बीजेपी ने पूरे देश में प्रचंड बहुमत से दोबारा सरकार बना ली है। इसी के साथ यह भी सिद्ध कर दिया है कि देश में जातिगत राजनीति अब नहीं चलेगी। बीजेपी की यह ऐतिहासिक जीत इस ओर इशारा करती है विकास और काम के नाम पर ही लोगों के दिल में जगह बनाई जा सकती है।
अब तक की सरकारें विकास और जनहित कार्यों को कागज़ पर गिनाती थी मगर शायद ही चुनावी कैंपेन में बीजेपी ने आंकड़े गिनाए क्योंकि उसने देश की गरीब व वंचित जनता की दैनिक परेशानियों का उपाय खोज लिया था।
राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा सोने पर सुहागा हो गया
शौचालय और पक्के मकान के लिए आर्थिक सहायता, मुफ्त बिजली कनेक्शन, उज्जवला योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं बीजेपी के लिए पांच महत्वपूर्ण स्तंभ साबित हुए तथा राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा सोने पर सुहागा हो गया।
विपक्ष का ना तो इस बात पर ध्यान गया और ना ही बीजेपी ने उनका ध्यान इस ओर जाने दिया। राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों को बीजेपी सकारात्मक तरीके से पेश करती रही और विपक्ष उनके जाल में फंसता चला गया।
काम बोलता है
काम गिनाने की ज़रूरत उन्हें पड़ती है, जिन्होंने काम ना किया हो। यहां सही मायने में यह सिद्ध हुआ कि ‘काम बोलता है’, ज़रूरी नहीं कि नेता मंच से चिल्लाए क्योंकि जनता और लाभार्थियों की भी आंखें हैं।

जातिवाद जो कि क्षेत्रीय दलों की मज़बूती थी, वह बिल्कुल फेल होती दिखी या यूं कहें कि काम जातिवाद पर भारी पड़ गया। यूपी में सपा-बसपा गठबंधन ने जातिवाद के ज़रिये जनता को साधने की कोशिश की मगर जब तक आपके पास सही मुद्दे नहीं होंगे, जनता आप पर विश्वास नहीं करेगी।
वहीं, बिहार की बात करें तो जनता ने सीधे तौर पर जातिगत भेदभाव करने वाली पार्टियों और तमाम नेताओं को नकार दिया है। इससे यह संदेश साफ हो जाता है कि आप लंबे वक्त तक जाति के आधार पर राजनीति नहीं कर सकते हैं। इन चीज़ों के खात्मे के लिए मौजूदा लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली शानदार कामयाबी काबिल-ए-तारीफ है।
नकारात्मक राजनीति की भारतीय लोकतंत्र में जगह नहीं
यहां विपक्ष खुद काम करने या जनता के विकास के लिए चुनाव नहीं लड़ी थी। विपक्ष का काम बस यह था कि किसी भी तरीके से मोदी को फिर से सत्ता में नहीं आने दिया जाए। विपक्ष ने साम-दाम-दंड-भेद सब लगा दिया और सही मायने में विपक्ष यही पर हार गया क्योंकि नकारात्मक राजनीति की भारतीय लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है।
सेक्युलरिज़्म के नाम पर बांटना अब नहीं चलेगा
जातिवाद ध्वस्त होता नज़र आता है, जिससे कुछ डिज़ाइनर लेखकों और पत्रकारों की दुकानें बंद हो गई हैं। अर्बन एंड मॉडर्न पॉलिटिक्स में एक वर्ग को बहुत कमज़ोर दिखा कर उसकी सहानुभूति ली जाती है या बंद कमरों में बैठकर जातिवाद पर स्पीच दी जाती है। यह पैंतरा अब नहीं चलने वाला है।

जब आप सही कहेंगे तभी लोग आपको सुनेंगे। देश बहुत आगे बढ़ चुका है इस तरह से देश को जाति, धर्म और तथाकथित सेक्युलरिज़्म के नाम पर बांटना अब नहीं चलेगा। देश आपको जवाब देगा, जिसे बेगूसराय ने सिद्ध कर दिया है।
नई सरकार, नई आशा और नए मुकाम हासिल करने के लिए है। आशा है कि यह अपने अधूरे कामों को पूरा करेगी और देश को एक नए मुकाम तक ले जाने में सफल होगी।
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