पायल तुम खुद से कितनी अंजान थी
तुम्हारे टैलेंट से मर जाए
जातिवाद-छूआछूत वाली हज़ारों सोच,
पायल तुम खुद से कितनी अंजान थी।
रोहित वेमुला का ज़ख्म अभी भरा भी नहीं था,
पायल, एक और ज़ख्म नहीं देना था,
तुम्हें अंतिम सांस तक लड़ना था,
पायल तुम खुद से कितनी अंजान थी।
शम्बूक-एकलव्य की लाडली,
झांसी की मर्दानी झलकारी बाई,
माता सावित्री की प्यारी थी,
पायल तुम खुद से कितनी अंजान थी।
तुम भीम की ज्ञानपुत्री,
करोड़ों कुपोषितों की डाॅक्टर, वैद्य, हकीम
करोड़ों की गर्जना, ताकत थी,
पायल तुम खुद से कितनी अंजान थी।
तुम जैसी शेरनी पर कभी
बिरसा मुण्डा गर्व किया करते थे,
स्वाभिमान किया करते थे,
पायल तुम खुद से कितनी अंजान थी।
तिलका मांझी की नैया की पतवार,
सावित्री बाई की संतान तुम थी,
पायल तुम खुद से कितनी अंजानी थी।
मरने के बाद लोग क्या कहते हैं
इससे भी अंजान थी,
झलकारी की पुत्री तुम
अपने खून से अंजान थी ,
पायल तुम खुद से कितनी अंजान थी।
मैं अभी-अभी लिखा हूं दिल का दर्द सामने है।
The post “पायल अभी रोहित वेमुला का ज़ख्म भरा भी नहीं था, तुमने एक और ज़ख्म दे दिया” appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.