? 

जब 2014 में मेरी बारहवीं की पढाई पूरी हो रही थी तो, हमारे स्कूल में ‘भारत कॉलिंग’ की टीम की एक सदस्य आयीं और उन्होंने समर कैंप की जानकारी दी। मुझे पता चला कि नृत्य और संगीत में भी उच्च शिक्षा ली जा सकती है। ग्वालियर के राजा मान सिंह विश्वविद्यालय और प्रवेश की पूरी प्रक्रिया से भी अवगत कराया गया। हालाँकि मुझे मालूम हुआ कि पढाई तो शास्त्रीय नृत्य की होगी जिसका मुझे पहले से कोई ज्ञान या अभ्यास नहीं है। खैर मैंने यह रास्ता चुन लिया था।  

कहानी स्नातक के दिनों की 

हुआ यूँ कि राजा मानसिंह तोमर विश्वविद्यालय ग्वालियर में जो चौथे सेमेस्टर के बाद हमारी प्रोफेसर आयीं डॉ.अंजना झा ( कत्थक नृत्य के जयपुर घराने की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की जानी मानी हस्ती), वे एक बेहद सख्त मिज़ाज और अनुशासन प्रिय गुरु के रूप में जानी जाती थीं। पर उनका सख्त रवैय्या सबको नहीं जमता था।  वैसे  संभवतः उनसे बेहतरीन गुरु किसी बिलकुल नए शिष्य के लिए मिल ही नहीं सकता था। इसीलिये   सिवाय मेरे बाकी लोगों ने एक अन्य सर से सीखना शुरू कर दिया। पर मैंने डीन को लैटर लिखा कि मैं तो मैडम से ही सीखना चाहूंगी। नतीजतन मेरी बहुत ही कड़ी मेहनत की प्रशिक्षण की यात्रा शुरू हो चुकी थी। मैं मैडम के साथ सिर्फ नृत्य नहीं बल्कि जीवन का सार और ज़िम्मेदारियाँ लेना भी सीख रही थी।हालाँकि कभी कभी मैं परेशान हो जाया करती थी तो माँ ,जिनके मैं बहुत करीब हूँ कहती थीं कि बेटा ,गुरु हैं , सुन लो सब कुछ।  गुरु की डाँट में भी शिक्षा होती है। मैंने उन तीन सालों में बहुत बहुत मेहनत की।  खासकर क्यूंकि मैं पहली दफे शास्त्रीय संगीत सीख रही थी। हालांकि इस बीच मेरे सारे दोस्त जो सर से सीख रहे थे , मुझसे दूर हो गए थे।  मुझे तो किसी से कोई गिला शिकवा नहीं था। मैं तो अथक परिश्रम करने में जुटी थी और नतीजतन टॉप भी कर रही थी। शायद इसीलिये फ़ाइनल ईयर के परीक्षा वाले स्टेज परफॉरमेंस में जब सबकी ही तालियों की गड़गड़ाहट और सराहना मिली तो मानों सारे शिकवे दूर हो गए ! 

पर फ़ैलाने को चाहिए था और बड़ा आसमान मुझे ! 

लेकिन अगर आप हमेशा टॉप करते रहोगे तो आगे कैसे बढ़ोगे ! मुझे लग रहा था यहाँ मुझे चुनौतियाँ देने वाले कम लोग हैं। तो मास्टर्स के लिए जब मुझे किसी ने बताया कि केंद्रीय विश्वविद्यालय बी.एच.यू में प्रवेश होता है मगर बहुत कठिन। मैंने सोचा था कि विभिन्न सुविधाओं के साथ साथ यहाँ मुझे कुछ नया सीखने को मिलेगा। यहाँ आते से पता चला कि कत्थक तो चार घरानों का होता है। तो अब हम और मुश्किल चीज़ें सीखने वाले थे।  

जहाँ उस समय प्रवेश की मेरिट सूची में सिर्फ ग्यारह सीट्स ही हुआ करती थीं, मेरी सातवीं रैंक आयी थी। यहाँ का पढाई का तरीका बिलकुल अलग था। ग्वालियर में जहाँ मैडम घंटों साथ अभ्यास करवाती थीं।  यहाँ एक घंटे के लेक्चर और वहीँ के प्रैक्टिकल के बाद बात ख़तम हो जाती थी। सोचा कुछ था, हुआ कुछ। तो मैं थोड़ा डिप्रेशन में रहने लगी। हालाँकि इन सबके बीच में एक चीज़ अच्छी हुई कि मुझे खुद से सारी ज़िम्मेदारी लेना आ गया। उदाहरण के तौर पर कॉस्ट्यूम डिसाइड करने की ज़िम्मेदारी। मैं बी एच यू की लाइब्रेरी में घंटों डांस के बारे में किताबें भी पढ़ा करती थी।  

तो इन सालों में मैं बहुत अच्छा कर रही थी। पर ख़ुशी ही नहीं फील हो रही थी।पता नहीं क्यों ! शायद अभी तो बहुत कुछ बाकी था। अंजना मैडम से पता चला कि नयी दिल्ली कथक केंद्र कत्थक का मदीना है मानो तो मैंने सोचा मैं वहां जाउंगी। हालाँकि इस बीच मास्टर्स के बाद मुझे मेरे ही कॉलेज में गेस्ट फैकल्टी के तौर पर जॉब ऑफर हुआ था पर मैंने सोचा मैं और सीखूंगी और पढूंगी,जॉब अभी नहीं !! 

