

बीकानेर जिले के एक रियासतकालीन गांव में चार बहनों सहित 12 सदस्यों का परिवार पत्थर खादान में मजदूरी कर अपना गुजर बसर चला रहा था। अति गरिबी व जागरूकता के अभाव में एक बालिग बेटी के साथ-साथ तीन छोटी बेटियों की शादी 2005 में एक ही परिवार में कर दी। इनमें से दो तो बिल्कुल छोटी थी। बड़ी वाली दोनों बहनें ससुराल जाने लगी। ससुराल जाने वाली छोटी बहन नई जिम्मेदारियों तथा शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना को झेल नहीं पायी, जिससे पति के साथ झगड़ा होने लगा। कुछ दिन बाद यह झगड़ा मारपीट में बदल गया, जिसकी चपेट में दूसरी बहन भी आने लगी और दोनों बहनों को घर से निकाल दिया।
बात जब महिला एवं बाल विकास विभाग में पहुंची
महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित महिला सलाह और सुरक्षा केंद्र में मदद की गुहार लगाई। कुछ दिनों बाद सरपंच की मध्यस्ता के जरिए उन्हें दोबारा ससुराल भेज दिया। ससुराल पक्ष को लड़कियों का सुरक्षा केंद्र तक बात को ले जाना नागवार गुजरा और वे हर प्रकार के उत्पीड़न को चरम सीमा तक करने लगे। चारों लड़कियों को ससुराल वालों ने अपने परिवार से अवैधानिक रूप से बहिष्कृत कर दिया। इसी दौरान सामाजिक कार्यकर्ता की सलाह से मामला कोर्ट में दर्ज करवा दिया गया। लड़कियों का ससुराल पक्ष बार-बार कोर्ट के बुलावे पर भी अदालत में पेश नहीं हो रहा था। केस लंबा चलता रहा व इसी दौरान लड़कियों के पिता को क्षय रोग ने घेर लिया। बीमारी पर होने वाले खर्च व बेरोजगारी तथा अदालती चक्कर में हो रहे खर्चे के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई।
परिवार को दोबारा जीवन यापन के लिए मिला सहारा
तब उरमूल सेतु संस्थान ने दोनों बड़ी लड़कियों को सिलाई का प्रशिक्षण दिया तथा उन्हें उनके गांव में मशीनें उपलब्ध करवाकर सिलाई सेंटर शुरू करवाया ताकि परिवार का गुजर बसर चल सके। साथ ही उन्हें पढ़ने की भी सलाह दी, जिससे दो छोटी लड़कियां पढ़ाई से जुड़ गई। करीब 14 वर्ष तक अदालतों के चक्कर काटने के बाद चारों लड़कियों का विवाह विच्छेद हो गया। तीन बड़ी लड़कियां जो बालिग हो गई थी उनका दोबारा विवाह अलग-अलग परिवारों में कर दिया गया। छोटी बेटी अभी भी पढ़ रही है।
पिता ने मानी अपनी भूल
पिता की बीमारी के इलाज में सहयोग करने से अब वह स्वस्थ हैं। उनसे बात करने पर उन्होंने बताया, "नासमझी के कारण 18 वर्ष पहले बड़ी बेटी के साथ छोटी बेटियों का बाल विवाह भी एक ही परिवार में कर दिया था जिसका खामियाजा चारों लड़कियों के साथ-साथ पूरे परिवार को भुगतना पड़ा। परिवार हर तरह से सड़क पर आ गया था। लेकिन आप सब के सहयोग से हमने अपनी गलती को सुधारा है अब हमने बालिग बच्चियों की ही दोबारा शादी की है और उनको भी अलग-अलग परिवार में शादी करके भेजा है।" जागरूकता के अभाव के चलते की गई गलतियां बच्चियों के जीवन पर कितनी भारी पड़ सकता है यह इस मामले से स्पष्ट दिखता है। हम सबको इस से सीख लेते हुए चाहिए कि हम बच्चों के भविष्य निर्माण में उनका सहयोग करें तथा अपनी लापरवाही तथा नासमझी की आड़ में उनके भविष्य की रुकावट बनने के बजाए उन्हें उनके विकास के विभिन्न अवसरों तक पहुंचने में मददगार बने।