वैसे तो मेरे साथ जातिगत भेदभाव की कई घटनाएं घटित हुई हैं लेकिन मैं यहां उनमें से कुछ घटनाओं के बारे में आपको बताना चाहता हूं।
1. कॉलेज, नौकरी, यहां तक कि घर ढूंढने में भी जातिगत भेदभाव

ब्राह्मणवादी सोच से मेरा सामना कॉलेज के दिनों से शुरू हुआ और आज नौकरी करते हुए तो कभी किराये पर कमरा ढूंढते हुए इससे लगातार सामना होता रहता है। सबसे पहले आपकी जाति पूछी जाती है, तब जाकर कमरे की बात होती है। मैं यहां एक शब्द का उपयोग कर रहा हूं ‘ब्राह्मणवादी सोच’, इससे तात्पर्य उन लोगों से है, जो खुद को जन्म से ही श्रेष्ठ समझते हैं।
2. जाति के आधार पर निर्धारित होता है सामने वाले का व्यवहार
जिस दूसरी घटना की मैं बात करने जा रहा हूं, वह मेरे लिए बड़ी आम सी बात हो गई है। किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर नहीं लिखा होता है कि फलां व्यक्ति किस जाति का है। यही चीज़ अनोखी है, क्योंकि इस अनोखेपन की वजह से किसी को भी यह पता नहीं होता है कि कौन किस जाति से है। जब तक किसी की जाति पता नहीं चलती है, तब तक मीठी-मीठी बातों का सिलसिला चलता है और जैसे ही जाति का आभास होता है ‘ब्राह्मणवादी सोच’ के चेहरे के हाव-भाव एकदम से बदल जाते हैं। मेरे साथ ऐसा अकसर होता है।
3. स्टाफ रूम में दलित स्टूडेंट्स को नहीं मिलती थी एंट्री

तीसरी घटना ज़्यादा दुखदायी है। जब मैं प्राइमरी विद्यालय में पढ़ता था तो वहां पर स्कूल की शिक्षिकाएं हरिजन समाज के विद्यार्थियों को स्टाफ रूम में प्रवेश नहीं करने देती थीं। वहां सिर्फ ब्राह्मण समाज के बच्चों को जाने की इजाज़त होती थी। एक 6 से 7 साल के बच्चे को जातियों के बारे में भला क्या पता होता है? लेकिन उसके साथ भी जातिगत भेदभाव होता है। वह बच्चा धीरे-धीरे जब होश संभालता है तब उसे पता लगता है कि आखिर क्यों उसके साथ ऐसा होता था।
4. मिड डे मील में भी होता था जातिगत भेदभाव
इसी विद्यालय में मिड डे मील में ब्राह्मण बच्चों को अलग लाइन और हरिजन बच्चों को अलग लाइन में बैठाया जाता था।
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