मेरे स्कूल का वक्त बेहद खास था, यार दोस्त बेहद अच्छे थे। स्कूल से ही वे दोस्त कॉलेज में साथ आएं। उनमें से मेरी एक दोस्त थी सुनैना। नाम के जैसी ही सुंदर आंखों वाली, घुंघराले बालों वाली, सुनहरी ज़ुल्फों वाली, गोरा रंग। हम लोग कॉलेज साथ आते-जाते थे। मेरी क्लास में वह पढ़ाई में भी अव्वल थी।
मुझे याद है हमारे डिपार्टमेंट के नए लेक्चरर आये थे। हम अक्सर सुनैना को छेड़ते थे कि ले तेरी खूबसूरती पर एक और मर मिटा है। वह कहती थी, “पागल हो तुम लोग, वह सर हैं अपने”। मगर हम थोड़े मिज़ाज से अल्हड़ ही बने रहना चाहते थे तो ऐसे ही सर जब करीब से निकलते तो कह देते कि सुनैना आज इस सूट में बड़ी सुंदर लग रही है, वह आंखें दिखाती रह जाती थी। हम भी मगर कहां सुधरने वाले थे।
एक दिन उसने बताया, “सर ने कहा है कि वह मुझे पसन्द करते हैं और रिज़ल्ट आने के बाद घर बात करना चाहते हैं, अगर मुझे कोई आपत्ति नहीं है तो”। उसके बाद हम उसे बातों ही बातों में छेड़ने लगे कि यार अब इसे जीजा जी कहने की प्रैक्टिस करनी पड़ेगी, अभी तक तो सर सर कहते थे। इस हद तक निक्कमे थे हम कि सुनैना को कहते थे कि शादी के बाद तू क्या बुलाएगी सर, या ऐ जी?
खैर, रिज़ल्ट आ गया और सर ने सुनैना को मिलने के लिए बुलाया। बातों ही बातों में स्कॉलरशिप का ज़िक्र आया, जो SC या ST के लिए होती है।
सर ने बड़ा घूरकर देखा और पूछा,
तुम्हारी कास्ट क्या है?
उसने कहा,
सर चमार।
सर के चहेरे से हर रंग जा चुके थे। ज़रूरी काम का बहाना बनाकर वह चले गए और हफ्ते भर तक कोई कॉल मैसेज नहीं आया।
फिर एक दिन कॉल आई,
सुनो मुझे तुम अच्छी लगती हो मगर मुझे नहीं पता था कि तुम चमार हो, नहीं तो मैं प्यार में नहीं पड़ता। कितनी सुंदर हो तुम, लगती ही नहीं हो कि चमार हो। मुझे माफ करना और तुम्हें तो तुम्हारी कास्ट में बहुत अच्छा लड़का मिल जाएगा, इतनी सुंदर जो ठहरी।
मैं सोचती हूं कि नापने का पैमाना बस सुंदरता और जाति ही रह गई है और यह कहां लिखा है कि इस जाति के लोग सुंदर नहीं हो सकते या सुंदरता गुलाम है ऊंचे वर्ग की। किस्मत सब बदल देती है मगर यह जो दाग पैदा होते ही लग जाता है ना जाति के नाम का कभी नहीं जाता।
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