नयी दिल्ली कत्थक केंद्र का एंट्रेंस तो मैंने क्लियर कर लिया मगर मेरे सामने फिर से एक दुविधा थी।तो दरअसल मैं जिन वरिष्ठ गुरु से सीखना चाहती थी, मुझे पता चला उनका तो घराना ही दूसरा था।मतलब फिर से मुझे एक अवांछित बदलाव की चुनौती को स्वीकार करना था।  

यहाँ आकर ऐसा लगा कि मानों मैंने पिछले सभी सालों में नृत्य में कुछ नहीं सीखा था।  घराने का फ़र्क़ तो था ही। कठिनाई, अनुशासन, मेहनत , और नज़रिया सब बदल रहा था।  महीनों तक मैं ऐसा महसूस कर रही थी कि मानो मैं यह दो साल का डिप्लोमा कोर्स कर पाऊँगी कि नहीं।  इस बीच दिल्ली में खर्चा निकालने के लिए मैं डांस सिखाने भी जाया करती थी पर मेरी ऊर्जा और समय बहुत जाया होती थी पर मेरे पास और कोई उपाय नहीं था क्यूंकि पापा के लिए भाई की पढाई और मेरी डिप्लोमा का खर्चा साथ में उठाना  मुश्किल हो रहा था।  

पर इन सबके दरमियान मेरी मनःस्थिति बहुत बेहतरीन हो चुकी थी। भले ही दबाव बहुत था।  मेरी हमेशा की स्वास्थ्य की समस्याएं सुलझ चुकी थीं।  यहाँ योग और ध्यान अनिवार्य था  जिससे  मन और शरीर दोनों की सेहत अच्छी हो गयी थी। न सिर्फ यह बल्कि यहाँ हम पखावज ,तबला और गाना भी सीख रहे थे।  

और शायद इसीलिये मैं अंततः कोविड के दौरान सात महीनों के घर पर प्रवास के दौरान बहुत बढ़िया अभ्यास कर सकी. नृत्य के अभ्यास के लिए कोविड का लॉकडाउन वरदान था मानों।फिर अंत में हमने एक इंटर्नशिप की।  साल भर चलने वाली इस इंटर्नशिप में हमने किसी डांस प्रोडक्शन के सभी पहलू सीखे ताकि हम खुद के शोज खुद संभल सकें।  सिर्फ नाचना तो हम सीख ही रहे थे हमेशा। .मेकअप , लाइट , म्यूजिक,वित्त , प्रोफाइल बनाना , एडवरटाइजिंग करना वगैरह सब सीखा।  दूर दूर से वर्कशॉप्स लेने को विशेषज्ञ आया करते थे। 

इंटर्नशिप के अंत में परफॉरमेंस के लिए मैंने बालिका भ्रूण हत्या विषय पर एक बेहद मार्मिक कविता पर परफॉर्म करने का सोचा।  ऐसा शायद ही होता होगा कि कथक में कविता पर परफॉर्म किया जाए। पर मेरा मानना है कि कला तो डूबने वाली होती है , नॉर्मल डांस तो कोई भी कर सकता है पर जो आपको रसमग्न और भावमग्न कर दे वही कला है चाहे वो नृत्य, संगीत ,वादन ,लेखन ,चित्रकला या कोई और कला हो !  उस दिन का वीडियो और तस्वीरें और सराहना आज भी मेरे दिल को प्रफ्फुलित करतीं हैं।  

सीखने से सिखाने तक का सफर 

फ़िलहाल मैं जुलाई २०२२ से खैरागढ़ यूनिवर्सिटी छत्तीसगढ़ में फैकल्टी के रूप में कार्यरत हूँ। और मैं बताना चाहती हूँ कि मेरी हालाँकि मेरी और स्टूडेंट्स की उम्र में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं है पर मेरे सिखाने के तरीके से सब बहुत खुश हैं। मैं हरेक स्टूडेंट को उसकी अलग अलग काबिलियत और क्षमता के अनुसार उसके साथ मेहनत करती हूँ। यहाँ तक कि जिन स्टूडेंट्स में शुरू में मोटिवेशन बहुत कम था वो भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। मैं सिखाने की प्रक्रिया में ढर्रे पर नहीं बल्कि वैज्ञानिक तरीके से,नवाचार से चलने में विश्वास करती हूँ। उदाहरण के तौर पर मूवमेंट के लिए सेंटर ऑफ़ मास के कांसेप्ट को इस्तेमाल करना। शायद स्कूल में साइंस पढ़ने के कारण यह तरीका मेरे मन में रह गया हो ! 

मैं आगे प्रोफेसर बनने के लिए पीएचडी करना चाहती हूँ। पर फ़िलहाल मैं एक शिक्षिका का रोल भी एन्जॉय कर रही हूँ।आत्मनिर्भरता और अपने सपने दोनों जी रही हूँ !


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